संधि क्या होती है व् स्वर संधि के भेद कितने होते हैं ?
मंगलवार, 26 मई 2020
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संधि
“ दो वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को ‘संधि’कहते है “
संधि का शब्दिक अर्थ है – मेल या समझौता |जब दो वर्णों का मिलन अत्यंत निकटता के कारण होता है तब उनमें कोई न कोई परिवर्तन होता है और वही परिवर्तन संधि के नाम से जाना जाता है |
संधि क्या होती है |
ध्यातव्य : वर्ण संयोजन को ही संयोग कहा जाता है जिसकी चर्चा ध्वनि पाठ में हो चुकी है| संस्कृत से गृहीट संधि जिनका प्रयोग हिंदी भाषा में भी होता है के तीन प्रकार होते है –
संधि को कैसे पहचाने :-
स्वर संधि
“स्वर संधि के साथ स्वर वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे “स्वर संधि” कहते है | जैसे – रवि + इंद्र यहाँ इ और इ दो स्वरों के बीच संधि होकर ‘ई’ रूप हुआ |
स्वर संधि पांच तरह की होती है
1. दीर्घ स्वर संधि :
इसमें दो सवर्ण या सजातीय स्वरों के बीच संधि होकर उनके दीर्घ रूप हो जाते है | अर्थात दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते है | इस संधि में चार रूप देखे जाते है:-
A. अ/आ + अ/आ = आ
यानी, अ + आ = आ
आ + अ =आ
B. इ/ई + इ/ई = ई
यानी इ + इ = ई
इ + ई =ई
ई + इ = ई
ई + ई = ई
अगला खंड कव ई न्द्र
व् से ई का संयोग होने पर रूप ‘कवी’ ‘न्द्र’
दोनों खंडों को मिला देने पर ‘कवीन्द्र’ बना |
इसी तरह, कवि + ईश = कवीश
सती + ईश = सतीश
C. उ/ऊ + उ/ऊ = ऊ
उ + उ = ऊ
उ + ऊ = ऊ
ऊ + उ =ऊ
ऊ + ऊ =ऊ
अगला खंड गुर ऊ पदेश
र से ऊ का संयोग होने पर ‘रू’ बना यानी गुरु पदेश बना | इसी तरह लघु + ऊर्मि = लघूर्मि, वधू + उत्सव = वधुत्सव
D. ऋ + ऋ/ऋ = ऋ (सिर्फ संस्कृत में प्रयोग)
2. गुण स्वर संधि :-
यदि ‘अ’ या आ के बाद इ/ई आए तो ‘ए’,ऊ/ऊ जाए तो ‘ओ’ और ‘ऋ’ आये तो ‘अर’ हो जाता है | यानी,
1. अ/आ + इ/ई = ए
‘व’ से ‘ए’ का संयोग होने पर देवेन्द्र और दोनों खंडो को मिलाने पर ‘देवेन्द्र’ बना | इसी तरह , देव + ईश = देवेश
गण + ईश = गणेश
सुर + इंद्र = सुरेन्द्र
2. अ/आ + उ/ऊ = ओ
र से ओ का संयोग होने और सभी खंडो को मिलाने पर ‘वीरोचित’ बना |इसी तरह, नव + ऊढा = नवोढ़ा
सूर्य + उदय =सूर्योदय
चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
3. अ/आ + ऋ = अर
’मह’ और ‘ह’ से ‘अ’ का संयोग होने – मह र षी
र का रेफ हो जाने पर ‘र्षि’ बना |
ध्यातव्य : जब दो सस्वर व्यंजनों के बीच ‘र’ रहे तो वह अगले व्यंजन पर रेफ बन जाता है | उपर्युक्त उदाहरण में ‘ह’ और ‘र्षि’ पर रेफ बन चूका है | इसी तरह , सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
3. वृद्धि स्वर संधि :
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ए/ऐ रहे तो ‘ऐ’ और ओ/ओ रहे तो ‘औ’ बन जाता है | यानी ,
1. अ/आ + ए/ऐ = ऐ
ए कै क = एकैक
2. अ/आ + ओ/औ = औ
इसी तरह, महा + ओषधि =महौषधि , महा + औषध = महौषध, परम + औदार्य = परमौदार्य
4. यण स्वर संधि :
यदि इ/ई, उ/ऊ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आये तो इ/ई का ‘य’ उ/ऊ का ‘व’ और ऋ का ‘र’ हो जाता है | यानी ,
1. इ/ई + भिन्न स्वर ,य (यह भिन्न स्वर से मिल जाता है) जैसे – प्रति + एक = प्रत्येक
2. उ/ऊ + भिन्न स्वर व्(यह भिन्न स्वर से मिल जाता है |) | जैसे अनु + अय = अन्वय
3. ऋ + भिन्न स्वर र(यह भिन्न स्वर से मिल जाता है) , जैसे – मातृ + आनन्द = मात्रानन्द
5. अयादि स्वर संधि :
यदि ए,ऐ ,ओ और औ के बाद भिन्न स्वर आये तो ‘ए’ का अय ‘ऐ’ का आय ,’ओ’ का अव और ,’औ’ का आव हो जाता है |
ध्यातव्य : अय, आय,अव, और आव के य और व आगेवाले भिन्न स्वर से मिल जाते है |
व्यंजन संधि
व्यंजन संधि की निम्नलिखित स्थितियां होती है -
