भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार क्या हैं
सोमवार, 5 जुलाई 2021
Add Comment
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights in Indian Constitution) |
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights in Indian Constitution)
► इसे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है |
► इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद -12 से अनुच्छेद -35) है |
► मौलिक अधिकारों में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनु. 352) जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है |
► मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे , लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) के देश सम्पति का अधिकार (अनु. 31 एवं 19क) को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद-300(a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है |
► इसका वर्णन संविधान के भाग-3 में (अनुच्छेद -12 से अनुच्छेद -35) है |
► मौलिक अधिकारों में संशोधन हो सकता है एवं राष्ट्रीय आपात के दौरान (अनु. 352) जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को छोड़कर अन्य मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है |
► मूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे , लेकिन 44वें संविधान संशोधन (1978) के देश सम्पति का अधिकार (अनु. 31 एवं 19क) को मौलिक अधिकार की सूची से हटाकर इसे संविधान के अनुच्छेद-300(a) के अंतर्गत कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया है |
नोट: 1931 में कराची अधिवेशन (अध्यक्ष सरदार बल्लभभाई पटेल) में कांग्रेस ने घोषणा पत्र में अधिकारों की माँग की | मूल अधिकारों का प्रारूप जवाहरलाल नेहरु ने बनाया था |
मौलिक अधिकार
1. समता या समानता का अधिकार---अनुच्छेद- 14 से 18
2. स्वतंत्रता का अधिकार---अनुच्छेद- 19 से 22
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार---अनुच्छेद-23 से 24
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार---अनुच्छेद-25 से 28
5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार---अनुच्छेद 29 से 30
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार---अनुच्छेद-32
► अनुच्छेद-15 (धर्म,नस्ल,जाति,लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध ) : राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश,जाति, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जायेगा |
► अनुच्छेद-16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता ) : राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होती | अपवाद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग |
► अनुच्छेद-17 (अस्पृश्यता का अंत) : अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है|
► अनुच्छेद-18 (उपाधियों का अंत) : सेना या विधा सम्बन्धी समान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जायेगी | भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना रास्त्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है |
नोट: भारत सरकार द्वारा भारत रत्न,पद्म विभूषण,पद्म भूषण, पद्म श्री, एवं सेना द्वारा परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र आदि पुरूस्कार अनुच्छेद -18 के तहत ही दिए जाते है |
6 तरह के स्वतंत्रता के अधिकार
1. अनुच्छेद-19 (a) ---बोलने की स्वतंत्रता
2. अनुच्छेद-19 (b) ---शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता |
3. अनुच्छेद -19 (c) ---संघ बनाने की स्वतंत्रता
4. अनुच्छेद-19 (d) ---देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता
5. अनुच्छेद-19 (e) ---देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता | (अपवाद: जम्मू-कश्मीर)
6. अनुच्छेद-19 (g) ---कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता
नोट: प्रेस की आज़ादी का वर्णन अनुच्छेद - 19 (a) में ही है | <
► अनुच्छेद-20 (अपराधों के लिए दोष-सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण) : इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है ---
1. किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी |
2. अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी न की पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत |
3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा |
► अनुच्छेद -21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) : किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है |
नोट: अनुच्छेद -21 के तहत प्रत्येक सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों कको स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराए | इसके लिए भारत सरकार ने संसद से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 पारित कराया | अक्तूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई | राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की मुख्यपीठ नईं दिल्ली में है जबकि चार अन्य पीठें भोपाल पुणे,कोलकाता एवं चेन्नई में है | राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश ;में पर्यावरण से सम्बन्धित मामलों के लिए उतरदायी है |
