एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य-Hormones-and-their-functions-secreted-by-the-adrenal-cortex
एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य(Hormones and their functions secreted by the adrenal cortex)
1. एड्रीनल कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य : इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोनों को निम्नलिखित तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है |
(a) ग्लूकोकोर्टिकवायर्ड्स (Glucocorticoids) :-
भोजन उपापचय में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है | ये कार्बोहाइड्रेट्स , प्रोटीन एवं वसा के उपापचय का नियंत्रण करते हैं | शरीर में जल एवं इलेक्ट्रोलाइट्स में नियंत्रण में भी ये सहायक होते हैं | ये अमाशयिक स्त्राव को प्रेरित करते हैं | ये हॉर्मोन प्रदाह -विरोधी (Anti inflammatory) होते हैं . जिसके लिए ये श्वेत रुधिराणुओं पर नियंत्रण कर उत्तेजक पदार्थों के प्रति सुरक्षा प्रतिक्रियाओं को रोकते हैं | ये शरीर में लाल रुधिराणुओं की संख्या को बढाते हैं तथा श्वेत रुधिराणुओं को नियंत्रित करते हैं |
(b) मिनरलोकोर्टिक्वायड्स (Mineralocorticoids) :-
इनका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवण के पुन: अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है | ये शरीर में जल संतुलन को भी नियंत्रित करते है | इसके प्रभाव से मूत्र द्वारा पोटेशियम और फास्फेट की अधिक मात्रा में उत्सर्जन और सोडियम क्लोराइड एवं जल का कम मात्रा में उत्सर्जन होता है |
(c) लिंग हॉर्मोन (Sex hormones) :-
ये हॉर्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्धन , बाह्यलिंगों , बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन आचरण का नियंत्रण करते हैं | ये हॉर्मोन मुख्यत: नर हॉर्मोन एंड्रोजन्स (Androgens) तथा मादा हॉर्मोन एस्ट्रोजन्स (Estrogens) होते हैं | नर हॉर्मोन में मुख्य Dehydroepiandrosterone होता है | स्त्रियों में इस हॉर्मोन की अधिकता से चेहरे पर बाल बढने लगते हैं | इस प्रक्रिया को एड्रेनल विरिलिस्म (Adrenal virilism) कहते हैं |
2. एंड्रीनल मेडुला द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन व् उनके कार्य :- एंड्रीनल मेडुला से निम्नलिखित दो होर्मोनों का स्त्राव होता है -
(a) एंड्रीनेलिन (Adrenalin) :-
इस हॉर्मोन को एड्रीनिन (Adrenalin) एवं एपिनेफ्रीन (Epineprin) भी कहते हैं | यह हॉर्मोन मेडुला से स्त्रावित हॉर्मोन का अधिकांश भाग होता है | यह हॉर्मोन क्रोध , डर ,मानसिक तनाव एवं व्यस्तता की अवस्था में अत्यधिक स्त्रावित होने लगता है , जिससे इन संकटकालीन परिस्थितियों में उचित कदम उठाने का निर्णय लिया जा सकता है | यह हृदय स्पंदन की दर को बढ़ाता है | यह हॉर्मोन रोंगटे खड़े होने के लिए प्रेरित करता है | यह आँख की पुतलियों को फैलाता है | अधिवृक्क ग्रन्थि से निकलने वाले इस हॉर्मोन को लड़ो और उडो हॉर्मोन कहा जाता है |
(b) नॉर एड्रीनेलिन या नॉरएपीनेफ्रिन (Nor adrenalin or Nor epinephrine) :-
ये समान रूप से हृदय पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते हैं | परिणामस्वरूप रक्त चाप (Blood pressure) बढ़ जाता है | यह हृदय स्पंदन के एकाएक रूप जाने पर उसे पुन: चालु करने में सहायक होता है |
एन्ड्रिनल के अल्पस्त्रवण से होने वाले रोग :
1. एडिसन रोग (Addison's disease) :-
इस रोग में रुधिर दाब कम हो जाताहै तथा सोडियम एवं जल का उत्सर्जन बढ़ जाता है जिससे निर्जलीकरण (Dehydration) हो जाता है | चेहरे गर्दन एवं त्वचा पर जगह जगह चकते पड़ जाते हैं |
2. कान्स रोग (Conn's disease):-
यह रोग सोडियम एवं पोटेशियम की कमी से हो जाता है | इस रोग में पेशियों में अकडन आ जाती है एवं रगी की मृत्यु भी हो जाती है |
एड्रिनल के अतिस्त्रवण से होने वाले रोग :-
1. कुशिंग रोग (Cushing disease ):-