{क} व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण का मेल – जैसे दिक् + गज = दिग्गज , यहाँ व्यजंन + व्यंजन (दो वर्णों का मेल हुआ)
(ख) व्यंजन वर्ण और स्वर वर्ण का मेल – जैसे – सत + चित + आनंद = सच्चिदानंद यहाँ व्यजंन + व्यंजन + व्यंजन + स्वर का मेल दिखाया गया है |
(ग) स्वर वर्ण और व्यजंन वर्ण का मेल और वर्ण रुपान्तरण : जैसे अभि + सेक = अभिषेक (षे (से का षे में रूपान्तरण है )
(घ) किसी नये वर्ण का आगम – जैसे आ + छादन = आच्छादन (च नये वर्ण का आगम)
अर्थात् “व्यंजन वर्ण के साथ स्वर वर्ण या व्यंजन वर्ण अथवा स्वर वर्ण के साथ व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न हो , उसे ‘व्यंजन संधि’ कहते है |“
विसर्ग संधि
“विसर्ग के साथ स्वर अथवा व्यंजन वर्ण के मेल से जो विकार उत्पन्न हो, उसे ‘विसर्ग संधि कहते है |”
विसर्ग संधि के नियम इस प्रकार है –
a. विसर्ग ( : ) + च/छ = श जैसे -नि: + चल = निश्चल
b. विसर्ग + ट/ठ = ष जैसे – धनु: + टंकार = धनुष्टन्कार
c. विसर्ग + त/थ = स जैसे –नि: + तेज = निस्तेज
d. (अ) विसर्ग + वर्गो का तीसरा,4था,5वां वर्ण/अन्त: स्थ/ह = ओ जैसे = सर: + ज = सरोज
e. विसर्ग + क/ख/प = अपरिवर्तित जैसे प्रात : + काल =प्रात:काल
f. विसर्ग + श/स विसर्ग ज्यों का त्यों या विसर्ग का रूपान्तरण अगले ‘स’ में (यानी दोनों स्थितियां होती है ) जैसे – दु: + शासन = दु:शासन / दुश्शासन
g. (इ/उ) विसर्ग + क/प = ष जैसे नम: + कार = नमस्कार
हिंदी की स्वतंत्र सन्धियाँ
उपर्युक्त तीनों सन्धियाँ संस्कृत से हिंदी में आई है | हिंदी में निम्नलिखित छ: प्रवृतियोंवाली सन्धियाँ होती है -
1. महाप्राणीकरण
2. घोषीकरण
3. ह्र्स्वीकरण
4. आगम
5. व्यजंन-लोपीकरण
6. स्वर – व्यंजन लोपीकरण
इसे विस्तार से इस प्रकार समझा जा सकता है
A. पूर्व स्वर लोप : दो स्वरों के मिलने पर पूर्व स्वर का लोप हो जाता है | इसके भी दो प्रकार है
1. अविकारी पूर्वस्वर लोप : जैसे – मिल + अन = मिलन ,अन का लोप
2. विकारी पूर्वस्वर लोप : जैसे भूल + आवा = भुलावा, लूट + एरा = लुटेरा
B. ह्रस्वकारी स्वर संधि : दो स्वरों के मिलने पर प्रथम खंड का अंतिम स्वर ह्रस्व हो जाता है | इसकी भी दो स्थितियां होती है
1. अविकारी ह्रस्वकारी : जैसे – साधु + ओं = साधुओं
2. विकारी ह्र्स्वकारी :- जैसे साधु + अक्कड़ी = सधुक्कड़ी
C. आगम स्वर संधि : इसकी भी दो स्थितियां है
1. अविकारी आगम स्वर : इसमें अंतिम स्वर में कोई विकार नहीं होता जैसे – तिथि + आँ = तिथियाँ
2. विकारी आगम स्वर : इसका अंतिम स्वर विकृत हो जाता है |
जैसे नदी + आँ = नदियाँ
D. पूर्वस्वर लोपी व्यंजन संधि : इसमें प्रथम खंड के अंतिम स्वर का लोप हो जाया करता है | जैसे तुम + ही \ तुम्हीं
E. स्वर व्यंजन लोपी व्यजंन संधि : इसमें प्रथम खंड के स्वर तथा अंतिम खंड के व्यंजन का लोप हो जाता है | जैसे – कुछ + ही = कुछी
F. मध्यवर्ण लोपी व्यजंन संधि : इसमें प्रथम खंड के अंतिम वर्ण का लोप हो जाता है | जैसे – वह + ही = वही
G. पूर्व स्वर ह्रस्वकारी व्यंजन संधि : इसमें प्रथम खंड का प्रथम वर्ण ह्रस्व हो जाता है | जैसे कान + कटा = कनकटा
H. महाप्राणीकरण व्यंजन संधि : यदि प्रथम खंड का अंतिम वर्ण ब हो तथा द्वितीय खंड का प्रथम वर्ण ‘ह’ हो तो ‘ह’ का ‘भ’ हो जाता है और ‘ब’ का लोप हो जाता है | जैसे अब + ही = अभी
I. सानुनासिक मध्यवर्णलोपी व्यंजन संधि : इसमें प्रथम खंड के अनुनासिक स्वरयुक्त व्यंजन का लोप हो जाता है उसकी केवल अनुनासिकता बची रहती है | जैसे जहां + ही = जहीं
J. आकारागम व्यंजन संधि :- इसमें संधि करने पर बीच में “आकार” का आगम हो जाया करता है | जैसे – सत्य + नाश = सत्यानाश |
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