अंत:स्त्रावी ग्रंथि Endocrine gland किसे कहते हैं और इसके प्रकार

अंत:स्त्रावी ग्रंथि (Endocrine gland) :- 

                                                जन्तुओं में विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं समन्वयन तंत्रिका , तन्त्र के अतिरिक्त कुछ विशिष्ट रासायनिक यौगिकों के द्वारा भी  होता है | ये रासायनिक यौगिक हार्मोन (Hormone) कहलाते हैं | हॉर्मोन शब्द ग्रीक भाषा (Gr. Hormaein = to stimulate excite) से लिया गया है , जिसका अर्थ है - उत्तेजित करने वाला पदार्थ | हॉर्मोन का स्त्राव शरीर की कुछ विशेष प्रकार की ग्रंथियों द्वारा होता है , जिन्हें अंत:स्त्रावी ग्रंथियां (Endocrine glands) कहते हैं | अंत:स्त्रावी ग्रंथियों को नलिकाविहीन ग्रंथियां (Ductless glads) के नाम से भी जाना जाता है क्यूंकि इनमें स्त्राव के लिए नलिकाएं (Ducts) नहीं होती हैं | नलिकाविहीन होने से कारण ये ग्रन्थियां अपने स्त्राव हॉर्मोन्स को सीधे रुधिर परिसंचरण में मुक्त करती है | रुधिर परिसंचरण तन्त्र द्वारा ही इनका परिवरहन सम्पूर्ण शरीर में होता है |

ग्रंथियों के प्रकार :- कशेरुकी जन्तुओं में तीन प्रकार की ग्रंथियां पायी जाती हैं | ये हैं -

(a) बहि:स्त्रावी ग्रंथियां (Exocrine glands):- 

                                                शरीर की ऐसी ग्रंथियां जिनके द्वारा स्त्राव को विभिन्न अंगों तक पहुंचाने के लिए वाहिनियाँ या नलिकाएं होती हैं , बहि:स्त्रावी ग्रन्थियां (Exocrine glands) कहलाती है | बहि:स्त्रावी ग्रंथियों को नलिकायुक्त ग्रन्थियां (Duct glands ) भी कहते हैं | बहि:स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्राव को इन्जाइम (Enzyme) कहा जाता है | स्वेद ग्रंथि दुग्ध ग्रन्थि , लार ग्रन्थि , श्लेष्म ग्रन्थि , अश्रु ग्रन्थि आदि बहि:स्त्रावी ग्रन्थि के प्रमुख उदाहरण है |

(b) अंत:स्त्रावी ग्रंथियां (Endocrine Glands):- 

                                                बहि:स्त्रावी ग्रंथियों के विपरीत अंत:स्त्रावी ग्रंथियां नलिकाविहीन (Ductless) होती हहै  | अत: इन्हें नलिकाविहीन ग्रंथियां (Ductless glands) भी कहते हैं | अंत:स्त्रावी ग्रंथियां नलिका (Duct) के अभाव में अपने स्त्राव को सीधे परिसंचरण में मुक्त करती हैं | अतं:स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित स्त्राव को अंत:स्त्राव या हॉर्मोन कहते हैं | ये हॉर्मोन फिर रुधिर के साथ उन अंगों तक चले जाते हैं , जहाँ इनका प्रभाव होना होता है | पियूष ग्रंथि , थाईरोइड ग्रंथि , अधिवृक्क ग्रंथि , पैराथाइरोइड ग्रंथि पीनियल काय , थाइमस ग्रंथि आदि प्रमुख अंत: स्त्रावी  ग्रंथियां हैं |

(c) मिश्रित ग्रंथियां (Mixed glands):- 

                                                कुछ ग्रंथियां ऐसी होती है जो बहि:स्त्रावी तथा अंत:स्त्रावी दोनों ही प्रकार की होती हैं , उन्हें मिश्रित ग्रंथियां कहते हैं | जैसे -अग्नाशय (Pancreas) |

मानव शरीर की मुख्य अंत:स्त्रावी ग्रंथियां एवं उनसे स्त्रावित हॉर्मोन के कार्य एवं प्रभाव :-

