ग्रंथियों के प्रकार

 ग्रंथियों के प्रकार :- कशेरुकी जन्तुओं में तीन प्रकार की ग्रंथियां पायी जाती हैं | ये हैं - (Types of Glands:- Three types of glands are found in vertebrates. These are -

(a) बहि:स्त्रावी ग्रंथियां (Exocrine glands):- 

                                                                शरीर की ऐसी ग्रंथियां जिनके द्वारा स्त्राव को विभिन्न अंगों तक पहुंचाने के लिए वाहिनियाँ या नलिकाएं होती हैं , बहि:स्त्रावी ग्रन्थियां (Exocrine glands) कहलाती है | बहि:स्त्रावी ग्रंथियों को नलिकायुक्त ग्रन्थियां (Duct glands ) भी कहते हैं | बहि:स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्राव को इन्जाइम (Enzyme) कहा जाता है | स्वेद ग्रंथि दुग्ध ग्रन्थि , लार ग्रन्थि , श्लेष्म ग्रन्थि , अश्रु ग्रन्थि आदि बहि:स्त्रावी ग्रन्थि के प्रमुख उदाहरण है |

(b) अंत:स्त्रावी ग्रंथियां (Endocrine Glands):- 

                                                                बहि:स्त्रावी ग्रंथियों के विपरीत अंत:स्त्रावी ग्रंथियां नलिकाविहीन (Ductless) होती हहै  | अत: इन्हें नलिकाविहीन ग्रंथियां (Ductless glands) भी कहते हैं | अंत:स्त्रावी ग्रंथियां नलिका (Duct) के अभाव में अपने स्त्राव को सीधे परिसंचरण में मुक्त करती हैं | अतं:स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित स्त्राव को अंत:स्त्राव या हॉर्मोन कहते हैं | ये हॉर्मोन फिर रुधिर के साथ उन अंगों तक चले जाते हैं , जहाँ इनका प्रभाव होना होता है | पियूष ग्रंथि , थाईरोइड ग्रंथि , अधिवृक्क ग्रंथि , पैराथाइरोइड ग्रंथि पीनियल काय , थाइमस ग्रंथि आदि प्रमुख अंत: स्त्रावी  ग्रंथियां हैं |

(c) मिश्रित ग्रंथियां (Mixed glands):-

                                                            कुछ ग्रंथियां ऐसी होती है जो बहि:स्त्रावी तथा अंत:स्त्रावी दोनों ही प्रकार की होती हैं , उन्हें मिश्रित ग्रंथियां कहते हैं | जैसे -अग्नाशय (Pancreas) |

मानव शरीर की मुख्य अंत:स्त्रावी ग्रंथियां एवं उनसे स्त्रावित हॉर्मोन के कार्य एवं प्रभाव :-

A. पियूष ग्रंथि (Pituitary gland):- 

                                                            यह कपाल (Skull) की स्फेनॉइड(Sphenoid) हड्डी में सेलातटर्सिका (Sellturcica) नामक गड्डे में उपस्थित रहती है | यह तालू (Palate) एवं मस्तिष्क (Brain) के अधरतल के मध्य स्थित रहती हैएवं उससे एक इन्फ़न्डिबुलम (Infundibulum) नाम छोटे वृंत (Stalk) से जुडी रहती है | इसका भार लगभग 0.6 ग्राम होता है | स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान यह कुछ बड़ी हो जाती है | पियूष ग्रन्थि को मास्टर ग्रंथि (Master Glands) भी कहा जाता है , क्यूंकि यह अन्य अंत:स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्रवण को नियंत्रित करती है | साथ ही साथ यह व्यक्ति के स्वभाव , स्वास्थ्य वृद्धि एवं लैंगिक विकास को भी प्रेरित करती है |

पियूष ग्रन्थि से स्त्रावित होने वाले हॉर्मोन एवं उनके कार्य : पियूष ग्रन्थि द्वारा निम्नलिखित हार्मोनो का स्त्राव होता है -

1. वृद्धि हॉर्मोन या सोमैटोट्रोपिक हॉर्मोन(Growth hormone or somatotropic hormone) :- 

                                                            यह शरीर की वृद्धि विशेषतया हड्डियों की वृद्धि का नियन्त्रण करता है | इसकी अधिकता से भीमकायता (Gigantism) अथवा एक्रोमिगली (Acromegaly) विकार उत्पन्न हो जाता है | इसके कारण मनुष्य की लम्बाई सामान्य से बहुत अधिक बढ़ जाती है तथा हड्डियाँ भारी व् मोटी हो जाती है | बाल्यावस्था में इस हॉर्मोन के कम स्त्राव से शरीर की वृद्धि रुक जाती है जिससे मनुष्य में बौनापन (Dwarfism ) हो जाता है |

