विराम चिन्ह के विभिन्न प्रकार व् वाक्यों में प्रयोग होने वाले चिन्हों के अर्थ
2. भावचिन्ह
चिन्हों का प्रयोग |
a. प्रश्नबोधक -- ?
प्रश्न का बोध करानेवाले वाक्य के अंत में इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है | साधारणत: ,कौन,क्या,कब,कहां,कैसे,क्यों,किसलिए आदि का प्रयोग रहने पर यदि इनसे प्रश्न का भाव व्यंजित हो तो वाक्यांत में इस चिन्ह का प्रयोग किया जाएगा | जैसे – वह क्या खाता है ?
वहाँ कौन था ?
दादाजी कब आएँगे ?
परन्तु यदि प्रश्न की भाव व्यंजित नहीं हो तो प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं आएगा | जैसे --- मैं क्या बताऊं, श्रीमान् ! वह कब और कहां जाता है, समझ नहीं पा रहा |
नोट: ध्यान रहे, प्रश्न किया जाता है ,पूछा नहीं | जैसे- शिक्षक ने प्रश्न किया | बच्चा प्रश्न करता है |
b. विस्मयादिबोधक चिन्ह (!)
विस्मय ,हर्ष,शोक,घृणा,प्रेम आदि भावों को प्रकट करनेवाले शब्दों के आगे इसका प्रयोग होता है | जैसे – शाबाश ! इसी तरह सफल होते रहो | , आह ! कितना कठिन समय है |
नोट: सम्बोधित संज्ञा के बाद भी इस चिन्ह का प्रयोग होता है ; परन्तु उस स्थल पर यह सम्बोधन का चिन्ह कहलाता है , विस्मयादिबोधक नहीं | जैसे – प्रवर! यहाँ आइये |
c. निर्देशक चिन्ह (—)
इस चिन्ह का प्रयोग निम्नलिखित स्थलों पर होता है –
i. जहां उदाहरण देना है | जैसे –भीषण गर्मी से पशु-पक्षी — गाय, घोड़ा, कोयल — सभी परेशान थे |
इतने में कोई गरजा – “रास्ता छोड़ो |”
ii. वार्तालाप में वक्ता के नाम के बाद | जैसे – रणधीर — तुम कम आओगे ?
iii. जहाँ वाक्य टूटता है | जैसे – इस घटना को अंजाम दिया आपमें से ही किसी ने — खैर , छोड़िये इन बातों को — अंशुमान कैसा है ?
मेरी सहेली ने — ईश्वर उसका भला करे — संकट में मेरी सहायता की |
iv. वाक्य में किसी पद का अर्थ अधिक स्पष्ट करना हो या किसी बात को दुहराना हो तब | जैसे – वह उनकी एक बात पर जान देने को तैयार है — केवल एक बात पर |
v. बार-बार अर्थ की स्पष्टता के लिए | जैसे – आत्मनिर्भरता — अपने ऊपर भरोसा — अपनी मेहनत का सहारा उन्नति का मूलमंत्र है |
d. योजक चिन्ह (Hyphen) — (-)
द्वंद्व समास के दो पदों के बीच,युग्म शब्दों के बीच,सहचर शब्दों के बीच में इसका प्रयोग देखा जाता है | जैसे — माता-पिता दोनों खुश थे |
बेरोजगार इधर-उधर भटकते रहते है |
यदि दो पदों के बीच किसी परसर्ग (कारक चिन्ह) की उपस्थिति लगे तो वहां योजक का प्रयोग करना चाहिए | जैसे – पद-परिचय (पद का परिचय), वहाँ पर कारक-चिन्ह होगा | (कारक का चिन्ह)
e. कोष्ठक चिन्ह – ( )
इस चिन्ह का प्रयोग सामान्यतया दो जगहों पर होता है :
i. किसी पद का अर्थ स्पष्ट करने के लिए |जैसे- सहर (सुबह) होते ही मजदूर निकल पड़े काम की तलाश में |, वह अनवरत (लगातार) काम करता रहा |
ii. वक्ता के मनोभाव को स्पष्ट करने के लिए | भगतसिंह : (उत्तेजित होकर) मैं मादरे हिन्द की ख़िदमत में अपना सिर चढ़ाने के लिए तैयार हूँ |
f. अवतरण चिन्ह (“ “ / ‘ ‘)
वह चिन्ह इकहरा एवं दुहरा दोनों रूपों में प्रयुक्त होता है ; किन्तु दोनों के प्रयोग में अंतर है | इकहरे का प्रयोग निम्नलिखत स्थानों पर होता है :
i. वाक्य में प्रयुक्त लोकोक्ति या कहावत में | जैसे – उससे जब कभी कहो कि अपना गायन प्रस्तुत करे तो वह कह बैठेगा, साज ही ठीक नहीं है | इसे ही कहते है “नाच न जाने आँगन टेढ़ा” |
ii. किसी शब्द को High light करने के लिए | जैसे – वस्तु, व्यक्ति,स्थान, भावादि के नाम को ‘संज्ञा’ कहते है |
iii. किसी शब्द के व्यंग्यार्थ प्रयोग में | जैसे – चारों और मार-काट, आतंकवादी गतिविधियाँ, भ्रष्टाचार का बोलबाला, वच्चो तक का अपहरण, भयपूर्ण वातावरण, घर से निकलकर पुन: सही-सलामत लौटना — इसकी निश्चितता नहीं | आखिर क्यों न तो हमारा भारत ‘महान’ जो है |
इस वाक्य में महान शब्द में व्यंग्यार्थ है | इसलिए इसे Single Inverted Commas के अंतर्गत रखा गया है | दुहरे का प्रयोग किसी वक्ता या लेखक के कथन को हू-ब-बू लिखने में किया जाता है | जैसे – मुंशी प्रेमचन्द ने कहा है – “स्त्रियों के आँसू पुरुषों को क्रोधाग्नि भड़काने में घी का काम करते है | “
