अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम व् क्रिया के अन्य प्रकार

अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम :

 
अकर्मक से सकर्मक
अकर्मक से सकर्मक बनाने के नियम व् क्रिया के अन्य प्रकार

1. दो अक्षरों के धातु के प्रथम अक्षर को और तीन अक्षरों के धातु के द्वितीयाक्षर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक हो जाता है | जैसे –

अकर्मकसकर्मक
लदनालादना
लुटनालूटना
उखड़नाउखाड़ना
पिसनापीसना
टलनाटालना
फँसनाफाँसना
कटनाकाटना
संभलनासंभालना
निकलनानिकालना
पिटनापीटना
गड़नागाड़ना
कढ़नाकाढ़ना
मरनामारना
बिगड़नाबिगाड़ना

2. यदि अकर्मक धातु के प्रथमाक्षर में ‘इ’ या ‘उ’ स्वर रहे तो इसे गुण करके सकर्मक धातु बनाए जाते हैं | जैसे –
घिरना घेरना फिरना फेरना छिदना छेदना
मुड़ना मोड़ना खुलना खोलना दिखना देखना[

3. ‘ट’ अंतवाले अकर्मक धातु के ‘ट’ को ‘ड़’ में बदलकर पहले या दूसरे नियम से सकर्मक धातु बनाते हैं | जैसे –
फटना फोड़ना जुटना जोड़ना छूटना छोड़ना
टूटना तोड़ना

क्रिया के अन्य प्रकार

1. पूर्वकालिक क्रिया

“जब कोई कर्त्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरी क्रिया करता है तब पहली क्रिया ‘पूर्वकालिक क्रिया’ कहलाती है |” जैसे –
चोर उठ भागा | (पहले उठना फिर भागना)
वह खाकर सोता है | (पहले खाना फिर सोना)
उक्त दोनों वाक्यों में ‘उठ’ और ‘खाकर’ पूर्वकालिक क्रिया हुई |
पूर्वकालिक क्रिया प्रयोग में अकेली नहीं आती है, वह दूसरी क्रिया के साथ ही आती है | इसके चिह्न है –
धातु + ० - उठ, जाना ......................
धातु + के - उठके, जाग के ......................
धातु + कर - उठकर, जागकर ......................
धातु + करके - उठकरके, जागकरके ......................
नोट : परन्तु, यदि दोनों साथ-साथ हों तो ऐसी स्थिति में वह पूर्वकालिक न होकर क्रियाविशेषण का काम करता है | जैसे – वह बैठकर पढ़ता है |
इस वाक्य में ‘बैठना’ और ‘पढ़ना’ दोनों साथ-साथ हो रहे हैं | इसलिए ‘बैठकर’ क्रिया विशेषण है | इसी तरह निम्नलिखित वाक्यों में रेखांकित पदों पर विचार करें –
(a) बच्चा दौड़ते-दौड़ते थक गया | (क्रियाविशेषण)
(b) खाया मुंह नहाया बदन नहीं छिपता | (विशेषण)
(c) बैठे-बैठे मन नहीं लगता है | (क्रियाविशेषण)

2. संयुक्त क्रिया


“जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के योग से बनकर नया अर्थ देती है यानी किसी एक ही क्रिया का काम करती है, वह संयुक्त क्रिया’ कहलाती है |” जैसे –
उसने खा लिया है | (खा + लेना)
तुमने उसे दे दिया था | (दे + देना)

अर्थ के विचार से संयुक्त क्रिया के कई प्रकार होते हैं –


1. निश्चयबोधक : धातु के आगे उठना, बैठना, आना, जाना, पड़ना, डालना, लेना, देना, चलना और रहना के लगने से निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया का निर्माण होता है | जैसे –
(a) वह एकाएक बोल उठा |
(b) वह देखते-ही-देखते उसे मार बैठा |
(c) मैं उसे कब का कह आया हूँ |
(d) दाल में घी डाल देना |
(e) बच्चा खेल्त्ते-खेलते गिर पड़ा |
2. शक्तिबोधक : धातु के आगे ‘सकना’ मिलाने से शक्तिबोधक क्रियाएं बनती है | जैसे –
दादाजी अब जल-फिर सकते हैं |
वह रोगी अब उठ सकता है |
कर्ण अपना सब कुछ दे सकता है |

3. समाप्तिबोधक : जब धातु के आगे ‘चुकना’ रखा जाता है, तब वह क्रिया समाप्तिबोधक हो जाती है | जैसे –
मैं आपसे कह चुका हूँ | वह भी यह दृश्य देख चुका है |

4. नित्यताबोधक : सामान्य भूतकाल की क्रिया के आगे ‘करना’ जोड़ने से नित्यताबोधक क्रिया बनती है | जैसे –
तुम रोज यहाँ आया करना |
तुम रोज चैनल देखा करना |