2. थाईरोट्रोपिक या थाइराइड प्रेरक हॉर्मोन (Thyrotropic or thyroid stimultaing hormone -STH) :- 

                                                            यह हार्मोन थाइराइड ग्रन्थि के कार्यों को उद्दीपित करता है | यह थाईरॉक्सिन हॉर्मोन के स्त्रवण को भी प्रभावित करता है |

3. एड्रीनोकोर्टिको ट्रोपिक हॉर्मोन -ACTH Adrennocortico tropic hormone:- 

                                                            यह हॉर्मोन अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) के कोर्टेक्स (Cortex) को प्रभावित कर उससे निकलने वाले हॉर्मोन को भी प्रेरित करता है |

4. गोनेडोट्रोपिक हॉर्मोन (Gonadotropic hormone) :- 

                                                        यह हॉर्मोन जनन ग्रन्थियों (Gonads) की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है | यह दो प्रकार का होता है |

(a) फॉलिकल उत्तेजन हॉर्मोन (Follicle stimulating hormone -FSH):- 

                                                        पुरुषों में यह हॉर्मोन शुक्रजन (Spermatogenesis) को उद्दीपित करता है | स्त्रियों में यह हार्मोन अंडाशय से अन्डोत्सर्ग (Ovulation) को प्रेरित करता है | यह अंडाशय में फॉलिकल की वृद्धि में सहायता करता है |

(b) ल्युटीनाइजिंग हॉर्मोन (Lutenizing hormone -LH):- 

                                                        पुरुषों में यह हॉर्मोन अंतराली कोशिकाओं (Interstial cells) को प्रभावित कर नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन (Testoterone) को प्रेरित करता है , जबकि स्त्रियों में यह एस्ट्रोजन हार्मोन के स्त्राव को प्रेरित करता है |

5. दुग्धजनक हार्मोन (Lactogenic hormone-LTH) :- 

                                                        यह दुग्धजनक हार्मोन है | इस हॉर्मोन का मुख्य कार्य शिशु के लिए स्तनों दुग्ध स्त्राव उत्पन्न करना है | इस हॉर्मोन से कार्पसल्यूटियम (Corpusluteum) का स्त्राव भी शुरु होता है |

6. मिलेनोसाईट प्रेरक हॉर्मोन(Melanocyte stimulating  hormone) :-

                                                             निम्न जन्तुओं एवं पक्षियों में यह हार्मोन मिलेविन (Melanin) वर्णक के कणों को फैलाकर त्वचा के रंग को प्रभावित करता है | इसके फलस्वरूप त्वचा रंगीन होती है | मनुष्य में यह हार्मोन त्वचा पर चकते तथा तिल पड़ने को प्रेरित करता है |

7. वेसोप्रेसीन या एंटीडाइयुरेटिक हॉर्मोन (Vasopressin or Antidiuratic hormone -ADH) :- 

                                                            यह हॉर्मोन वृक्क की मूत्रवाहिनियों को हल पुनरावशोषण(रReabsorption) करने के लिए प्रेरित करता है | इसके अतिरिक्त यह रुधिर वाहिनियों को सिकोड़ कर रुधिर दाब (Blood pressure) बढाता है | यह शरीर के जल संतुलन में सहायक होता है | इस कारण इसे Antidiuratic कहा है | इस हॉर्मोन की कमी से उदकमेंह या डायबिटीज इन्सीपिड्स नामक रोग हो जाता है |

8. ऑक्सीटोसिन (Oxytocin) या पाइटोसिन (Pitocine) :- 

                                                              यह हॉर्मोन गर्भाशय की आरेखित पेशियों में सिकुडन पैदा करता है जिससे प्रसव पीड़ा (Labour pain) उत्पन्न होती है और बच्चे के जन्म में सहायता पहुंचाता है | यह स्तन में दुग्ध स्त्राव में भी सहायक होता है |

B. अवटु ग्रन्थि (Thyroid gland) :-

                                                              मनुष्य में यह ग्रन्थि द्विपिण्डक रचना होती है | यह ग्रन्थि श्वास नली या ट्रेकिया (Trachea) के दोनों तरफ लैरिंक्स (Larynx) के नीचे स्थित रहती है | यह संयोजी ऊतक की पतली अनुप्रस्थ पट्टी से जुडी रहती है जिसे इस्थमस (Isthmus) कहते हैं | यह अनेक खोखली व् गोल पुटिकाओं (Follicles) से मिलकर बनता है | इन पुतिकाओं की गुहा में आयोडीन युक्त गुलाबी रंग का कोलायडी पदार्थ स्त्रावित होता है , जिसे थाइरोग्लोब्युलिन (Thyroglobulin )कहते है | थाइराइड ग्रन्थि का अंत:स्त्राव या हार्मोन थाईरॉक्सिन (Thyroxine) तथा ट्रायोडोथाइरोनिन (Triodothyronine)है | इन दोनों ही हार्मोनों में आयोडीन आयोडीन अधिक मात्रा में रहता है |