A. पियूष ग्रंथि (Pituitary gland):- 

                                                यह कपाल (Skull) की स्फेनॉइड(Sphenoid) हड्डी में सेलातटर्सिका (Sellturcica) नामक गड्डे में उपस्थित रहती है | यह तालू (Palate) एवं मस्तिष्क (Brain) के अधरतल के मध्य स्थित रहती हैएवं उससे एक इन्फ़न्डिबुलम (Infundibulum) नाम छोटे वृंत (Stalk) से जुडी रहती है | इसका भार लगभग 0.6 ग्राम होता है | स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान यह कुछ बड़ी हो जाती है | पियूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रंथि (Master Glands) भी कहा जाता है , क्यूंकि यह अन्य अंत:स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्रवण को नियंत्रित करती है | साथ ही साथ यह व्यक्ति के स्वभाव , स्वास्थ्य वृद्धि एवं लैंगिक विकास को भी प्रेरित करती है |

पियूष ग्रन्थि से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन एवं उनके कार्य : पियूष ग्रन्थि द्वारा निम्नलिखित हार्मोनो का स्त्राव होता है -

1. वृद्धि हॉर्मोन या सोमैटोट्रोपिक हॉर्मोन(Growth hormone or somatotropic hormone) :- 

                                                यह शरीर की विद्धि विशेषतया हड्डियों की वृद्धि का नियन्त्रण करता है | इसकी अधिकता से भीमकायता (Gigantism) अथवा एक्रोमिगली (Acromegaly) विकार उत्पन्न हो जाता है | इसके कारण मनुष्य की लम्बाई सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है तथा हड्डियाँ भारी व् मोटी हो जाती है | बाल्यावस्था में इस हॉर्मोन के कम स्त्राव से शरीर की वृद्धि रुक जाती है जिससे मनुष्य में बौनापन (Dwarfism ) हो जाता है |

2. थाईरोट्रोपिक या थाइराइड प्रेरक हॉर्मोन (Thyrotropic or thyroid stimultaing hormons -STH) :- 

                                                यह हार्मोन थाइराइड ग्रन्थि के कार्यों को उद्दीपित करता है | यह थाईरॉक्सिन हॉर्मोन के स्त्रवण को भी प्रभावित करता है |

3. (एड्रीनोकोर्टिको ट्रोपिक हॉर्मोन -ACTH)Adrennocortico tropic hormone:- 

                                                यह हॉर्मोन अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) के कोर्टेक्स (Cortex) को प्रभावित कर उससे निकलने वाले हॉर्मोन को भी प्रेरित करता है |

4. गोनेडोट्रोपिक हॉर्मोन (Gonadotropic hormone) :- 

                                                यह हॉर्मोन जनन ग्रन्थियों (Gonads) की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है | यह दो प्रकार का होता है |

(a) फॉलिकल उत्तेजन हॉर्मोन (Follicle stimulating hormone -FSH):- 

                                                पुरुषों में यह हॉर्मोन शुक्रजन (Spermatogenesis) को उद्दीपित करता है | स्त्रियों में यह हार्मोन अंडाशय से अन्डोत्सर्ग (Ovulation) को प्रेरित करता है | यह अंडाशय में फॉलिकल की वृद्धि में सहायता करता है |

(b) ल्युटीनाइजिंग हॉर्मोन (Lutenizing hormone -LH):-

                                                 पुरुषों में यह हॉर्मोन अंतराली कोशिकाओं (Interstial cells) को प्रभावित कर नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन (Testoterone) को प्रेरित करता है , जबकि स्त्रियों में यह एस्ट्रोजन हार्मोन के स्त्राव को प्रेरित करता है |

5. दुग्धजनक हार्मोन (Lactogenic hormone-LTH) :- 

                                                यह दुग्धजनक हार्मोन है | इस हॉर्मोन का मुख्य कार्य शिशु के लिए स्तनों दुग्ध स्त्राव उत्पन्न करना है | इस हॉर्मोन से कार्पसल्यूटियम (Corpusluteum) का स्त्राव भी शुरु होता है |

