हिंदी व्याकरण भाग -I भाषा (भाषा के आधार)
रविवार, 19 अप्रैल 2020
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मानसिक आधार से आशय है वे विचार या भाव , जिनकी अभिव्यक्ति के लिए वक्ता भाषा का प्रयोग करता है और भौतिक आधार के जरिये श्रोता ग्रहण करता है | इसके सहारे भाषा में प्रयुक्त ध्वनियाँ (वर्ण,अनुतान,स्वराघात आदि) और इनसे निकलने वाले विचारों या भावों को ग्रहण किया जाता है | जैसे – ‘फूल’ शब्द का प्रयोग करनेवाला भी इसके अर्थ से अवगत होगा और जिसके सामने प्रयोग किया जा रहा (सुननेवाला) वह भी | यानी भौतिक आधार अभिव्यक्ति का साधन है और मानसिक आधार साध्य |दोनों के मिलने से ही भाषा का निर्माण होता है | इन्हें ही ‘ बाह्य भाषा’ और आंतरिक भाषा कहा जाता है |
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पहले ही कहा गया है कि भाषा समाज द्वारा अर्जित सम्पति है और उसका अर्जन मानव अनुकरण के सहारे समाज से करता है | यह अनुकरण यदि ठीक ठाक हो तो मानव किसी शब्द को ठीक उसी प्रकार उच्चरित करेगा , परन्तु ऐसा होता नहीं है | वाक्य अर्थ आदि का अनुकरण मानसिक रूप में समझकर किया जाता है | अनुकरण करने में प्राय: अनुकर्ता कुछ भाषिक तथ्यों को छोड़ डेटा है और कुछ को जोड़ लेता है | जब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी, भाषा का अनुकरण कर रही होती है , तब ध्वनि, शब्द , रूप , वाक्य , अर्थ – भाषा के पाँचों क्षेत्रों में इसे छोड़ने और जोड़ने के कारण परिवर्तन बड़ी तेजी से होता है | इस अनुकरण की अपूर्णता के लिए कई कारण जिम्मेदार है –
शारीरिक विभिन्नता, एकाग्रता की कमी, शैक्षिक स्तरों में अंतर का होना, उच्चारण ,कठिनाई होना, भौतिक वातावरण,सांस्कृतिक प्रभाव, सामाजिक प्रभाव आदि |
उपर्युक्त प्रभावों के कारण अनुकरणात्मक विविधता के कुछ उदाहरण देखें –
1. तृष्णा > तिसना/टिसना
2. शिक्षा > सिच्छा
3. रिपोर्ट > रपट
4. स्कूल > ईसकूल
5. प्राण > परान
अनुकरण की यह प्रवृति या भाषा का यह रूप भूगोल पर आधारित है | एक भाषा क्षेत्र में कई बोलियाँ हुआ करती है और इसी तरह एक बोली क्षेत्र में कई उपबोलियाँ | बोली के लिए विभाषा,उपभाषा अथवा प्रांतीय भाषा का भी प्रयोग किया जाता है | बोली का क्षेत्र छोटा और भाषा का बड़ा होता है | यों तो प्रकृति की दृष्टि से भाषा और बोली में अंतर कर पाना कठिन है फिर बी यहाँ कुछ सामान्य अंतर दिए जा रहे है –
“ बोली किसी भाषा के एक ऐसे सीमित क्षेत्रीय रूप को कहते है जो ध्वनि, रूप, वाक्य-गठन,अर्थ, शब्द-समूह तथा मुहावरे आदि की दृष्टि से उस भाषा के परिनिष्ठित तथा अन्य क्षेत्रीय रूपों से भिन्न होता है ; किन्तु इतना भिन्न नहीं कि अन्य रूपों के बोलने वाले उसे समझ न सकें , साथ ही जिसके अपने क्षेत्र में कहीं भी बोलनेवालों के उच्चारण, रूप-रचना, वाक्य गठन, अर्थ, शब्द-समूह तथा मुहावरों आदि में कोई बहुत स्पष्ट और महत्वपूर्ण भिन्नता नहीं होती |”
भाषा का क्षेत्र व्यापक हुआ करता है | इसे सामाजिक ,साहित्यिक , राजनैतिक, व्यापारिक आदि मान्यताएँ प्राप्त होती है , जबकि बोली को मात्र सामाजिक मान्यता ही मिल पाती है | भाषा का अपना गठित व्याकरण हुआ करता है ; परन्तु बोली का कोई व्याकरण नही होता | हाँ, बोली ही भाषा को नये नये बिम्ब, प्रतीकात्मक शब्द, मुहावरे,लोकोक्तियाँ आदि समर्पित करती है | जब कोई बोली विकास करते करते उक्त सभी मान्यताएँ प्राप्त कर लेती है , तब वह बोली न रहकर भाषा का रूप धारण कर लेती है | जैसे- खड़ी बोली हिंदी जो पहले (द्विवेदी-युग से पूर्व) मात्र प्रांतीय भाषा या बोली मात्र थी वह आज भाषा ही नहीं राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त कर चुकी है |
एक बोली जब मानक भाषा बनती है और प्रतिनिधि हो जाती है तो आस – पास की बोलियों पर उसका भारी प्रभाव पड़ता है | आज की खड़ी बोली ने ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिलि, मगधी आदि सभी को प्रभावित किया है | हाँ, यह भी देखा जाता है कि कभी कभी मानक भाषा कुछ बोलियों को बिल्कुल समाप्त भी कर देती है | एक बात और है, मानक भाषा पर स्थानीय बोलियों का प्रभाव ही देखा जाता है |
एक उदाहरण द्वारा इसे आसानी से समझा जा सकता है –
बिहार राज्य के बेगूसराय,खगडिया,समस्तीपुर आदि जिलों में प्राय: ऐसा बोला जाता है – हम कैह देंगे | हम ने करेंगे आदि |
भोजपुर क्षेत्र में : हमें लौक रहा है (दिखाई पड़ रहा है ) | हम काम किये (हमने काम किया)
पंजाब प्रांत का असर : हमने जाना है (हमको जाना है)
दिल्ली – आगरा क्षेत्र में : वह कहवे था/मैं जाऊं | मेरे को जाना है |
कानपुर आदि क्षेत्रों में : वह गया हैगा |
एक भाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ हो सकती है जबकि एक बोली में कई भाषाएँ नहीं होती | बोली बोलने वाले भी अपने क्षेत्र के लोगों से तो बोली में बातें करते है | किन्तु बाहरी लोगों से भाषा का ही प्रयोग करते है |
हिंदी व्याकरण , भाषा क्या होती है ,भाषा भाग पढने के लिए भाग-I पर क्लिक करें |
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