1.थाइरोक्सिन (Thyroxine) :-

                                                         यह हॉर्मोन कोशिकीय श्वसन की गति को तीव्र करता है | यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषतया हड्डियों , बाल इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है | यह हॉर्मोन दूसरी अंत: स्त्रावी ग्रंथियों को भी प्रभावित करता है | यह पियूष ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन के साथ सहयोग कर शरीर में जल संतुलन का नियंत्रण करता है | बच्चों में थाइरोक्सिन की कमी के कारण अवटूवामनता (Cretinism) नामक रोग उत्पन्न हो जाता है | इस रोग में 30 वर्ष की उम्र वाला व्यस्क 4 अथवा 5 साल का बालक प्रतीत होता है | यौवनावस्था (Puberty) के पश्चात इस हॉर्मोन की कमी के कारण शरीर में मिक्सीडिमा (Myxioedema) नामक रोग उत्पन्न होता है | मनुष्य में एक लम्बे समय तक इस हॉर्मोन की कमी के कारण हाइपोथायरायडिज्म (Hypothyroidism) रोग उत्पन्न हो जाता है | भोजन में आयोडीन की कमी के कारण घेंघा या ग्लाईटर (Goitre) नामक रोग हो जाता है | इसके कारण थाइराइड ग्रंथि के आकार में बहुत वृद्धि हो जाती है | थायरॉक्सिन के आधिक्य से टोक्सिस ग्वाइटर (ToxieGoitre) नामक रोग होता है | थाकरॉक्सिन की अधिकता के कारण आँख फूलकर नेत्रकोटर से बाहर निकल जाती है | इस रोग को एक्सोप्थेल्मिक ग्वाईटर कहते हैं |

C. परावटू ग्रंथि (Parathyroid glands) :-

                                                             ये मटर की आकृति की पालियुक्त (Lobed) ग्रंथियां हैं | ये थाइरॉइड ग्रन्थि के पीछे स्थित रहती है और संयोजी ऊतक के एक संपुट द्वारा उससे अलग रहती है |

परावटू ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन व् उनके कार्य  :- इस ग्रंथि द्वारा दो हॉर्मोनों का स्त्राव होता है | ये दोनों रक्त में कैल्सियम और फास्फोरस की मात्रा का नियन्त्रण करते हैं | ये हॉर्मोन हैं -

1. पैराथाइरॉइड हार्मोन (Parathyroid hormone) :- 

                                                            यह हॉर्मोन उस समय मुक्त होता है , जब रक्त में कैल्सियम की कमी हो जाती है | यह हार्मोन कैल्सियम के अवशोषण तथा वृक्क में इसके पुनरावशोषण  को बढाता है | यह अस्थियों के अनावश्यक भाग को गलाकर रक्त में कैल्सियम और फास्फोरस मुक्त करता है | यह हड्डियों की वृद्धि एवं दांतों के निर्माण का नियन्त्रण करता है |

2. कैल्सिटोनिन हॉर्मोन (Calcitonin hormone ) :-

                                                            जब रक्त में कैल्सियम की मात्रा अधिक हो जाती है तब हॉर्मोन मुक्त होता है | यह हॉर्मोन पैराथाइरॉइड हॉर्मोन के विपरीत काम करता है | यह हड्डियों के विघटन को कम करता है तथा मूत्र में कैल्सियम का उत्प्सर्जन करता है |

D. अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) :- 

                                                            अधिवृक्क ग्रन्थि को उपरिवृक्कीय ग्रंथि या सुप्रारिनल ग्लैंड के नाम से भी जाना जाता है | यह ग्रन्थि प्रत्येक वृक्क के उपरी सिरे अंदर की ओर स्थित रहती है | वस्तुत: अधिवृक्क ग्रंथि के दो भाग होते हैं  - 1. बाहरी वल्कुट या कॉर्टेक्स (Cortex) , 2. अंदरूनी मध्यांश या मेडुला  मेडुला (Medulla) | ये दोनों भाग कार्यात्मक रूप से तथा उत्पति में भी एक दुसरे से भिन्न होते हैं | 

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