6. मिलेनोसाईट प्रेरक हॉर्मोन(Melanocyte stimulating  hormone) :- 

                                                निम्न जन्तुओं एवं पक्षियों में यह हार्मोन मिलेविन (Melanin) वर्णक के कणों को फैलाकर त्वचा के रंग को प्रभावित करता है | इसके फलस्वरूप त्वचा रंगीन होती है | मनुष्य में यह हार्मोन त्वचा पर चकते तथा तिल पड़ने को प्रेरित करता है |

7. वेसोप्रेसीन या एंटीडाइयुरेटिक हॉर्मोन (Vasopressin or Antidiuratic hormone -ADH) :- 

                                                यह हॉर्मोन वृक्क की मूत्रवाहिनियों को हल पुनरावशोषण(रReabsorption) करने के लिए प्रेरित करता है | इसके अतिरिक्त यह रुधिर वाहिनियों को सिकोड़ कर रुधिर दाब (Blood pressure) बढाता है | यह शरीर के जल संतुलन में सहायक होता है | इस कारण इसे Antidiuratic कहा है | इस हॉर्मोन की कमी से उदकमेंह या डायबिटीज इन्सीपिड्स नामक रोग हो जाता है |

8. ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) या पाइटोसिन (Pitocine) :- 

                                                यह हॉर्मोन गर्भाशय की आरेखित पेशियों में सिकुडन पैदा करता है जिससे प्रसव पीड़ा (Labour pain) उत्पन्न होती है और बच्चे के जन्म में सहायता पहुंचाता है | यह स्तन में दुग्ध स्त्राव में भी सहायक होता है |

B. अवटु ग्रन्थि (Thyroid gland) :- 

                                                मनुष्य में यह ग्रन्थि द्विपिण्डक रचना होती है | यह ग्रन्थि श्वास नली या ट्रेकिया (Trachea) के दोनों तरफ लैरिंक्स (Larynx) के नीचे स्थित रहती है | यह संयोजी ऊतक की पतली अनुप्रस्थ पट्टी से जुडी रहती है जिसे इस्थमस (Isthmus) कहते हैं | यह अनेक खोखली व् गोल पुटिकाओं (Follicles) से मिलकर बनता है | इन पुतिकाओं की गुहा में आयोडीन युक्त गुलाबी रंग का कोलायडी पदार्थ स्त्रावित होता है , जिसे थाइरोग्लोब्युलिन (Thyroglobulin )कहते है | थाइराइड ग्रन्थि का अंत:स्त्राव या हार्मोन थाईरॉक्सिन (Thyroxine) तथा ट्रायोडोथाइरोनिन (Triodothyronine)है | इन दोनों ही हार्मोनों में आयोडीन आयोडीन अधिक मात्रा में रहता है |

1.थाइरोक्सिन (Thyroxine) :- 

                                            यह हॉर्मोन कोशिकीय श्वसन की गति को तीव्र करता है | यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषतया हड्डियों , बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है | यह हॉर्मोन दूसरी अंत: स्त्रावी ग्रंथियों को भी प्रभावित करता है | यह पियूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन के साथ सहयोग कर शरीर में जल संतुलन का नियंत्रण करता है | बच्चों में थाइरोक्सिन की कमी के कारण अवटूवामनता (Cretinism) नामक रोग उत्पन्न हो जाता है | इस रोग में 30 वर्ष की उम्र वाला व्यस्क 4 अथवा 5 साल का बालक प्रतीत होता है | यौवनावस्था (Puberty) के पश्चात इस हॉर्मोन की कमी के कारण शरीर में मिक्सीडिमा (Myxioedema) नामक रोग उत्पन्न होता है | मनुष्य में एक लम्बे समय तक इस हॉर्मोन की कमी के कारण हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) रोग उत्पन्न हो जाता है | भोजन में आयोडीन की कमी के कारण घेंघा या ग्लाईटर (Goitre) नामक रोग हो जाता है | इसके कारण थाइराइड ग्रंथि के आकार में बहुत वृद्धि हो जाती है | थायरॉक्सिन के आधिक्य से टोक्सिस ग्वाइटर (ToxieGoitre) नामक रोग होता है | थाकरॉक्सिन की अधिकता के कारण आँख फूलकर नेत्रकोटर से बाहर निकल जाती है | इस रोग को एक्सोप्थेल्मिक ग्वाईटर कहते हैं |