► अनुच्छेद 21 (क) : राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चो को ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य,विधि द्वारा अवधारित करें,निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करेगा | (86वां संशोधन 2002)|
► अनुच्छेद-22 (कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण) : अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है --
1. हिरासत में लेने का कारण बताना होगा,
2. 24 घंटे के अंदर (आने-जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जायेगा ,
3. उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा |
► निवारक निरोध : भारतीय संविधान के अनुच्छेद -22 के खंड - 3,4,5 तथा 6 में तत्सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख है | निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकना है | वस्तुतः यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा,लोक व्यवथा बनाए रखने या भारत की सुरक्षा सम्बन्धी कारणों से हो सकता है | जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध की किसी विधि के अधीन गिरफ्तार किया जाता है तब ---
1. सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकती है | यदि गिरफ्तार व्यक्ति को तीन माह से अधिक समय के लिए निरुद्ध करना होता है तो इसके लिए सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है |
2. इस प्रकार निरुद्ध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किये जायेंगे, किन्तु जिन तथ्यों को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नहीं है |
3. निरुद्ध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए शीघ्रातिशीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए |
2. आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम 1971 (1971) (MISA) : 44 वें संवैधानिक संशोधन (1979) इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल 1979में यह समाप्त हो गया |
3. विदेशी मुद्रा संरक्षण व तस्करी निरोध अधिनियम 1974 : पहले इसमें तस्कारों के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी जिसे 13 जुलाई 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष क्र दिया गया है |
4. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 : जम्मू-कशमीर के अलावा सभी राज्यों में लागू किया गया |
5. आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियों निरोधक कानून (टाडा) : निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत अबतक जो कानून बने उसमे यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था | 23 मई 1995 को इसे समाप्त कर दिया गया |
6. पोटो(Prevention of Terrorism ordinance 2001):इसे 25 अक्तूबर 2001 को लागू किया गया | पोटो टाडा का ही एक रूप है | इसके अंतर्गत कुल 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है | आंतकवादी और आतंकवादियों से सम्बधित सुचना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया है | पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है किन्तु विना आरोप पत्र के तीन माह से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती | पोटा के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है लेकिन यह अपील भी गिरफ्तारी के तीन माह बाद ही हो सकती है | पोटो 28 मार्च 2002 को अधिनियम बनने के बाद पोटा हो गया | 21 सितंबर 2004 को इसको अध्यादेश के द्वारा समाप्त क्र दिया गया |
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
► अनुच्छेद -23 (मानव के दुर्व्यवहार और बलात श्रम का प्रतिषेध) : इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद - बिक्री , बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है ___
नोट: जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है |
► अनुच्छेद -24 (बालकों के नियोजन का प्रतिषेध): 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है |
► अनुच्छेद-26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता) : व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि-सम्मत सम्पति के अर्जन,स्वामित्व व् प्रशासन का अधिकार है |
► अनुच्छेद- 27 : राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक सम्प्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है |
► अनुच्छेद-28 : राज्य विधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी | ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोंपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते |
नोट: वर्तमान में 6 समुदायों मुस्लिम,पारसी,इसाई,सिख,बौद्ध,एवं जैन को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा प्रदान किया गया है | अल्पसंख्यक समुदाय के विकास को समुचित आधार प्रदान करने के लिए 2005 में तत्कालीन केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया |
► अनुच्छेद -30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार): कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी |
► अनुच्छेद-32: इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्रवाईयों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है | इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पाँच तरह की रिट निकालने की शक्ति प्रदान की गई है
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus)
