ज्वार - भाटा क्या है (Jwar -Bhata kya hai in hindi )
हिन्द महासागर की ठंडी एवं स्थायी जलधाराएँ
1. पश्चिम आस्ट्रेलिया की जलधारा
नोट : हिन्द महासागर की ग्रीष्मकालीन मानसून की जलधारा गर्म एवं परिवर्तनशील जलधारा है एवं शीतकालीन मानसून प्रवाह ठंडी एवं परिवर्तनशील जलधारा है |
सारगैसो सागर
उतरी अटलांटिक महासागर में 20० से 40० उतरी अक्षांशो तथा 35० से 75० पश्चिम देशांतरों के मध्य चारों ओर प्रवाहित होने वाली जलधाराओं के मध्य स्थित शांत एवं स्थिर जल के क्षेत्र को सारगैसो सागर के नाम से जाना जाता है | यह गल्फ स्ट्रीम,कनारी और उतरी विषुवतीय धाराओं के चक्र बीच स्थित शांत जल क्षेत्र है | इसके तट पर मोटी समुद्री घास तैरती है | इस घास को पुर्तगाली भाषा में सारगैसम कहते है जिसके नाम पर ही इसका नाम सारगैसो सागर रखा गया है | सागैसम जड़विहीनघास है | सारगैसो सागर का क्षेत्रफल लगभग 11000 वर्ग किमी है | यहाँ अटलांटिक की सर्वाधिक लवणता 37% व औसत वार्षिक तापमान 26०C मिलती है |
सारगैसो सागर को सर्वप्रथम स्पेन के नाविकों ने देखा था |
सारगैसो सागर को महासागरीय मरुस्थल के रूप में पहचाना जाता है |
• न्यूफाउंडलैंड के समीप गल्फ स्ट्रीम एवं लेब्राडोर जलधारा मिलती है | न्यूफाउंडलैंड पर ही समुद्री मछली पकड़ने का प्रसिद्ध स्थान ग्रैंड बैंक उतरी अटलांटिक महासागर में स्थित है |
• गर्म एवं ठंडी जलधारा जहाँ मिलती है वहां प्लैकटन नामक घास मिलती है जो मछलियों का मुख्य आहार है जिससे उस स्थान पर मत्स्य उद्योग अत्यधिक विकसित हुआ है | डॉगर बैंक,ग्रैंड बैंक, एवं जार्ज बैंक आदि मत्स्य क्षेत्रों की उपस्थिति ऐसे क्षेत्रों में विद्यमान है |
• जापान के निकट क्यूरो-शिवो की गर्म धारा तथा ओय-शिवो की ठंडी धारा के जल मिलने से वहां घना कुहासा छाया रहता है |
• महासागरों के पश्चिमी भाग में विषुवत रेखा के समीप उतर तथा दक्षिण विषुवत रेखीय धाराओं के अभिसरण के कारण इतनी अधिक मात्रा में जलराशि एकत्रित हो जाती है कि पश्चिम से पूर्व की ओर सामान्य ढाल बन जाता है | फलस्वरूप प्रति विषुवतीय धारा प्रवाहित होने लगती है |
• ला-नीना एक शीतल जलधारा है जिसकी उत्पति पेरू के तटवर्ती क्षेत्रों में होती है वही एल-नीनो एक गर्म जलधारा है जिसकी उत्पतिपेरू के तट पर समानांतर उतर से दक्षिण की ओर होती है | ला-नीना का प्रवाह क्षेत्र एल-नीनो की तरह प्रशांत क्षेत्र के विशेष रूप रे पेरू का तटीय क्षेत्र होता है | यह कभी भी हिन्द महासागरीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं करती किन्तु इन दोनों का प्रभाव वैश्विक होता है | जिस वर्ष ला-नीना जल धारा की गहनता होती है उस वर्ष भारतीय मानसून ज्यादा तीव्र होता है | वहीं एल-नीनो भारतीय मानसून को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है |
ज्वार - भाटा क्या है (Jwar -Bhata kya hai in hindi )
ज्वार-भाटा
ज्वार-भाटा :- चन्द्रमा एवं सूर्य की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वार-भाटा कहते है | सागरीय जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने को ज्वार तथा सागरीय जल को नीचे गिरकर पीछे लौटने (सागर की ओर ) को भाटा कहते है |
• महासागरों और समुद्रों में ज्वार-भाटा के लिए उतरदायी कारक है -
👉1. सूर्य का गुरुत्वीय बल
👉2. चन्द्रमा का गुरुत्वीय बल एवं
👉3. पृथ्वी का अपकेन्द्रीय बल |
• चन्द्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य की अपेक्षा दुगुना होता है, क्योकि यह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है |
• अमावस्या और पूर्णिमा के दिन सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं l अत: इस दिन उच्च ज्वार उत्पन्न होता है |
• दोनों पक्षों की सप्तमी और अष्टमी को सूर्य और चन्द्रमा पृथ्वी के केंद्र पर समकोण बनाते है इस स्थिति में सूर्य और चन्द्रमा के आकर्षण बल एक दुसरे को संतुलित करने के प्रयास में प्रभावहीन हो जाते है | अत: इस दिन निम्न ज्वार उत्पन्न होता है |
• पृथ्वी पर प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट के बाद ज्वार तथा ज्वार के 6 घंटा 13 मिनट के बाद भाटा आता है |
• ज्वार प्रतिदिन दो बार आते है - एक बार चन्द्रमा के आकर्षण से दुसरी बार पृथ्वी के अपकेन्द्रीय बल के कारण |
• सामान्यत: ज्वार प्रतिदिन दो बार आते है - किन्तु इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित साउथहैम्पटन में ज्वार दिन में 4 बार आते है | यहाँ हो बार ज्वार इंग्लिश चैनल से होकर और दो बार ऊतरी सागर से होकर विभिन्न अंतरालो पर पहुंचते है |
• महासागरीय जल की स्थिति का औसत दैनिक तापान्तर नगण्य होता है (लगभग 1०C)
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