हिंदी व्याकरण भाग-I भाषा ( देवनागरी लिपि के बारे में जाने)

देवनागरी लिपि
हिंदी और संस्कृत देवनागरी लिपि में लिखी जाती है | देवनागरी लिपि का विकास ‘ब्राम्ही लिपि’ से हुआ है जिसका सर्वप्रथम प्रयोग गुजरात नरेश जयभट्ट के एक शिलालेख में मिलता है |8वीं एवं 9वीं सदी में क्रमश: राष्ट्रकूट नरेशों तथा बडौदा के ध्रुवराज ने अपने देशों में इसका प्रयोग किया था | महाराष्ट्र में इसे ‘बालबोध’ के नाम से सम्बोधित किया गया | देवनागरी लिपि पर तीन भाषाओं का बड़ा महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा |

i. फ़ारसी प्रभाव :- पहले देवनागरी लिपि में जिव्हामूलीय ध्वनियों को अंकित करने के चिन्ह नहीं थे, जो बाद में फारसी से  प्रभावित होकर विकसित हुए -क,ख,ग,ज,फ़ |

ii. बांग्ला प्रभाव :- गोल-गोल लिखने की परम्परा बांग्ला लिपि के प्रभाव के कारण शुरू हुई |

iii. रोमन प्रभाव :- इससे प्रभावित हो विभिन्न विराम चिन्हों जैसे – अल्प विराम, अर्द्ध विराम, प्रश्नसूचक चिन्ह, विस्मयसूचक चिन्ह, उद्धरण चिन्ह एवं पूर्ण विराम में ‘ खड़ी पाई ‘ की जगह ‘बिंदु’ का प्रयोग होने लगा |

देवनागरी लिपि की विशेषताएं 
इसके ध्वनिक्रम पूर्णतया वैज्ञानिक है |

वर्गों की अंतिम ध्वनियाँ नासिक्य है |

ह्रस्व एवं दीर्घ में स्वर बंटे है |

उच्चारण एवं प्रयोग में समानता है |

प्रत्येक वर्ग में अघोष फिर सघोष वर्ण है |

छपाई एवं लिखी दोनों समान है |

निश्चित मात्राएँ है |

प्रत्येक के लिए अलग लिपि चिन्ह है |

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