2. परमादेश (mandamus)
3. प्रतिषेध लेख (prohibition)
4. उतप्रेष्ण (certiorari)
5. अधिकार पृच्छा-लेख (quo-warranto)|
1. बंदी-प्रत्यक्षीकरण : यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है | इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करनेवाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गये आदमी को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके |
2. परमादेश : परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है , जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है | इस प्रकार के आज्ञापत्र के आधार पर पदाधिकारि को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है |
3. प्रतिषेध-लेख : यह आज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों व् अर्द्धन्यायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहाँ कार्रवाई न करें, क्योकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है |
4. उत्प्रेष्ण : इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लम्बित मुकदमों के न्याय-निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजे |
5. अधिकार पृच्छा-लेख : जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारि के रूप में कार्य करने लगता है, जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है, तो न्यायालय अधिकार- पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता है |
मौलिक अधिकार
1. समता या समानता का अधिकार---अनुच्छेद- 14 से 18
2. स्वतंत्रता का अधिकार---अनुच्छेद- 19 से 22
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार---अनुच्छेद-23 से 24
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार---अनुच्छेद-25 से 28
5. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार---अनुच्छेद 29 से 30
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार---अनुच्छेद-32
1. समता या असमानता का अधिकार
► अनुच्छेद-14 (विधि के समक्ष समता) : इसका अर्थ यह कि राज्य सभी व्यक्तियों के लिए एकसमान कानून बनायेगा तथा उन पर एकसमान लागू करेगा |► अनुच्छेद-15 (धर्म,नस्ल,जाति,लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध ) : राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश,जाति, लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जायेगा |
► अनुच्छेद-16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता ) : राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होती | अपवाद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग |
► अनुच्छेद-17 (अस्पृश्यता का अंत) : अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है|
► अनुच्छेद-18 (उपाधियों का अंत) : सेना या विधा सम्बन्धी समान के सिवाए अन्य कोई भी उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जायेगी | भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना रास्त्रपति की आज्ञा के कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता है |
नोट: भारत सरकार द्वारा भारत रत्न,पद्म विभूषण,पद्म भूषण, पद्म श्री, एवं सेना द्वारा परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र आदि पुरूस्कार अनुच्छेद -18 के तहत ही दिए जाते है |
2. स्वतंत्रता का अधिकार
► अनुच्छेद-19 : मूल संविधान में सात तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख था, अब सिर्फ छह है (अनुच्छेद-19(f) सम्पति का अधिकार, 44 वां संविधान संशोधन 1978 के द्वारा हटा दिया गया |6 तरह के स्वतंत्रता के अधिकार
1. अनुच्छेद-19 (a) ---बोलने की स्वतंत्रता
2. अनुच्छेद-19 (b) ---शांतिपूर्वक बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता |
3. अनुच्छेद -19 (c) ---संघ बनाने की स्वतंत्रता
4. अनुच्छेद-19 (d) ---देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता
5. अनुच्छेद-19 (e) ---देश के किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता | (अपवाद: जम्मू-कश्मीर)
6. अनुच्छेद-19 (g) ---कोई भी व्यापार एवं जीविका चलाने की स्वतंत्रता
नोट: प्रेस की आज़ादी का वर्णन अनुच्छेद - 19 (a) में ही है | <
► अनुच्छेद-20 (अपराधों के लिए दोष-सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण) : इसके तहत तीन प्रकार की स्वतंत्रता का वर्णन है ---
1. किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार सजा मिलेगी |
2. अपराध करने के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी न की पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत |
3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा |
► अनुच्छेद -21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) : किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है |
नोट: अनुच्छेद -21 के तहत प्रत्येक सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपने नागरिकों कको स्वस्थ एवं स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराए | इसके लिए भारत सरकार ने संसद से राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम 2010 पारित कराया | अक्तूबर 2010 में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की स्थापना की गई | राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की मुख्यपीठ नईं दिल्ली में है जबकि चार अन्य पीठें भोपाल पुणे,कोलकाता एवं चेन्नई में है | राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण देश ;में पर्यावरण से सम्बन्धित मामलों के लिए उतरदायी है |
