अव्यय या अविकारी शब्द क्या होते हैं व् इनके प्रकार
अव्यय या अविकारी शब्द
अव्यय प्राय: लिंग, वचन, परसर्ग आदि से अप्रभावित रहते हैं | ऐसे शब्द प्रत्येक स्थिति में
अपने मूल रूप में बने रहते हैं | नीचे लिखे उदाहरणों को देखें –
1.
आज लड़कों ने सूर्यग्रहण का रहस्य जान लिया |
2.
आज लड़कियों ने अपनी कक्षाओं में कमाल कर दिया |
3.
आज कुछ कृषि वैज्ञानिक आए |
उपर्युक्त
वाक्यों में पद ‘आज’
अव्यय है | हम एक और उदाहरण लेते हैं –
शब्द परिवर्तित रूप
संज्ञा : लड़का लड़के, लड़की,
लड़कों ........................
सर्वनाम : मैं मेरा, मैंने, मुझे, ........................
विशेषण : अच्छा अच्छी, अच्छे, ........................
क्रिया : खा खाता, खाते, खाती,
खाएं, खाऊं ........................
अव्यय : अब x x x x x
कब x x x x x
न x x x x x
वाह x x x x x
काश x x x x x
अव्यय
शब्दों में विकार (परिवर्तन) न होने के कारण ही ये ‘आवकारी’ के नाम से भी जाने जाते हैं | ये चार
प्रकार के होते हैं –
1. क्रियाविशेषण
“वह शब्द, जो क्रिया की विशेषता, समय,
स्थान, रीति (शैली) और परिमाण (मात्रा) बताए, ‘क्रियाविशेषण’ (Adverb) कहलाता है |” जैसे –
वह परसों जाएगा | (समयसूचक)
वह घोड़ा बहुत तेज दौड़ता है | (रीति)
अर्थ के अनुसार क्रियाविशेषण के चार प्रकार होते हैं –
1. कालवाचक :
इससे क्रिया के समय का बोध होता है | आज, कल, जब, तब, अब, कब, लगातार, दिनभर,
प्रतिदिन, परसों, सवेरे,
तुरंग, अभी, पहले,
पीछे, सदा, बार-बार,
बहुधा, प्राय: आदि कालवाचक क्रियाविशेषण के
अंतर्गत आते हैं | इन्हीं कालवाचक शब्दों में कुछ का दो बार एक साथ प्रयोग होता है
| जैसे –
वह बार-बार चीखता है |
मैं अभी-अभी आया हूँ |
2. स्थानवाचक :
यह क्रिया के स्थान का बोधक होता है | इसके अंतर्गत यहाँ, वहां, आगे,
पीछे, बाहर, भीतर,
ऊपर, नीचे, इधर-उधर,
अगल-बगल, चारों ओर, जहाँ, तहां आदि आते हैं | जैसे –
वह आगे गया है | वे ऊपर बैठे हैं |
स्थानवाचक क्रिया विशेषण दो प्रकार के होते हैं :
(a) स्थितिसूचक :
यहाँ, वहां, जहाँ,
तहां, कहाँ, आगे,
पीछे, आमने-सामने, ऊपर, पास,
निकट, सामने, दूर,
प्रत्यक्ष आदि |
(b) दिशासूचक :
इधर-उधर, किधर, दाएं-बाएँ आदि |
3. परिमाणवाचक :
इससे परिमाण (मात्रा) का बोध होता है यानी यह क्रिया की मात्रा का
बोध कराता है | इसके अंतर्गत बहुत, बड़ा,
बिलकुल, अत्यंत, अतिशय,
कुछ, लगभग, प्राय: किंचित, केवल,
यथेष्ट, काफी, थोड़ा,
एक-एक कर आदि आते हैं |
4. रीतिवाचक :
यह क्रिया की रीति (क्रिया कैसे हो रही है) का बोधक होता है | रीतिवाचक
क्रियाविशेषण प्रकार,
स्वीकार, विधि, निषेध,
निश्चय, अनिश्चय, अवधारण, प्रयोजन और कारण का बोध कराता है |
निश्चयार्थक : बेशक, सचमुच, वस्तुत:, हाँ, अवश्य ........................
अनिश्चययार्थक : प्राय:, कदाचित, संभवत : ........................
