अव्यय-संबंधी विशिष्ट बातें

 

विस्मयादिबोधक अव्यय के निम्नलिखित प्रकार हैं :

आश्चर्यबोधक  :      क्या ! सच ! ऐ ! ओ हो ! ........................

हर्षबोधक     :      शाबाश ! धन्य ! अहा ! वाह ! ........................

शोकबोधक    :      हाय ! उफ़ ! बाप रे, ........................

इच्छाबोधक    :      जय हो ! आशिष ! ........................

घृणाबोधक    :      छि: ! धिक् ! राम-राम ! हुश ! ........................

अनुमोदनसूचक :      ठीक ! वाह ! अच्छा भला ! ........................

संबोधनसूचक  :      अरे ! अरी ! ऐ ! ........................

 


नोट :

      (i) विस्मयादिबोधक अव्यय के बाद विस्मयसूचक चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है |

      (ii) धत तेरे की, हैलो, बहुत खूब, क्या कहने, कौन, क्यों, कैसा, सावधान, हट, बचाओ, जा-जा आदि का प्रयोग भी विस्मयादिबोधक के रूप में होता है |

 

निपात

      “निपात (Particles) उन सहायक पदों को कहा जाता है, जो वाक्यार्थ में बिल्कुल नवीन अर्थ लाते हैं |”

हिंदी में क्या, काश, तो, भी, ही, तक, लगभग ठीक, करीब, मात्र, सिर्फ, हाँ,, नहीं मत इत्यादि निपातों का प्रयोग होता है |

नीचे लिखे वाक्यों के चमत्कारों को देखें, जो निपात के कारण आये हैं –

मैं यह काम कर सकता हूँ |   (सामान्य अर्थ)

      मैं भी यह काम कर सकता हूँ | (और भी कर सकते हैं)

      मैं ही यह कम कर सकता हूँ |  (सिर्फ मैं ही कर सकता हूँ)

      मैं यह काम नहीं कर सकता हूँ |      (नहीं कर सकता)

निपात में आश्चर्य प्रकट होता है; प्रश्न किया जाता है; निषेध किया जाता है और बल दिया जाता है |

निपात के मुख्यतया नौ प्रकार माने जाते हैं :

1. स्वीकारार्थक -     हाँ, जी, जी हाँ, ........................

2. नकारात्मक -     नहीं,, जी नहीं, ........................

3. निषेधार्थक  -     मत ........................

4. प्रश्नबोधक  -     क्या,, ........................

5. विस्म्यार्थक -     काश, क्या, ........................

6. बलदायक   -     तो, ही, भी, तक, ........................

7. तुलनार्थक  -     सा, ........................

8. अवधारणार्थक     -     ठीक, लगभग, करीब, तकरीबन, ........................

9. आदरसूचक -     जी, ........................

 

अव्यय-संबंधी विशिष्ट बातें और प्रयोग :

1. ‘चूंकि के साथ आने वाला दूसरा उपवाक्य प्राय: ‘इसलिए से प्रारंभ होता है | जैसे –

      चूंकि वह स्वयं आया था, इसलिए मैंने सब कुछ बता दिया था |

      चूंकि वह नहीं आ सकता था, इसलिए उसने फोन कर दिया था |

2. ‘इसलिए की सहायता से बने उपवाक्य अपने पूर्व के उपवाक्यों के परिणाम हुआ करते हैं | जैसे –

      डॉ. प्रचेता बीमार थे, इसलिए 17 अप्रैल, 2008 के कार्यक्रम में भाग नहीं ले सके |

3. ‘चूंकि तथा ‘क्योंकि की सहायता से बने उपवाक्यों में दूसरे उपवाक्यों के कारणों का निर्देश होता है | जैसे –

      चूंकि आप नहीं आये, इसलिए मैं उन्हें नहीं रोक सका |

      क्योंकि तेरे आने का वक्त हो चुका था, इसलिए चाय बनाई गई |

4. ‘किन्तु, ‘परन्तु, ‘लेकिन और ‘मगर से बने उपवाक्य से दूसरे उपवाक्य के कथन पर आपत्ति अथवा विपरीत पक्ष या उसको लेकर कोई संशय की अभिव्यक्ति होती है | जैसे –

      वह परिश्रमी तो हैं; लेकिन बेईमान है |

      चला तो जाऊँगा; किन्तु वह मिलेगा नहीं |

5. ‘ताकि से बनने वाले उपवाक्य में दूसरे उपवाक्य का उद्देश्य रहता है | जैसे –

      आप सभी से सावधान हो जाएं, ताकि पश्चाताप न करना पड़ेगा |

6. ‘अन्यथा और ‘वरना द्वारा गठित उपवाक्य चेतावनी के लिए प्रयुक्त होता है | जैसे –

      चुपचाप यहाँ से चले जाओ, वरना शोर मचा दूंगी |

      मेरी बात मान जाओ, वरना पछताना पड़ेगा |

7. ‘अथवा’ तथा ‘या विकल्पों के लिए प्रयुक्त होते हैं | जैसे –

      या तो तुम स्वयं आ जाना या फिर फोन कर देना |

      मैं खुद चला आऊंगा अथवा फोन कर दूंगा |

8. ‘नहीं तो, ‘तो भी, ‘फिर भी’ योजक की भांति प्रयुक्त होते हैं | नहीं तो से ‘धमकी की अभिव्यक्ति होती है तथा ‘फिर भी और ‘तो भी से प्रतिकूल परिस्थिति रहते हुए भी कार्य के लिए जाने का भाव प्रकट होता है | जैसे –