► अनुच्छेद 21 (क) : राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चो को ऐसे ढंग से जैसा कि राज्य,विधि द्वारा अवधारित करें,निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध करेगा | (86वां संशोधन 2002)|
► अनुच्छेद-22 (कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध में संरक्षण) : अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो तो उसे तीन प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है --
1. हिरासत में लेने का कारण बताना होगा,
2. 24 घंटे के अंदर (आने-जाने के समय को छोड़कर) उसे दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया जायेगा ,
3. उसे अपने पसंद के वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा |
► निवारक निरोध : भारतीय संविधान के अनुच्छेद -22 के खंड - 3,4,5 तथा 6 में तत्सम्बन्धी प्रावधानों का उल्लेख है | निवारक निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकना है | वस्तुतः यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा,लोक व्यवथा बनाए रखने या भारत की सुरक्षा सम्बन्धी कारणों से हो सकता है | जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध की किसी विधि के अधीन गिरफ्तार किया जाता है तब ---
1. सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकती है | यदि गिरफ्तार व्यक्ति को तीन माह से अधिक समय के लिए निरुद्ध करना होता है तो इसके लिए सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है |
2. इस प्रकार निरुद्ध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किये जायेंगे, किन्तु जिन तथ्यों को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नहीं है |
3. निरुद्ध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए शीघ्रातिशीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए |
निवारक निरोध से सम्बन्धित अब तक बनायी गयी विधियाँ
1. निवारक निरोध अधिनियम 1950 : भारत की संसद ने 26 फरवरी 1950 को पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था | इसका उद्देश्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य से रोकना था | इसे 1 अप्रैल 1951 को समाप्त हो जाना था, किन्तु समय-समय पर इसका जीवनकाल बढ़ाया जाता रहा | अंतत: यह 31 दिसम्बर 1971 को समाप्त हुआ |2. आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम 1971 (1971) (MISA) : 44 वें संवैधानिक संशोधन (1979) इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल 1979में यह समाप्त हो गया |
3. विदेशी मुद्रा संरक्षण व तस्करी निरोध अधिनियम 1974 : पहले इसमें तस्कारों के लिए नजरबंदी की अवधि 1 वर्ष थी जिसे 13 जुलाई 1984 को एक अध्यादेश के द्वारा बढ़ाकर 2 वर्ष क्र दिया गया है |
4. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 1980 : जम्मू-कशमीर के अलावा सभी राज्यों में लागू किया गया |
5. आतंकवादी एवं विध्वंसकारी गतिविधियों निरोधक कानून (टाडा) : निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत अबतक जो कानून बने उसमे यह सबसे अधिक प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था | 23 मई 1995 को इसे समाप्त कर दिया गया |
6. पोटो(Prevention of Terrorism ordinance 2001):इसे 25 अक्तूबर 2001 को लागू किया गया | पोटो टाडा का ही एक रूप है | इसके अंतर्गत कुल 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है | आंतकवादी और आतंकवादियों से सम्बधित सुचना को छिपाने वालों को भी दंडित करने का प्रावधान किया गया है | पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है किन्तु विना आरोप पत्र के तीन माह से अधिक हिरासत में नहीं रख सकती | पोटा के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है लेकिन यह अपील भी गिरफ्तारी के तीन माह बाद ही हो सकती है | पोटो 28 मार्च 2002 को अधिनियम बनने के बाद पोटा हो गया | 21 सितंबर 2004 को इसको अध्यादेश के द्वारा समाप्त क्र दिया गया |
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
► अनुच्छेद -23 (मानव के दुर्व्यवहार और बलात श्रम का प्रतिषेध) : इसके द्वारा किसी व्यक्ति की खरीद - बिक्री , बेगारी तथा इसी प्रकार का अन्य जबरदस्ती विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है ___
नोट: जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है |
► अनुच्छेद -24 (बालकों के नियोजन का प्रतिषेध): 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी बच्चे को कारखानों, खानों या अन्य किसी जोखिम भरे काम पर नियुक्त नहीं किया जा सकता है |
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
► अनुच्छेद-25 (अंत:करण की और धर्म के अबाध रूप से मनाने आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता): कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है |► अनुच्छेद-26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता) : व्यक्ति को अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने, विधि-सम्मत सम्पति के अर्जन,स्वामित्व व् प्रशासन का अधिकार है |