5. तत्कालबोधक : सकर्मक क्रियाओं के सामान्य भूतकालिक पुं. एकवचन रूप के अंतिम स्वर ‘आ’ को ‘ए’ करके आगे ‘डालना’ या ‘देना’ लगाने से तत्कालबोधक क्रियाएं बनती हैं | जैसे –
कहे डालना, कहे देना, दिए डालना आदि |

6. इच्छाबोधक : सामान्य भूतकालिक क्रियाओं के आगे ‘चाहना’ लगाने से इच्छाबोधक क्रियाएं बनती हैं | इनसे तत्काल व्यापार का बोध होता है | जैसे –
लिखा चाहना, पढ़ा चाहना, गया चाहना आदि |

7. आरंभबोधक : क्रिया के साधारण रूप ‘ना’ को ‘ने’ करके लगना मिलाने से आरंभ बोधक क्रिया बनती है | जैसे –
आशु अब पढ़ने लगी है |
मेघ बरसने लगा |

8. अवकाशबोधक : क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘ने’ करके ‘पाना’ या ‘देना’ मिलाने से अवकाश बोधक क्रियाएं बनती हैं | जैसे –
अब उसे जाने भी दो |
देखो, वह जाने न पाए |
आखिर तुमने उसे बोलने दिया |

9. परतंत्रताबोधक : क्रिया के सामान्य रूप के आगे ‘पड़ना’ लगाने से परतंत्रताबोधक क्रिया बनती है | जैसे –
उसे पाण्डेयजी की आत्मकथा लिखनी पड़ी |
आखिरकार बच्चन जी को भी यहाँ आना पड़ा |

10. एकार्थकबोधक : कुछ संयुक्त क्रियाएं एकार्थबोधक होती हैं | जैसे –
वह अब खूब बोलता-चालता है |
वह फिर से चलने-फिरने लगा है |
नोट :
1. संयुक्त क्रियाएं केवल सकर्मक धातुओं के मिलने अथवा केवल अकर्मक धातुओं के मिलने से या दोनों के मिलने से बनती हैं | जैसे -
मैं तुम्हें देख लूंगा | वह उठ बैठा है | वह उन्हें दे आया था |
2. संयुक्त क्रिया के आद्य खंड को ‘मुख्य या प्रधान क्रिया’ और अंत्य खंड को ‘सहायक क्रिया’ कहते हैं | जैसे –
वह घर चला जाता है |
नामधातु :
“क्रिया को छोड़कर दूसरे शब्दों से (संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण) से जो धातु बनते हैं, उन्हें ‘नामधातु’ कहते हैं |” जैसे –
पुलिस चोर को लतियाते थाने ले गई |
वे दोनों बतियाते चले जा रहे थे |
मेहमान के लिए ज़रा चाय गरमा देना |

नामधातु बनाने के नियम :-

1. कई शब्दों में ‘आ’ कई में ‘या’ और कई में ‘ला’ के लगने से नामधातु बनते हैं | जैसे –
मेरी बहन मुझसे ही लजाती है | (लाज-लजाना)
तुमने मेरी बात झुठला दी है | (झूठ-झूठलाना)
ज़रा पंखे की हवा में ठंडा लो, तब कुछ कहना | (ठंडा-ठंडाना)

2. कई शब्दों में शून्य प्रत्यय लगाने से नामधातु बनते हैं | जैसे –
रंग : रंगना गाँठ : गाँठना चिकना : चिकनाना आदि |

3. कुछ अनियमित होते हैं | जैसे –
दाल : दलना, चीथड़ा : चीथेड़ना आदि |

4. ध्वनि विशेष के अनुकरण से भी नामधातु बनते हैं | जैसे –
भनभन : भनभनाना छनछन : छनछनाना टर्र : टरटराना/टर्राना
प्रकार (अर्थ,वृत्ति)

क्रियाओं के प्रकारकृत तीन भेद होते हैं :

1. साधारण क्रिया : वह क्रिया, जो सामान्य अवस्था की हो और जिसमें संभावना अथवा आज्ञा का भाव नहीं हो | जैसे –
मैंने देखा था | उसने क्या कहा ?

2. संभाव्य क्रिया : जिस क्रिया में संभावना अर्थात अनिश्चय, इच्छा अथवा संशय पाया जाए | जैसे –
यदि हम गाते थे तो आप क्यों नहीं रुक गए ?
यदि धन रहे तो सभी लोग पढ़-लिख जाएं |
मैंने देखा होगा तो सिर्फ आपको ही |
नोट : हेतुहेतुमद भूत, संभाव्य भविष्य एवं संदिग्ध क्रियाएं इसी श्रेणी में आती है |

3. आज्ञार्थक क्रिया या विधिवाचक क्रिया :इससे आज्ञा, उपदेश और प्रार्थनासूचक क्रियाओं का बोध होता है | जैसे –
तुम यहाँ से निकलो | गरीबों की मदद करो |
कृपा करके मेरे पत्र का उत्तर अवश्य दीजिए |


क्रिया किसे कहते हैं पार्ट 1

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