देशज और विदेशज शब्द क्या होते हैं
देशज शब्द क्या होते हैं (Deshaj shabd kya hote hain? )
(ग)
देशज शब्द : देशज व् विदेशज शब्द
वैसे शब्द, जो
विभिन्न भारतीय भाषाओं या बोलियों से हिंदी में आ गए हैं | इनका संस्कृत से कोई
संबंध नहीं है | जैसे –
खिड़की खुरपा गाड़ी छाती बाप बेटा
डाभ पिल्ला पगड़ी तेंदुआ कटोरा खिचड़ी
"विदेशज शब्द किसे कहते हैं" (Videshaj shabd kya hote hain?)
(घ) विदेशज शब्द :
वैसे शब्द, जो न तो संस्कृत के न ही हिंदी या अन्य बोलियों के वे अन्य विदेशी
भाषाओं से हिंदी में आ गए हैं | जैसे –
अंग्रेजी शब्द
स्कूल
डॉक्टर स्टेशन मास्टर ऑफिस प्रेस कलक्टर रजिस्ट्री नोटिस फीस टीन स्लेट डिग्री पेन
स्टील रेल फंड कमिटी कोट ग्लास इंच फुट मीटर कंपनी बॉक्स बटन कमीशन
फ़ारसी शब्द
अफ़सोस
अदा आराम आदमी उम्मीद कबूतर कमर खूब जवान दरबार जोर दुकान दाग मोजा गरम कद्दू
दोस्त गुल
अरबी शब्द
अदना
अजनबी इनाम उम्दा उम्र एहसान औसत कसर कसम कीमत ख़ास खत खबर ख्याल गरीब गुस्सा जाहिल
जिस्म जनाब जालिम तमाशा तारीख नतीजा नशा
तुर्की शब्द
काबू
कालीन कैंची कुली कुर्की चमचा चेचक चकमक चोंगा जाजिम तोप तमगा तलाश बहादुर मुगल
लाश लफंगा सौगात
2. व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द भेद
व्युत्पत्ति
की दृष्टि से शब्द तीन प्रकार के होते हैं –
(क) रूढ़ शब्द :
वैसे शब्द, जो
परस्पर से किसी विशेष अर्थ में प्रयुक्त होते आये हैं और जिनके खंडित रूप निरर्थक
होते हैं | जैसे -
कमल, धन, पुस्तक, जग, मत, नीला आदि |
(ख) यौगिक शब्द :
किसी रूढ़ शब्द में उपसर्ग, प्रत्यय या अन्य शब्द जोड़ देने पर बने शब्द ‘यौगिक’ कहलाते हैं | चूँकि ऐसे शब्द जो रुढ़ों
के योग से बने होते हैं इसलिए इनके खंड सार्थक हुआ करते हैं | जैसे –
रसोई + घर = रसोईघर पानी + घाट = पनघट
पाठ + शाला = पाठशाला बुद्धि + मान = बुद्धिमान
दुर + जन = दुर्जन धन + वान = धनवान
निर् + जन = निर्जन फल + वाला = फलवाला
(ग) योगरूढ़ शब्द :
वैसे शब्द, जो यौगिक के समान बने हैं; परन्तु वे सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेषार्थ ग्रहण कर लेते हैं |
जैसे –
पंक + ज = पंकज (कमल के लिए प्रयुक्त)
पंक
(कीचड़) में जन्म लेने वाले कीड़े, जलीय पौधे, मच्छर,
घोंघा, केंकड़ा आदि भी हैं; परन्तु ‘पंकज’ केवल ‘कमल’ के लिए ही प्रयुक्त हुआ करता है |
इसी
तरह – लम्बोदर, पीताम्बर आदि शब्द भी योगरूढ़ कहलाते
हैं |
3. रूपान्तर की दृष्टि से शब्द-भेद
नीचे
लिखे वाक्यों में प्रयुक्त पदों को देखें –
संज्ञा
एवं क्रियापदों के रूप में परिवर्तन :
लड़का फल खाता है |
लड़के फल खाते हैं |
लड़कों ने फल खाए |
लड़की फल खाती है |
सर्वनाम
एवं विशेषण पदों में परिवर्तन :
मैं अच्छा हूँ |
हम अच्छे हैं |
क्रियाविशेषण
पद ज्यों-का-त्यों (कोई परिवर्तन नहीं)
वे धीरे-धीरे खाते हैं |
मैं धीरे-धीरे खाता हूँ |
वह धीरे-धीरे खाता है |
शीला धीरे-धीरे खाती है |
लड़के धीरे-धीरे खाते हैं |
उपर्युक्त
उदाहरणों से स्पष्ट है कि कुछ पदों के रूप परिवर्तित होते रहते हैं तो कुछ के
अपरिवर्तित |
लिंग, वचन, कारक आदि के अनुसार परिवर्तित होने वाले शब्द विकारी और सभी
परिस्थितियों में अपने रूप को एक समान रखने वाले शब्द अविकारी या अव्यय कहलाते हैं
|
इस तरह रूपान्तर की दृष्टि से दो प्रकार के शब्द हुए –
(a) विकारी और (b) अविकारी |
विकारी
के अंतर्गत संज्ञा,
सर्वनाम, विशेषण और क्रिया तथा अविकारी के
अंतर्गत क्रिया विशेषण,
संबंधबोधक, समुच्चयबोधक और विस्मयादिबोधक आते हैं
|
उपर्युक्त
शब्दों को ही वाक्य प्रयोग की दृष्टि से आठ प्रकार का माना जाता है |
4. अर्थ की दृष्टि से/शब्दों में निहित शक्ति की दृष्टि से शब्द-भेद
अर्थ
के विचार से शब्दों के तीन प्रकार माने जाते हैं – अभिधा, लक्षणा और व्यंजना | शब्द की ये
शक्तियाँ तभी प्रकट होती हैं, जब उन्हें वाक्यों में स्थान मिलता है | किसी शब्द का एक ही और
साधारण अर्थ उसकी अभिधा शक्ति से प्रकट होता है | परन्तु, जहाँ किसी वाक्य में ठीक संगती बिठाने
के लिए शब्द, साधारण अर्थ को छोड़कर लक्ष्यार्थ लिया
जाता है (कोई और अर्थ लिया जाता है), वहां उसकी लक्षणा शक्ति काम करती है | प्राय:
मुहावरों और विशिष्ट क्रिया-प्रयोगों से शब्दों के जो नये अर्थ निकलते हैं वे इसी
शक्ति के द्वारा | जहाँ व्यंग्य आदि के रूप में कुछ चमत्कारपूर्ण अर्थ निकलता है, वहां शब्दों की व्यंजना शक्ति काम
करती है |
“शब्दों
या वाक्यों का यही व्यंग्यार्थ सबसे अधिक चमत्कारपूर्ण और प्रभावशाली होता है |”
नीचे
लिखे उदाहरणों को देखें –
वह
बच्चा दूध पीता है | (अभिधेयार्थ प्रयोग)
वह दूध पीता बच्चा है | (नासमझ/मासूम बच्चा-लक्ष्यार्थ प्रयोग)
#deshaj shabd kise kahate hain
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