सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण भाग-I भाषा (भाषा क्या होती है?)

भाषा वह साधन है, जिसके माध्यम से मनुष्य बोलकर, लिखकर या संकेत कर परस्पर अपना विचार सरलता, स्पष्टता, निश्चितता तथा पूर्णता के साथ प्रकट कर सकता है”
यह किसी एक व्यक्ति संपति नहीं है, समाज की उपज है | यह शब्दों से तो बनती है, पर उसी पर खत्म  नहीं होती है | शब्दों के अर्थ और कहीं नहीं, हमारे  पाने ही मन में होते हैं | हम अपने सामजिक क्षेत्र में कुछ विचारों, कार्यों, वस्तुओं आदि का संबंध कुछ विशिष्ट शब्दों या ध्वनियों से स्थापित कर लेते हैं | यही कारण है कि कोई बात सुनकर या पढ़कर उसका अर्थ (भाव)  हम इसलिए समझ लेते है हम जानते है कि वक्ता या लेखक अपने इन शब्दों से वही आशय प्रकट कर रहा है, जो आशय आवश्यकता पड़ने पर स्वयं हम अथवा हमारे समाज के अन्य लोग इनसे प्रकट करते आए हैं |

यों तो भाषा को हम दो रूपों में ही स्पष्टतया व्यक्त करते हैं – लिखकर अथवा बोलकर परन्तु सांकेतिक भाषा का ही अपना महत्व हुआ करता है | यह सांकेतिक रूप केई रूपों में हमारे सामने आता है | उदाहरणस्वरूप :-

(क) विभिन्न रंगो से संकेत कर : ट्रैफिक चौराहों पर लाल और हरे रंगो द्वारा ख़ास -ख़ास बातें कही जाती है | लाल रंग ठहरने का और हरा रंग आगे बढ़ने की तरफ़ इशारा करता है |अस्पतालों में भी रंगों का प्रयोग देखने को मिलता है | इसी तरह विभिन्न अधिकारियों की गाड़ियों में भी रंगीन बल्बों द्वारा ख़ास तरह की सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जाता है |

(ख) ध्वनि संकेत : भारी लट्ठों या वजनी सामानों को उठाने या धकेलने में ध्वनि संकेत दिखता है | सायरन की आवाज , भोंपू की आवाज , स्कूलों में घंटी की आव़ाज , अग्निशामक यंत्रो की आव़ाज , इसी तरह मवेशियों या पक्षियों को कुछ कहने या समझाने के लिए हम ध्वनि – संकेतों का प्रयोग करते है |यह ध्वनि संकेत शब्दों या वाक्यों में दर्शाए नहीं जा सकते, परन्तु इनका महत्व तो होता ही है |

(ग) आंगिक – संकेत : विभिन्न अवसरों पर हम अपने विभिन्न अंगों जैसे मुख, नाक, आँख, हाथ, ओंठ, गर्दन, ऊँगली आदि द्वारा अपने मण के भाव को व्यक्त करते है या अभिव्यक्ति से अवगत होते है |इन आंगिक संकेतों के कारण ही भाषा में अंगों से सम्बन्धित मुहावरों का प्रयोग दिखता है |
हाँ, यह सच है कि एक ही संकेत विभिन्न अवसरों पर भिन्न भिन्न भाषों को व्यक्त करते है ; परन्तु इतना भर से इस माध्यम को महत्वहीन मान लेना बुद्धिमता नहीं |अगर इस आधार पर सांकेतिक भाषा को खारिज कर दिया जाए तो फिर गुंगो और बहरों के लिए किस माध्यम का प्रयोग होगा ?
दुसरा ट्रक यह भी है कि क्या लिखित या मौखिक कोई शब्द ही भिन्न भिन्न स्थानों पर भिनार्थ प्रकट नहीं करता : एक उदाहरण लेते है –