C. परावटू ग्रंथि (Parathyroid glands) :- 

                                               ये मटर की आकृति की पालियुक्त (Lobed) ग्रंथियां हैं | ये थाइरॉइड ग्रन्थि के पीछे स्थित रहती है और संयोजी ऊतक के एक संपुट द्वारा उससे अलग रहती है |

परावटू ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन व् उनके कार्य  :- 

                                                इस ग्रंथि द्वारा दो हॉर्मोनों का स्त्राव होता है | ये दोनों रक्त में कैल्सियम और फास्फोरस की मात्रा का नियन्त्रण करते हैं | ये हॉर्मोन हैं -

1. पैराथाइरॉइड हार्मोन (Parathyroid hormone) :- 

                                                यह हॉर्मोन उस समय मुक्त होता है , हब रक्त में कैल्सियम की कमी हो जाती है | यह हार्मोन कैल्सियम के अवशोषण तथा वृक्क में इसके पुनरावशोषण  को बढाता है | यह अस्थियों के अनावश्यक भाग को गलाकर रक्त में कैल्सियम और फास्फोरस मुक्त करता है | यह हड्डियों की वृद्धि एवं दांतों के निर्माण का नियन्त्रण करता है |

2. कैल्सिटोनिन हॉर्मोन (Calcitonin hormone ) :- 

                                                जब रक्त में कैल्सियम की मात्रा अधिक हो जाती है तब हॉर्मोन मुक्त होता है | यह हॉर्मोन पैराथाइरॉइड हॉर्मोन के विपरीत काम करता है | यह हड्डियों के विघटन को कम करता है तथा मूत्र में कैल्सियम का उत्प्सर्जन करता है |

D. अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) :- 

                                                अधिवृक्क ग्रन्थि को उपरिवृक्कीय ग्रंथि या सुप्रारिनल ग्लैंड के नाम से भी जाना जाता है | यह ग्रन्थि प्रत्येक वृक्क के उपरी सिरे अंदर की ओर स्थित रहती है | वस्तुत: अधिवृक्क ग्रंथि के दो भाग होते हैं  - 1. बाहरी वल्कुट या कॉर्टेक्स (Cortex) , 2. अंदरूनी मध्यांश या मेडुला  मेडुला (Medulla) | ये दोनों भाग कार्यात्मक रूप से तथा उत्पति में भी एक दुसरे से भिन्न होते हैं | 

1. एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य : इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोनों को निम्नलिखित तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है | 

(a) ग्लूकोकोर्टिकवायर्ड्स (Glucocorticoids) :- 

                                                भोजन उपापचय में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है | ये कार्बोहाइड्रेट्स , प्रोटीन एवं वसा के उपापचय का नियंत्रण करते हैं | शरीर में जल एवं इलेक्ट्रोलाइट्स में नियंत्रण में भी ये सहायक होते हैं | ये अमाशयिक स्त्राव को प्रेरित करते हैं | ये हॉर्मोन प्रदाह -विरोधी (Anti inflammatory) होते हैं . जिसके लिए ये श्वेत रुधिराणुओं पर नियंत्रण कर उत्तेजक पदार्थों के प्रति सुरक्षा प्रतिक्रियाओं को रोकते हैं | ये शरीर में लाल रुधिराणुओं की संख्या को बढाते हैं तथा श्वेत रुधिराणुओं को नियंत्रित करते हैं |

(b) मिनरलोकोर्टिक्वायड्स (Mineralocorticoids) :- 

                                                इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुन: अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है | ये शरीर में जल संतुलन को भी नियंत्रित करते है | इसके प्रभाव से मूत्र द्वारा पोटेशियम और फास्फेट की अधिक मात्रा में उत्सर्जन और सोडियम क्लोराइड एवं जल का कम मात्रा में उत्सर्जन होता है |

