निर्माण के आधार पर स्थालाकृतियाँ
विभिन्न स्थलाकृतियाँ (Different Types of Topographic):
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निर्माण के आधार पर स्थालाकृतियाँ तीन प्रकार की होती है - पर्वत, पठार तथा मैदान
1. पर्वत: उत्पति के अनुसार पर्वत चार प्रकार के होते हैं -
(a) ब्लॉक पर्वत (Block Mountain):
जब चट्टानों में स्थित भ्रंश के कारण मध्य भाग नीचे धंस जाता है तथा अगल-बगल के भाग ऊँचे उठे प्रतीत होते हैं, तो 'ब्लॉक पर्वत' कहलाते हैं | बीच में धंसे भाग को 'रिफ्ट घाटी' कहलाते हैं | इन पर्वतों के शीर्ष समतल तथा किनारे तीव्र भ्रंश-कगारों से सिमित होते हैं | इस प्रकार के पर्वत के उदाहरण हैं -बौस्जेस (फ्रांस), ब्लैक फ़ॉरेस्ट (जर्मनी), साल्ट रेंज (पकिस्तान) |
पर्वत निर्माण के विभिन्न सिद्धांत :
भू-सन्तति का सिद्धांत - कोबर
तापीय ससंकुचन का सिद्धांत - जेफ्रीज
महाद्वीपीय फिसलन - डेली
महाद्वीपीय विस्थापन - वेगनर
संवहन तरंग - होम्स
रेडियो एक्टिविटी - जोली
प्लेट विवर्तनिक - हैरी हेस
नोट: प्लेट विवर्तनिकी शब्दावली का प्रयोग टोरंटो विश्वविद्यालय के टूजो विल्सन ने 1965 ई. में किया था | प्लेट विवर्तनीकी सिद्धांत की वैज्ञानिक व्याख्या का श्रेय डब्ल्यू. जे. मॉर्गन को दिया जाता है |
नोट: विश्व की सबसे लम्बी रिफ्ट घाटी जॉर्डन नहीं की घाटी है, जो लाल सागर की बेसिन से होती हुई जेम्बजी नहीं तक 4,800 किमी लम्बी है |
(b) अवशिष्ट पर्वत (ResidualMountain):
ये पर्वत चट्टानों के अपरदन के फलस्वरूप निर्मित होते हैं , जैसे - विंध्याचल एवं सतपुड़ा, नीलगिरी, पारसनाथ, राजमहल, की पहाड़ियां (भारत), सीयरा (स्पेन), गैसा एवं बूटे (अमेरिका) |
(c) संचित पर्वत (Accumulated Mountain):
भूपटल पर मिटटी, बालू, कंकर, पत्थर, लावा के स्थान पर जमा होते रहने के कारण बनने वाला पर्वत | रेगिस्तान में बनने वाले बालू के स्तूप इसी श्रेणी में आते हैं |
(d) वलित पर्वत (Fold Mountain):
ये पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों से धरातल की चट्टानों के मुड़ जाने से बनते हैं | ये लहरदार पर्वत हैं, जिनपर असंख्य अपनतियाँ और अभिनतियां होती है , जैसे - हिमालय, आल्प्स, यूराल, रौकिज, एंडीज आदि |
वलित पर्वतों के निर्माण का आधुनिक सिद्धांत 'प्लेट टेकटॉनिक' Plate Tectonic) की संकल्पना पर आधारित है | जहां आज हिमालय पर्वत खड़ा है वहां किसी समय में टेथिस सागर नामक विशाल भू-अभिनति अथवा भू-द्रोणी थी | दक्षिण पठार के उत्तर की और विस्थापन के कारण टेथिस सागर में बल पड़ गए और वह उपर उठ गया जिससे संसार का सबसेऊँचा पर्वत हिमालय का निर्माण हुआ है |
भारत का अरावली पर्वत विश्व के सबसे पुराने वलित पर्वतों में गिना जाता है, इसकी सबसे ऊँची छोटी माउंट के निकट 'गुरुशिखर' हैं, जिसकी समुद्रतल से उंचाई 1,772 मीटर है | कुछ विद्वान अरावली पर्वतों को अवशिष्ट पर्वत का उदहारण मानते हैं |
2. पठार (Plateau):
धरातल के विशिष्ट स्थल रूप, जो अपने आस-पास के स्थल के पर्याप्त ऊँचा होता है तथा शीर्ष भाग चौड़ा और सपाट होता है | सामान्यत: पठार की उंचाई 300 से 200 फीट होती है | कुछ अधिक उंचाई वाला पठार है - तिब्बत का पठार (16,000 फीट), बोलीविया का पठार (12,000 फीट), कोलम्बिया का पठार (7,800 फीट) | पठार निम्न प्रकार के होते हैं -
(a) अंतर्पवतीय पठार : पर्वतमालाओं के बीच बने पठार |
(b) पर्वतपदीय पठार : पर्वततल व मैदान के बीच उठे समतल भाग |
(c) महाद्वीपीय पठार : जब पृथ्वी के भीतर जमा लैकोलिथ भू-पृष्ठ के अपरदन के कारण सतह पर उभर जाते हैं,तब ऐसे पठार बनते हैं , जैसे - दक्षिण का पठार |