‘ काटना ‘ के विभिन्न प्रयोग
a) जंगल काटे जा रहे है |
b) सांप ने काट खाया है |
c) उसका वेतन काट लिया गया |
d) उसने दांत काट लिया |
e) बिल्ली रास्ता काट गई |
f) उसकी ऐसी स्थिति हो गई कि काटो तो खून नहीं |
g) वह बात काटकर चला गया
h) उससे तो समय काटते नहीं कटता |
i) वह बच्चा बड़े बड़ो के कान काटता है |
ऊपर के प्रयोगों से स्पष्ट है कि शब्दों के भिन्न भिन्न अर्थ होते है जो परिस्थिति एवं प्रयोग पर निर्भर करते है | संस्कृत के विद्वानों ने स्पष्ट रूप से स्वीकारा है – “ शब्दानाम अनेकार्थ |”
यही तो स्थिति है सांकेतिक भाषा की भी तरीके को भी : फिर इसे भाषा व्यक्त करने का तरीका न मानना भूल ही है | हाँ यह सत्य है कि भाषा के लिखित और मौखिक रूपों का ज्यादा प्रयोग हो रहा है |

भाषा व्यक्त करने के चाहे जो भी तरीके हों, हम किसी न किसी शब्द, शब्द समूहों या भावों की ओर ही इशारा करते है जिनसे सामनेवाला अवगत होता है | इसलिए भाषा में हम केवल सार्थक शब्दों की बातें करतें है | इन शोब्दों या शब्द समूहों (वाक्यों)  द्वारा हम अपनी आवश्यकताएं, इच्छाएँ , प्रसन्नता या खिन्नता, प्रेम या घृणा, क्रोध अथवा संतोष प्रकट करते है | हम शब्दों का प्रयोग कर बड़े बड़े काम कर जाते है या मूर्खतापूर्ण प्रयोग कर बने बनाये काम को बिगाड़ बैठते है |हम इसके प्रयोग कर किसी क्रोधी के क्रोध का शमन कर जाते है तो किसी शांत-गम्भीर व्यक्ति को उत्तेजित कर बैठते है | किसी को प्रोत्साहित तो किसी को हतोत्साहित भी हम शब्द प्रयोग से ही करते है | कहने का यह तात्पर्य है कि हम भाषा के द्वारा बहुत सारे कार्यों को करते है | हमारी सफलता या असफलता (अभिव्यक्ति के अर्थ में)  हमारी भाषायी क्षमता पर निर्भर करती है |

भाषा से हमारी योग्यता अयोग्यता सिद्ध होती है | जहां अच्छी और सुललित भाषा हमें सम्मान दिलाती है वहीं अशुद्ध और फूहड़ भाषा हमें अपमानित कर जाती है (समाज में)  | स्पष्ट है कि भाषा ही मनुष्य की वास्तविक योग्यता, विद्वता और बुद्धिमता , उसके अनुशीलन, मनन और विचारों की गम्भीरता उसके गुढ़ उद्देश्य तथा उसके स्वभाव, सामाजिक स्थिति का परिचय देती है |

कोई अपमानित होना नहीं चाहता |अतएव, हमें सदैव सुंदर और प्रभावकारिणी भाषा का प्रयोग करना चाहिए | इसके लिए यह आवश्यक है कि हमारा प्रयत्न निरंतर जारी रहे | भाषा में पैठ एवं अच्छी जानकारी के लिए हमें निम्नलिखित बातों पर हमेशा ध्यान देना चाहिए –

(क) हम छोटी छोटी भूलों पर सूक्ष्म दृष्टि रखें और उसे दूर करने के लिए प्रयत्नशील रहें | चाहे जहां कहीं भी हों अपनी भाषायी सीमा का विस्तार करें | दूसरों की भाषा पर भी ध्यान दें |

(ख) खासकर बच्चों की भाषा पर विशेष ध्यान दें | यदि हम उनकी भाषा को शुरू से ही व्यवस्थित रूप देने में सफल होते है तो निश्चित रूप से उसका (भाषा का)  वातावरण तैयार होगा |

(ग) सदा अच्छी व ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन करें | उन पुस्तकों में लिखे नये शब्दों के अर्थों एवं प्रयोगों को सीखें | लिखने एवं बोलने की शैली सीखें |

(घ) वाक्य प्रयोग करते समय इस छोटी सी बात हमेशा ध्यान रखें – हर संज्ञा के लिए एक उपयुक्त विशेषण एवं प्रत्येक क्रिया के लिए सटीक क्रिया विशेषण का प्रयोग हो |

(ङ) विराम चिन्हों का प्रयोग उपयुक्त जगहों पर हो |लिखते और बोलते समय भी इस बात का ध्यान रहे |

(च) मुहावरें ,लोकोक्तियों , बिम्बों आदि का प्रयोग करना सीखें और आस पास के लोगों को सिखाएं |