      तुम यहाँ से अभी चले जाओ, नहीं तो मेरा गार्ड तुम्हें धक्के मारकर निकाल देगा |

      वह नहीं चाहता था कि मैं वहां जाऊं, फिर भी मैं चला गया |

9. ‘तो तथा ‘तो ही अनुबंधात्मक हैं, इसलिए प्रथम उपवाक्य की क्रिया होने के बाद ही दूसरे उपवाक्य की क्रिया हो पाती है | जैसे –

      वह परिश्रम करता, तो जरूर उत्तीर्ण होता |

      वह अच्छी तरह मेहनत करता, तो ही उत्तीर्ण होता न ?

10. ‘ही और ‘तक कभी-कभी कारकों से पूर्व भी आते हैं ‘सिर्फ तथा ‘केवल पूर्व स्थिति में भी आते हैं | जैसे –

                केवल मैं यह काम करूंगा |          मैं ही यह काम करूंगा |

      तुमने तक यही कहा था |           तुम तक ने यही कहा होगा |

11. वाक्य के आरंभ में ‘तो का प्रयोग प्रासंगिक ही हुआ करता है | जैसे –

      तो तुमने ऐसा कहा था |

12. ‘तो सही’, ‘अभी तो, ‘फिर तो, ‘कभी तो, ‘और तो और, ‘तुम तो तुम, ‘यों तो इत्यादि ‘तो’ में अन्य शब्दों के योग से बनते हैं | इनमें तो सही का प्रयोग प्राय: क्रियाओं के आज्ञार्थक प्रकार के परवर्ती रूप में, ‘अभी तो चल रहे कार्य-व्यापार को यथावत छोड़ने में, ‘फिर तो निष्कर्ष के लिए, ‘कभी तो क्रिया के कभी-न-कभी होने की आशा के लिए, ‘और-तो-और एवं ‘तुम-तो-तुम न्यूनतम अपेक्षा के भी पूरे न होने में और ‘यों तो’ प्रासंगिकता तथा प्रतिकूलता प्रदर्शित करने में होता है | जैसे –

      दिखाओ तो तुम्हारे पास क्या-क्या है ?

      अभी तो चलो (फिर कभी आकर कहना)

      वह आ गया फिर तो मेरी जरूरत ही नहीं रही |

      भागकर कहाँ जाओगे ? कभी तो मिलोगे ही |

      और तो और उसने मेरा नाम तक नहीं लिया |

      तुम तो तुम तुम्हारी कोई खबर तक नहीं आई |

      यों तो कुछ भी कह लीजिए; लेकिन उसकी असलियत बदली नहीं जा सकती है |

13. ‘ही’ सकारात्मक बलाघात उत्पन्न करता है | क्रिया के जिस अंग में ‘ही आता है, वह उसके उसी कार्यव्यापार की उसी समय में निश्चितता पर जोर देता है | जैसे –

      मैं आता ही, आप बेकार औपचारिकता दिखाने चले आए |

      आखिर आप राष्ट्रपति ठहरे, लोग आपका अभिनन्दन करेंगे ही |

14. संज्ञाओं, सर्वनामों तथा संख्याओं के साथ ‘ही ‘केवल की तरह, किन्तु विधेयात्मक बलाघात के साथ, सीमा निर्धारित करता है | जैसे –

      हम दो ही काफी हैं इस काम के लिए |

      वे दोनों ही वहां जा सकते हैं |

15. ‘ही आधिक्य, या घनत्व को भी प्रकट करता है | जैसे –

      चारों और पानी-ही-पानी था |

      साथ-ही-साथ मैं यह कह देना भी उचित समझता हूँ |

16. ‘थोड़े के साथ ‘ही का प्रयोग प्रसंगानुसार ‘बिलकुल नहीं का भाव प्रकट करता है | जैसे –

      मैं थोड़े ही ऐसी बाते कहूँगी | (अर्थात मैं नहीं कहूँगी)

17. ‘शायद के साथ ‘ही संदेह को और अधिक गहरा कर देता है | जैसे –

      शायद ही वह आया होगा |

18. ‘ही जितना, कितना, कैसा आदि के साथ प्रयुक्त होकर विपरीत भाव को प्रकट करता है | जैसे –

      इंसान कितना भी भला क्यों न हो, उससे कभी-न-कभी गलती हो ही जाती है |

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