स्वीकारार्थक : हाँ, ठीक, सच, ........................
कारणार्थक : अत:, इसलिए, क्योंकि ........................
निषेधार्थक : न, नहीं, मत
........................
आवृत्तिपरक : सरासर, फटाफट,
........................
अवधारक : ही, भी, भर, मात्रा, तो ........................
इनके
अतिरिक्त धीरे-धीरे,
अचानक, यथाशक्ति, यथासंभव, आजीवन, नि:संदेश, सा, तक आदि भी क्रियाविशेषण के रूप में
प्रयुक्त होते हैं |
अव्ययीभाव
के समस्तपदों का प्रयोग भी क्रिया विशेषण के रूप में होता है | जैसे –
उसने आकण्ठ खाया था | वह आजीवन काम करता रहा |
भाववाचक
संज्ञाओं में या विशेषणों में ‘पूवर्क’ जोड़कर भी क्रियाविशेषण बनाया जाता है | जैसे –
वह कुशलपूर्वक रहता है | उसने श्रद्धापूर्वक सत्कार किया |
प्रयोग के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन प्रकार हैं –
1. साधारण क्रियाविशेषण :
यह क्रियाविशेषण किसी उपवाक्य से संबंध नहीं रखता है | जैसे –
हाय, वह अब करे तो क्या करे |
रणधीर, जल्दी आ जाना |
2. संयोजक क्रियाविशेषण :
इसका उपवाक्य से संबंध रहता है | जैसे –
जब परिश्रम ही नहीं तो विद्या कहाँ से ?
3. अनुबद्ध क्रियाविशेषण :
इस क्रियाविशेषण का प्रयोग निश्चय (अवधारण) के लिए होता है
| जैसे –
मैंने खाया तक नहीं था |
रूप के अनुसार क्रियाविशेषण के तीन प्रकार हैं :
1. मूल क्रियाविशेषण :
जो मूल रूप में होते हैं यानी किसी अन्य शब्दों के मेल से नहीं
बनते | जैसे –
मैं ठीक हूँ |
वह अचानक आ धमका |
मुझे बहुत दूर जाना है |
2. यौगिक क्रिया विशेषण :
जो किसी दूसरे शब्द या प्रत्यय जुड़ने से बनते हैं | जैसे –
दिन + भर = दिनभर
चुपके + से = चुपके से
वहां + तक = वहां तक
देखते + हुए = देखते हुए
3. स्थानीय क्रियाविशेषण :
जो बिना रूपान्तर के किसी विशेष स्थान में आते हैं | जैसे –
लता मंगेशकर अच्छा गाती हैं | वह बैठकर खा
रहा था |
2. संबंधबोधक
“वे शब्द जो संज्ञा या सर्वनाम के साथ लगकर
उनका वाक्य के अन्य पदों के साथ संबंध सूचित करें |”
संबंधबोधक
(Preposition) शब्द प्राय: संज्ञा या सर्वनाम के
बाद लगाए जाते हैं,
किन्तु यदा-कदा संज्ञा या सर्वनाम के पहले भी आते हैं |
प्रयोग के अनुसार ये दो प्रकार के होते हैं :
1. संबद्ध संबंधबोधक :
ये संज्ञाओं की विभक्तियों के आगे आते हैं | जैसे –
भूख के मारे पूजा से पहले
धन के बिना
2. अनुबद्ध संबंधबोधक :
ये संज्ञा के विकृत रूप के साथ आते हैं | जैसे –
पुत्रों समेत सहेलियों सहित
किनारे तक
व्युत्पत्ति के अनुसार भी संबंधबोधक दो प्रकार के होते हैं –
1. भूल संबंधबोधक :
बिना, पर्यन्त, नाईं, समेत,
पूर्वक ........................