(c) लिंग हॉर्मोन (Sex hormones) :- 

                                            ये हॉर्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्धन , बाह्यलिंगों , बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन आचरण का नियंत्रण करते हैं | ये हॉर्मोन मुख्यत: नर हॉर्मोन एंड्रोजन्स (Androgens) तथा मादा हॉर्मोन एस्ट्रोजन्स (Estrogens) होते हैं | नर हॉर्मोन में मुख्य Dehydroepiandrosterone होता है | स्त्रियों में इस हॉर्मोन की अधिकता से चेहरे पर बाल बढने लगते हैं | इस प्रक्रिया को एड्रेनल विरिलिस्म (Adrenal virilism) कहते हैं |

2. एंड्रीनल मेडुला द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन व् उनके कार्य :- एंड्रीनल मेडुला से निम्नलिखित दो होर्मोनों का स्त्राव होता है - 

(a) एंड्रीनेलिन (Adrenalin) :- 

                                        इस हॉर्मोन को एड्रीनिन (Adrenin) एवं एपिनेफ्रीन (Epineprin) भी कहते हैं | यह हॉर्मोन मेडुला से स्त्रावित हॉर्मोन का अधिकांश भाग होता है | यह हॉर्मोन क्रोध , डर ,मानसिक तनाव एवं व्यस्तता की अवस्था में अत्यधिक स्त्रावित होने लगता है , जिससे इन संकटकालीन परिस्थितियों में उचित कदम उठाने का निर्णय लिया जा सकता है | यह हृदय स्पंदन की दर को बढ़ाता है | यह हॉर्मोन रोंगटे खड़े होने के लिए प्रेरित करता है | यह आँख की पुतलियों को फैलाता है | अधिवृक्क ग्रन्थि से निकलने वाले इस हॉर्मोन को लड़ो और उडो हॉर्मोन कहा जाता है |

(b) नॉर एड्रीनेलिन या नॉरएपीनेफ्रिन (Nor adrenalin or Nor epinephrine) :-

                                         ये समान रूप से हृदय पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते हैं | परिणामस्वरूप रक्त चाप (Blood pressure) बढ़ जाता है | यह हृदय स्पंदन के एकाएक रूप जाने पर उसे पुन: चालु करने में सहायक होता है |

एन्ड्रिनल के अल्पस्त्रवण से होने वाले रोग :

1. एडिसन रोग (Addison's disease) :- 

                                        इस रोग में रुधिर दाब कम हो जाताहै तथा सोडियम एवं जल का उत्सर्जन बढ़ जाता है जिससे निर्जलीकरण (Dehydration) हो जाता है | चेहरे गर्दन एवं त्वचा पर जगह जगह चकते पड़ जाते हैं |

2. कान्स रोग (Conn's disease):- 

                                        यह रोग सोडियम एवं पोटेशियम की कमी से हो जाता है | इस रोग में पेशियों में अकडन आ जाती है एवं रोगी की मृत्यु भी हो जाती है |

एड्रिनल के अतिस्त्रवण से होने वाले रोग :-

1. कुशिंग रोग (Cushing disease ):-

                                         इस रोग में शरीर में जल एवं सोडियम का जमाव अधिक हो जाता है | पेशीय शिथिलन होने लगता है | प्रोटीन केटाबलिज्म (Protein catabolism) बढ़ जाताहै तथा हड्डियाँ अनियमित हो जाती हैं |

2. एन्ड्रिनल विरिलिज्म(Adrenal virilism) :- 

                                            इस रोग में स्त्रियों में पुरुषों के लक्षण बनने लगते है | इसमें स्त्रियों के चेहरे पर दाढ़ी व् मुछों का आना , आवाज मोती हो जाना , बाँझपन उत्पन्न हो जाना इत्यादि होते हैं |

E. थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland) :- 

                                            यह ग्रंथि वक्ष में हृदय से आगे स्थित होती है | यह ग्रन्थि वृद्धवस्था में लू[लुप्त हो जाती है | यह गुलाबी , चपटी एवं द्विपालित (Bilobed) ग्रंथि है |

थाइमस ग्रंथि से स्त्रावित हॉर्मोन व् उनके कार्य :- थाइमस ग्रन्थि से निम्नलिखित होर्मोनों का स्त्राव होता है - 