► अनुच्छेद- 27 : राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक सम्प्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गई है |
► अनुच्छेद-28 : राज्य विधि से पूर्णत: पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जायेगी | ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्मोंपदेश को बलात सुनने हेतु बाध्य नहीं कर सकते |
5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बधि अधिकार
► अनुच्छेद -29 (अल्पसंख्यक वर्गो के हितों का संरक्षण) : कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी भाषा लिपि ओर संस्कृति को सुरक्षित रख सकता है और केवल भाषा, जाति ,धर्म और संस्कृति के आधार पर उसे किसी भी सरकारी शैक्षिक संस्था में प्रवेश नहीं रोका जाएगा |नोट: वर्तमान में 6 समुदायों मुस्लिम,पारसी,इसाई,सिख,बौद्ध,एवं जैन को अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा प्रदान किया गया है | अल्पसंख्यक समुदाय के विकास को समुचित आधार प्रदान करने के लिए 2005 में तत्कालीन केंद्र सरकार के द्वारा प्रधानमंत्री का 15 सूत्रीय कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया |
► अनुच्छेद -30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार): कोई भी अल्पसंख्यक वर्ग अपनी पसंद का शैक्षणिक संस्था चला सकता है और सरकार उसे अनुदान देने में किसी भी तरह की भेदभाव नहीं करेगी |
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार
► संवैधानिक उपचारों के अधिकार को डॉ. भीमरावअम्बेडकर ने संविधान की आत्मा कहा है |► अनुच्छेद-32: इसके अंतर्गत मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्रवाईयों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है | इस सन्दर्भ में सर्वोच्च न्यायालय को पाँच तरह की रिट निकालने की शक्ति प्रदान की गई है
1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (habeas corpus)
2. परमादेश (mandamus)
3. प्रतिषेध लेख (prohibition)
4. उतप्रेष्ण (certiorari)
5. अधिकार पृच्छा-लेख (quo-warranto)|
1. बंदी-प्रत्यक्षीकरण : यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है | इसके द्वारा न्यायालय बंदीकरण करनेवाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाए गये आदमी को निश्चित स्थान और निश्चित समय के अंदर उपस्थित करे, जिससे न्यायालय बंदी बनाए जाने के कारणों पर विचार कर सके |
2. परमादेश : परमादेश का लेख उस समय जारी किया जाता है , जब कोई पदाधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का निर्वाह नहीं करता है | इस प्रकार के आज्ञापत्र के आधार पर पदाधिकारि को उसके कर्तव्य का पालन करने का आदेश जारी किया जाता है |
3. प्रतिषेध-लेख : यह आज्ञापत्र सर्वोच्च न्यायालयों द्वारा निम्न न्यायालयों व् अर्द्धन्यायिक न्यायाधिकरणों को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि इस मामले में अपने यहाँ कार्रवाई न करें, क्योकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है |
4. उत्प्रेष्ण : इसके द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास लम्बित मुकदमों के न्याय-निर्णयन के लिए उसे वरिष्ठ न्यायालय को भेजे |
5. अधिकार पृच्छा-लेख : जब कोई व्यक्ति ऐसे पदाधिकारि के रूप में कार्य करने लगता है, जिसके रूप में कार्य करने का उसे वैधानिक रूप से अधिकार नहीं है, तो न्यायालय अधिकार- पृच्छा के आदेश के द्वारा उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से कार्य कर रहा है और जब तक इस बात का संतोषजनक उत्तर नहीं देता, वह कार्य नहीं कर सकता है |
FAQ
प्रश्न:- मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है?
उत्तर:- संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है |
प्रश्न:- 6 मौलिक अधिकार कौन से हैं या मौलिक अधिकारों की संख्या कितनी है?
उत्तर:-(i) समानता का अधिकार, (ii) स्वतंत्रता का अधिकार, (iii) शोषण का अधिकार, (iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, (v) सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार, (vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार। मौलिक अधिकार न्याय संगत है परन्तु असीमित नहीं है।
प्रश्न:- वर्तमान में मूल अधिकार कितने हैं?
उत्तर:- भारतीय संविधान के भाग-3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकारों के वर्णन किया गया है। मूल भारतीय संविधान में कुल 7 मौलिक अधिकार थे। किन्तु 44 वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से हटा दिया गया। अतः वर्तमान में मूल अधिकारों की संख्या 6 है जो निम्नलिखित है।(i) समानता का अधिकार, (ii) स्वतंत्रता का अधिकार, (iii) शोषण का अधिकार, (iv) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, (v) सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार, (vi) संवैधानिक उपचारों का अधिकार। मौलिक अधिकार न्याय संगत है परन्तु असीमित नहीं है।
प्रश्न:- मूल अधिकार मूल क्यों कहलाते हैं? (UPSC के लिए महत्वपूर्ण)
उत्तर:- वे अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक तथा अनिवार्य होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किए जाते हैं और जिन अधिकारों में राज्य द्वारा भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता, मूल अधिकार कहलाते हैं।
0 Response to "भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार क्या हैं "
एक टिप्पणी भेजें