(छ) जिस भाषा में हम अधिक जानकारी बढ़ाना चाहते है हमे उसके व्यावहारिक व्याकरण का ज्ञान होना आवश्यक है |

हमें सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि भाषा परिवर्तनशील होती है | किसी भाषा में नित नये शब्दों, वाक्यों का आगमन होते रहता है और पुराने शब्द टूटते, मिटते रहते है | किसी शब्द या वाक्य को पकड़े रहना कि यह ऐसा ही प्रयोग होता आया है और आगे भी ऐसा ही रहेगा या यहीं रहेगा – कहना भूल है | आज विश्व में कुल 2796 भाषाएँ और 400 लिपियाँ मान्यता प्राप्त है | एक ही साथ इतनी भाषाएँ और लिपियाँ नहीं आई | इनका जन्म विकास के क्रम में हुआ, टूटने फूटने से हुआ |

हम जानते है कि हर भाषा का अपना प्रभाव हुआ करता है | हर आदमी की अपने- अपने हिसाब से भाषा पर पकड़ होती है और उसी के अनुसार वह एक दुसरे पर प्रभाव डालता है | जब पारस्परिक सम्पर्क के कारण एक जाति की भाषा का दूसरी जाति की भाषा पर असर पड़ता है तब निश्चित रूप से शब्दों का आदान प्रदान भी होता है | यही कारण है कि कोई भाषा अपने मूल रूप में नहीं रह पाती और उससे अनेक शाखाएं विभिन्न परिस्थितियों के कारण फूटती रहती है तथा अपना विस्तारकर अलग अलग समृद्ध भाषा का रूप ले लेती है | इस बात को हम एक सरल उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझने का प्रयास करें –


कल्पना कीजिये कि किसी कारण से अलग अलग चार भाषाओं के लोग कुछ दिन तक एक साथ रहे | वे अपनी अपनी भाषाओं में एक दूसरे से बातें करते सुनते रहे | चारों ने एक दूसरे की भाषा के शब्द ग्रहण किये और अपने अपने साथ लेते गये |अब प्रश्न उठता है कि चारों में से किसी की भाषा अपने मूल रूप से रह पायी ? इसी तरह यदि दो चार पीढ़ियों तक उन चारों के परिवारों का एक साथ उठना बैठना हो तो निश्चित रूप से विचार विनिमय के लिए एक अलग ही किस्म की भाषा जन्म ले लेगी, जिसमें चारों भाषाओं के शब्दों और वाक्यों का प्रयोग होगा | उस नई भाषा में उक्त चारों भाषाओं के सरल और सहज उच्चरित होने वाले शब्द ही प्रयुक्त होंगे वे भी अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार और सरलतम रूपों में , क्योकि जब कोई एक भाषाभाषी दूसरी भाषा के शब्दों को ग्रहण करता है तो वह सरलतम शब्दों का चयन करके भी उसे अपने अनुसार सहज बना लेता है | निम्नलिखित उदाहरणों से इसका अंदाजा लगायें –

1. मूल शब्द :- बाह्य
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- बाह > बाहर

2. मूल शब्द :- मध्यम
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- मुझ

3. मूल शब्द :- सप्तत्रिंशत
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- सैंतीस

4. मूल शब्द :- मन्सकामना
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- मनोकामना

5. मूल शब्द :- दक्षिण
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- दखिन > दाहिन > दहिन > दहिना > दाहिना

6. मूल शब्द :- परीक्षा
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- परिखा > परख

7. मूल शब्द :- अग्नि
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- अगिन > आग

8. मूल शब्द :- कुमार (संस्कृत)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- कुँवर

9. मूल शब्द :- जायगाह (फ़ारसी)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- जगह

10. मूल शब्द :- लीचु (चीनी)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- लीची

11. मूल शब्द :- ओपियम (यूनानी)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- अफीम

12. मूल शब्द :- लैंटर्न (अंग्रेजी)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- लालटेन

13. मूल शब्द :- बेयरिंग (अंग्रेजी)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- बैरंग

14. मूल शब्द :- कैड्ल (अंग्रेजी)
• विभिन्न भाषाओं में रूपांतरण :- कंदिल > कंडील

हिंदी व्याकरण भाषा के अगले भाग के लिए :- भाग - II पर क्लिक करें नोट :- हिंदी व्याकरण के प्रत्येक भाग को हर दिन जोड़ा जाएगा | इसलिए funnseries.blogspot.com से जुड़े रहें | अभिनन्दन...
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