1. थाइमोसीन(Thymosin), 

2. थाइमीन-I(Thymin -I), 

3. थाईमिन -II (Thymin-II) |

ये हॉर्मोन शरीर में लिम्फोसाइट कोशिकाएं बनाने में सहायक होती है | ये हॉर्मोन लिफ्मोसाईट को जीवाणुओं एवं एंटीजन्स (Antigens) को नष्ट करने के लिए प्रेरित करती है | ये शरीर में एंटीबॉडी बनाकर शरीर की सुरक्षा तन्त्र स्थापित करने में सहायक होती है |

F. अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्विपिकाएं :- 

                                        अग्न्याशय एक हल्के पीले रंग की विसरित ग्रन्थि है | यह अमाशय एवं ड्यूओडीनम (Duodenum) के बीच स्थित होती है | इससे अग्नाशय इस स्त्रावित होता है | इस इस में कई पाचक इन्जाइम होते हैं | इस प्रकार यह एक बहि:स्त्रावी ग्रन्थि है , परन्तु अग्नाशय में विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं के समुह पाए जाते हैं , जिन्हें लैंगरहैंस की द्विपिकाएं (Islets of Langerhans) कहते हैं | ये अंतस्त्रावी ग्रंथि का काम करती है | 

लैंगरहैंस की द्विपिका द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य :- लैंगरहैंस की द्विपिका में निम्नलिखित तीन प्रकार की कोशिकाएं पायी जाती हैं -  

(a)α- कोशिकाएं (α-cells),(b) β -  कोशिकाएं  (β -cells),(c) δ- कोशिकाएं  (δ- cells) ,γ-कोशिकाएं (Gamma cells) | इससे निम्नलिखित हॉर्मोनों जा स्त्राव होता है  -

(a) ग्लूकागॉन (Glucagon) :- 

                                    यह हॉर्मोन अल्फ़ा  कोशिकाओं  द्वारा स्त्रावित होता है | यह यकृत (Liver) में ग्लुकोनियोजेनेसिस को प्रेरित करता है , जिससे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है | यह ऊतकों में ग्लूकोज के उत्पादन में भी सहायक होता है |

(b) इन्सुलिन (Insulin) :- 

                                    यह हॉर्मोन बीटा -कोशिकाओं  द्वारा स्त्रावित होता है | यह कार्बोहाइड्रेट्स उपापचय के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| यह पेशियों एवं यकृत में ग्लूकोस से ग्लाईकोजेन के परिवर्तन की दर को काफी बढ़ा देता है | यह शर्करा एवं वसा के निर्माण में भी सहायक है और प्रोटीन संश्लेषण को प्रेरित करता है | यह पेशियों में ग्लूकोस उपापचय को तीव्र करता है | अगर अग्न्याशय इन्सुलिन हॉर्मोन का उत्पादन बंद कर दे तो मूत्र एवं रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जायेगी | यह ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से शरीर कोशिकाओं में उर्जा विमुक्ति को प्रभावित करता है | इन्सुलिन के अल्पस्त्रवण से मधुमेह या डाइबिटिज मेलिट्स (Diabetes mellitus) नामक रोग होता है | इस रोग में रुधिर ग्लूकोज की मात्रा बढने लगती है | ग्लूकोज की मात्रा बढने से ग्लूकोज मूत्र में उत्सर्जित होने लगता है| मूत्र में जल की मात्रा बढ़ जाती है  जिसे मूत्र पतला एवं मात्रा बढ़ जाती है | इस प्रकार बहुमुत्रता की अवस्था उत्पन्न हो जाती है | इन्सुलिन के अतिस्त्र्वण  से हाइपोग्लाइसीमिया नामक रोग हो जाता है | इस रोग में रक्त में रुधिर की मात्रा कम हो जाती है जिससे तंत्रिका तथा रेटिना की कोशिकाएं उर्जा की कम मात्रा की अवस्था में आ जाती है | इससे जनन क्षमता एवं दृष्टि ज्ञान कम होने लगता है तथा रोगी को थकावट अधिक महसूस होती है | 

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