(d) तटीय पठार: समुद्र के तटीय भाग में स्थित पठार |
(e) गुम्बदाकार पठार : चलन क्रिया के फलस्वरूप निर्मित पठार; जैसे- रामगढ़ गुम्बद (भारत) |
3. मैदान (Plain):
500 फीट से कम उंचाई वाले भूपृष्ठ के समतल भाग को मैदान कहते हैं | मैदान अनेक प्रकार के होते हैं -
A. अपरदनात्मक मैदान : नदी, हिमानी, पवन जैसी शक्तियों के अपरदन से इस प्रकार के मैदान बनते हैं, जो निम्न है -
(a) लोएस मैदान: हवा द्वारा उड़ाकर लाइ गई मिटटी एवं बालू के कणों से निर्मित होता है |
(b) कार्स्ट मैदान: चूने पत्थर की चट्टानों के घूलने से निर्मित मैदान |
(c) समप्राय मैदान : समुद्र ताल के निकट स्थित मैदान, जिनका निर्माण नदियों के अपरदन के फलस्वरूप होता है |
(d) ग्लेशियल मैदान : हिम के जमाव के कारण निर्मित दलदली मैदान, जहाँ केवल वन ही पाए जाते हैं |
(e) रेगिस्तानी मैदान: वर्षा के कारण बनी नदियों के बहने के फलस्वरूप इसका निर्माण होता है |
B. निक्षेपात्मक मैदान :
नदी निक्षेप द्वारा बड़े-बड़े मैदानों का निर्माण होता है | इसमें गंगा, सतलज, मिसिसिपी एवं ह्वांगहो के मैदान प्रमुख हैं | इस प्रकार के मैदानों में जलोड़ का मैदान, डेल्टा का मैदान प्रमुख है |
भिन्न -भिन्न कारकों द्वारा निर्मित स्थलाकृति
1. भूमिगत जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति: उत्सुत कुआँ (artision well), गीजर, घोल रंध, डोलाइन, कार्स्ट झील, युवाला, पोलिए, कन्दरा, स्टेलेकटाइट, स्टेलेकटाइट, लैपीज |\nनोट: सर्वाधिक उत्सुत कुआँ ऑस्ट्रेलिया में पाया जाता है |
2. सागरीय जल द्वारा निर्मित स्थलाकृति: सर्फ़, वेला चली , तंगरिका, पुलिन, हुक, लूंप, टोम्बोलो |
3. हिमनद द्वारा निर्मित स्थलाकृति: सर्क, टार्न, अरेट, हार्न, नुनाटक, फियोर्ड, ड्रमलिन, केम एस्कर|\nनोट: ड्रमलिन मुख्य रूप से समूह में मिलते हैं इसी कारण ऐसी स्थलाकृति को 'अंडे की टोकरी की स्थलाकृति; (Basket Of Egg topography) कहते हैं |
4. पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति : ज्युगेन, यारडंग, इंसेलबर्ग, छत्रक, प्लेया, लैगून, बरखान, लोएस |
5. समुद्री तरंग द्वारा निर्मित स्थलाकृति : समुद्री भृगु, भुजिह्वा, लैगून झील, रिया तट (भारत का प. तट), स्टैक, डाल्मेशियन (युगोस्लाविया का तट) |
सागरीय जल तरंग द्वारा निर्मित तट रेखा के प्रकार :
1. फियर्ड तट: किसी हिमानीकृत उच्च भूमि के सागरीय जल के नीचे धंस जाने से 'पियर्ड तट' का निर्माण होता है | इसके किनारे खड़ी दीवार के समान होते हैं | उदाहरण: नार्वे का तट फियर्ड तट का उदाहरण है |
2. रिया तट: नदियों द्वारा अपरदित उच्च भूमि के धंस जाने से 'रिया तट' का निर्माण होता है | इसकी गहराई समुद्र की और क्रमश: बढती जाती है | प्रायद्वीपीय भारत के पश्चिमी तट का उत्तरी भाग रिया तट का उदाहरण है |
3. हैफा तट: सागरीय तटीय भाग में किसी निम्न भूमि के डूब जाने से निर्मित तट को 'हैफा तट' कहते हैं | इस पर रोधिकाओं की समान्तर श्रृंखला मिलती है | जिससे सागरीय जल घिर कर 'लैगून' झीलों का निर्माण करता है | यूरोप का बाल्टिक तट हैफा तट का अच्छा उदाहरण है |
4. डौल्मेशियन तट: समानांतर पर्वतीय कटकों वाले तटों के धंसाव से डौल्मेशियन तट का निर्माण होता है | युगोस्लाविया का डौल्मेशियन तट इसका उदाहरण है |
5. निर्गत समुद्र तट: स्थल खंड के उपर उठने या समुद्री जलस्तर के नीचे गिरने से निर्गत समुद्र तट का निर्माण होता है | इस प्रकार के तट पर स्पिट, लैगून, पुलिन, क्लिफ एवं मेहराब मिलते हैं | भारत में गुजरात का काठियावाड़ तट निर्गत समुद्र तट का उदाहरण है |
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