इस रोग में शरीर में जल एवं सोडियम का जमाव अधिक हो जाता है | पेशीय शिथिलन होने लगता है | प्रोटीन केटाबलिज्म (Protein catabolism) बढ़ जाताहै तथा हड्डियाँ अनियमित हो जाती हैं |
2. एन्ड्रिनल विरिलिज्म(Adrenal virilism) :-
इस रोग में स्त्रियों में पुरुषों के लक्षण बनने लगते है | इसमें स्त्रियों के चेहरे पर दाढ़ी व् मुछों का आना , आवाज मोती हो जाना , बाँझपन उत्पन्न हो जाना इत्यादि होते हैं |
E. थाइमस ग्रन्थि (Thymus gland) :-
यह ग्रंथि वक्ष में हृदय से आगे स्थित होती है | यह ग्रन्थि वृद्धवस्था में लू[लुप्त हो जाती है | यह गुलाबी , चपटी एवं द्विपालित (Bilobed) ग्रंथि है |
थाइमस ग्रंथि से स्त्रावित हॉर्मोन व् उनके कार्य :-
थाइमस ग्रन्थि से निम्नलिखित होर्मोनों का स्त्राव होता है - 1. थाइमोसीन(Thymosin), 2. थाइमीन-I(Thymin -I), 3. थाईमिन -II (Thymin-II) |ये हॉर्मोन शरीर में लिम्फोसाइट कोशिकाएं बनाने में सहायक होती है | ये हॉर्मोन लिफ्मोसाईट को जीवाणुओं एवं एंटीजन्स (Antigens) को नष्ट करने के लिए प्रेरित करती है | ये शरीर में एंटीबॉडी बनाकर शरीर की सुरक्षा तन्त्र स्थापित करने में सहायक होती है |
F. अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्विपिकाएं :-
अग्न्याशय एक हल्के पीले रंग की विसरित ग्रन्थि है | यह अमाशय एवं ड्यूओडीनम (Duodenum) के बीच स्थित होती है | इससे अग्नाशय इस स्त्रावित होता है | इस इस में कई पाचक इन्जाइम होते हैं | इस प्रकार यह एक बहि:स्त्रावी ग्रन्थि है , परन्तु अग्नाशय में विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं के समुह पाए जाते हैं , जिन्हें लैंगरहैंस की द्विपिकाएं (Islets of Langerhans) कहते हैं | ये अंतस्त्रावी ग्रंथि का काम करती है |
लैंगरहैंस की द्विपिका द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य :-
लैंगरहैंस की द्विपिका में निम्नलिखित तीन प्रकार की कोशिकाएं पायी जाती हैं - (a)α- कोशिकाएं (α-cells),(b) β - कोशिकाएं (β -cells),(c) δ- कोशिकाएं (δ- cells) ,γ-कोशिकाएं (Gamma cells) | इससे निम्नलिखित हॉर्मोनों जा स्त्राव होता है -
(a) ग्लूकागॉन (Glucagon) :-
यह हॉर्मोन अल्फ़ा कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है | यह यकृत (Liver) में ग्लुकोनियोजेनेसिस को प्रेरित करता है , जिससे ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है | यह ऊतकों में ग्लूकोज के उत्पादन में भी सहायक होता है |
(b) इन्सुलिन (Insulin) :-
यह हॉर्मोन बीटा -कोशिकाओं द्वारा स्त्रावित होता है | यह कार्बोहाइड्रेट्स उपापचय के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है| यह पेशियों एवं यकृत में ग्लूकोस से ग्लाईकोजेन के परिवर्तन की दर को काफी बढ़ा देता है | यह शर्करा एवं वसा के निर्माण में भी सहायक है और प्रोटीन संश्लेषण को प्रेरित करता है | यह पेशियों में ग्लूकोस उपापचय को तीव्र करता है | अगर अग्न्याशय इन्सुलिन हॉर्मोन का उत्पादन बंद कर दे तो मूत्र एवं रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जायेगी | यह ग्लूकोस के ऑक्सीकरण से शरीर कोशिकाओं में उर्जा विमुक्ति को प्रभावित करता है | इन्सुलिन के अल्पस्त्रवण से मधुमेह या डाइबिटिज मेलिट्स (Diabetes mellitus) नामक रोग होता है | इस रोग में रुधिर ग्लूकोज की मात्रा बढने लगती है | ग्लूकोज की मात्रा बढने से ग्लूकोज मूत्र में उत्सर्जित होने लगता है| मूत्र में जल की मात्रा बढ़ जाती है जिसे मूत्र पतला एवं मात्रा बढ़ जाती है | इस प्रकार बहुमुत्रता की अवस्था उत्पन्न हो जाती है | इन्सुलिन के अतिस्त्र्वण से हाइपोग्लाइसीमिया नामक रोग हो जाता है | इस रोग में रक्त में रुधिर की मात्रा कम हो जाती है जिससे तंत्रिका तथा रेटिना की कोशिकाएं उर्जा की कम मात्रा की अवस्था में आ जाती है | इससे जनन क्षमता एवं दृष्टि ज्ञान कम होने लगता है तथा रोगी को थकावट अधिक महसूस होती है |
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