2. यौगिक संबंधबोधक :
ये विभिन्न प्रकार के शब्दों से बनते हैं | जैसे –
और, अपेक्षा,
नाम, वास्ते, विशेष,
पलटे – संज्ञा से
ऐसा, जैसे,
जवानी, सरीखे, तुल्य, -
विशेषण से
लिए, मारे,
करके, - क्रिया से
ऊपर, बाहर,
भीतर, यहाँ, पास – क्रियाविशेषण से
नोट
: ध्यान दें, यदि किसी विभक्ति के बाद क्रियाविशेषण
रहे तो वह संबंधबोधक बन जाता है | जैसे –
सेनाएं आगे बढ़ी | (क्रियाविशेषण)
सेनाएं युद्धक्षेत्र से आगे बढ़ी | (संबंधबोधक)
मोनू ऊपर बैठा है | (क्रियाविशेषण)
मोनी दीवार के ऊपर बैठा है | (संबंधबोधक)
3. समुच्चयबोधक
“शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों को परस्पर जोड़ने या अलग करने
वाले अव्ययों को ‘समुच्चयबोधक’ (Conjunction) अव्यय कहते हैं |” जैसे –
वह आया और मैं गया |
यहाँ
‘और’ दो वाक्यों को जोड़ रहा है |
वह या मैं गया |
यहाँ
‘या’ वह और मैं को अलग करता है |
समुच्चयबोधक अव्यय के दो भेद हैं –
1. समानाधिकरण
समुच्चयबोधक : ये भी चार प्रकार के होते हैं –
(a) संयोजक :
ये दो पदों या वाक्यों जो
जोड़ते हैं | जैसे –
शालू, आरती,
कोमल और मेघा बहुत अच्छी है |
सूरज उगा और अँधेरा भागा |
इसके
अंतर्गत और, तथा, एवं, व
आदि आते हैं |
(b) विभाजक/विभक्तक :
ये दो या अधिक पदों
या वाक्यों को जोड़कर भी अर्थ को बात देते यानी अलग कर देते हैं | जैसे –
रणवीर या रणधीर स्कूल जाएगा |
वह जाएगा या मैं जाऊँगा |
इसके
अंतर्गत अथवा, या, वा, किंवा, कि चाहे,
नहीं तो आदि आते हैं |
(c) विरोधदर्शक :
ये वाक्य के द्वारा
पहले का निषेध या अपवाद सूचित करते हैं | जैसे –
वह बोला तो था; परन्तु इतना साफ़-साफ़ नहीं |
इसके
अंतर्गत किन्तु, परन्तु, लेकिन,
मगर, अगर, वरनु,
बल्कि, पर आदि आते हैं |
(d) परिणामदर्शक :
इनसे जाना जाता है कि
इनके आगे के वाक्य का अर्थ पिछले वाक्य के अर्थ का फल है | जैसे –
सूरज उगा इसलिए अँधेरा भागा |
2. स्वरूपवाचक :
इसके द्वारा जुड़े हुए शब्दों या वाक्यों में से पहले शब्द या वाक्य
का स्पष्टीकरण पिछले शब्द या वाक्य से जाना जाता है | इसके अंतर्गत कि, जो, अर्थात यानी यदि आदि आते हैं |
(a) कारणवाचक :
इस अव्यय से आरंभ होने
वाला वाक्य अपूर्ण का समर्थन करता है | इसके अंतर्गत क्योंकि जो कि, इसलिए कि आदि आते हैं |
(b) उद्देश्यवाचक :
इस अव्यय के बाद आने
वाला वाक्य दूसरे वाक्य का उद्देश्य सूचित करता है | इसमें कि, जो, ताकि, इसलिए कि का प्रयोग होता है |
(c) संकेतवाचक :
इस अव्यय के कारण पूर्व
वाक्य में जिस घटना का वर्णन रहता है, उससे उत्तरवाक्य की घटना का संकेत पाया जाता है | इसके अंतर्गत कि
यदि- तो, जो, तो, चाहे, परन्तु,
यद्यपि – तथापि, या, तो भी आदि आते हैं |
नोट
: जो अव्यय दो-दो करके एक साथ आते हैं, वे नित्य संबंधी कहलाते हैं |
जैसे – यद्यपि – तथापि, जो – तो इत्यादि |
यद्यपि
मैं वहां नहीं था तथापि पूरी घटना बता सकता हूँ |
4. विस्मयादिबोधक
“जिन अव्यय शब्दों से वक्ता या लेखक के मनोवेग
अर्थात मय, विस्मय, शोक,
घृणा, उद्वेग आदि प्रकट हों |” जैसे –
काश ! वह मुझे याद करता तो जिन्दगी संवर
जाती |
इस
वाक्य में ‘काश’ विस्मयादिबोधक (Interjection) अव्यय है |
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