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने ठीक ही कहा है – “धीरे-धीरे कुछ नहीं मिलता, सिर्फ मौत मिलती है |”
g. लाघव चिन्ह (०)
लघु में लाघव बना है | किसी प्रचलित बड़े शब्द के छोटे रूप को (प्रथम अक्षर) दर्शाने के लिए इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है | जैसे ---
पं० नेहरु स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री थे | ,डॉ० मित्तल चक्षुरोग के लोकप्रिय चिकित्सक है |
उक्त वाक्यों में क्रमश: पं०-पण्डित के लिए और डॉ० – डॉक्टर के लिए प्रयुक्त हुआ है |
h. विवरण चिन्ह – (:- )
जब किसी पद की व्याख्या करनी हो या उसके सम्बन्ध में विस्तार से कुछ कहना हो तो इस चिन्ह का प्रयोग होता है | जैसे --- रूपान्तर की दृष्टि से शब्द के दो प्रकार होते है :- विकारी एवं अविकारी
पद :- वाक्यों में प्रयुक्त शब्द अर्थवाची बनकर पद बन जाते है |
विवरण चिन्ह का प्रयोग आवेदन पत्र या प्रार्थना पत्र में ‘विषय’ एवं ‘द्वारा’ के बाद होता है |
i. लोप चिन्ह – (.......,xxxx) इस चिन्ह का प्रयोग कई जगहों पर और विभिन्न उद्देश्यों से किया जाता है :
i. वाक्य में छोड़े गये अंश के लिए | जैसे – अरे ! अभी तक तुम ............. |
ii. गोपनीय या अश्लील पदों को छुपाने के लिए | जैसे – दारोगा ने उसे माँ – बहन सम्बन्धी गाली देते हुए कहा ___________ |
iii. रिक्त स्थान दिखाने के लिए | जैसे – जिसका आदि होता है ,उसका _________भी निश्चित है |
iv. कहानी आदि में सस्पेंस लाने या उत्तरोत्तर जिज्ञासा बढ़ाने के लिए भी परिणिति को छुपाने के इए इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है |
नीचे लिखी कहानी के अंश को पढ़े और अंदाजा लगायें :
शहर से दूर उस पहाड़ी की सुरम्य बादी में एक आवासीय विद्यालय है | विद्यालय – भवन के पीछे विशाल क्रीडाक्षेत्र, जिसके उत्तर पगडंडी और उससे सटी घनी झाड़ियाँ, जहां दिन में भी दर लगता है | रविवार की शाम थी | छात्रावासीय बच्चे फ़ुटबाल खेल रहे थे | अभी कुछ दिन पहले ही एक सुंदर सुकुमार बालक का नामांकन हुआ था | वह भी अपने नन्हे पाँवों से बॉल पर ठोकर लगा रहा था | ऐसा मौका उसे कम ही मिलता था | प्राय: बड़े बच्चे ही उस खेल का आनंद ले रहे थे | यह तो कभी कभार दूर जाते से बॉल को पकर कर बड़ो के ह्बाले करने में ही अपना अहोभाग्य मानता था | अभी एक बड़े बच्चे ने जोर की किक मारी कि बॉल तेजी से झाड़ी की तरफ़ बढ़ा | छोटा बच्चा बॉल के पीछे दौड़ा | आगे बॉल , पीछे बालक | बॉल भागता रहा और बालक पीछा करता रहा | बॉल बढ़ते बढ़ते रास्ता पार कर झाड़ी से अटक गया | दौड़ता हुआ बालक वहां पहुंचा | उसने बॉल पकड़ने के लिए ज्योंही अपने नन्हे हाथ बढाये कि........................... |\n सहज ही पाठक या श्रोता की जिज्ञासा होगी कि आगे क्या हुआ ? कहीं बच्चे का अपहरण तो नहीं हो गया ? या किसी खूंख्वार जानवर ने तो नहीं धर-दबोचा ? आदि-आदि शंकाएं सहज रूप में उन्हें होंगी |
आजकल प्राय: दूरदर्शन पर दिखाए जानेवाले धारावाहिकों में व्यावसायिक दृष्टिकोण से ऐसे ही स्थलों पर एपिसोड को खत्म कर दिया जाता है | कुछ निम्नस्तरीय उपन्यासकार या चित्रकथाकार अपनी रचनाओं में इस तरीके को अपनाकर श्रोताओं, दर्शकों या पाठकों का ब्लैकमेलिंग करते है जो सर्वथा अन्याय है ; क्योंकि उनका वे मनोरंजन न कर नाहक चिन्तन- मनन के झमेले में डाल देते है |
j. त्रुटि चिन्ह/ हंसपद – (^)
वाक्य में किसी पद या वाक्य के छुट जाने पर उस स्थान पर ही जहां इनका प्रयोग अपेक्षित था इस चिन्ह का प्रयोग कर ठीक उसके ऊपर उस छुटे अंश को लिखा जाता है | जैसे --- वह रोज 9(^) बजे दुकान खोलता है और रात के दस बजे दुकान बढ़ाकर घर आ जाता है |
k. अनुवृति चिन्ह—(‘’)
जब लिखने में एक ही शब्द बार-बार ठीक नीचे लिखना पड़ना है तब इस चिन्ह का प्रयोग किया जाता है | जैसे -
‘’ हजारी प्रसाद ‘द्विवेदी’
’’ रामचन्द्र शुक्ल
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