वाच्य किसे कहते हैं

 

वाच्य (Voice)

वाच्य (voice in Hindi grammar)

“क्रिया के जिस रूप से पता चले कि उसका मुख्य विषय क्या है – कर्ता, कर्म या भाव |”

अर्थात क्रिया के जिस रूप से उसके कर्ता, कर्म या भाव के अनुसार होने का बोध होता है, उसे ‘वाच्य’ कहते है |

नीचे लिखे वाक्यों पर गौर करे –

 

विश्लेषण : उपर्युक्त सभी उदाहरणों में यही देखा जा रहा है कि क्रिया कर्त्ता के अनुसार अपना रूप बदल रही हैं; कर्म का उस पर कोई असर नहीं पड़ रहा है, चाहे वह पु. हो या स्त्री; एकव. हो या बहुव. | साथ ही यह भी देखा जा रहा कि इस तरह के वाक्यों में अकर्मक एवं सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग होता है |

अब निम्नलिखित उदाहरणों को देखें :

 

व्याख्या : उपर्युक्त दोनों वाक्यों में हम देखते हैं कि क्रिया का प्रयोग क्रमानुसार होते हुए भी कर्त्ता को ही विषय बनाया गया है यानी कर्त्ता के बारे में ही कहा गया है न कि कर्म के बारे में, भले ही क्रिया का रूप कर्म के अनुसार हुआ है |

नोट : कुछ वैयाकरण भ्रमवश इस तरह के वाक्यों को कर्मवाच्य का मान बैठते हैं | यहाँ मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि क्रिया का वह रूप जिससे यह पता चले कि वह कर्त्ता, कर्म या भाव का अनुगमन करता है, ‘प्रयोग कहलाता है | प्रयोग तीन प्रकार के होते हैं –

(a) कर्तरी प्रयोग : कर्त्ता की अनुगामिनी क्रिया

(b) कर्मणि प्रयोग : कर्म की अनुगामिनी क्रिया

(c) भावे प्रयोग : क्रिया भाव की अनुगामिनी अर्थात स्वतंत्र प्रयोग

इस दृष्टि से उक्त दोनों उदाहरणों में क्रिया प्रयोग दिखाया गया है न कि वाच्य प्रयोग |

हम कुछ अन्य उदाहरणों पर विचार करते हैं –

 

व्याख्या : क्रिया कर्म के अनुसार प्रयुक्त हुई है यानी कर्म के लिंग, वचन और पुरुष का प्रभाव क्रिया पर पड़ा है और कर्म को ही विषय भी बनाया गया है |

 

व्याख्या : उपर्युक्त दोनों वाक्यों की क्रियाएं स्वतंत्र है और भाव की प्रधानता है यानी भाव को ही मुख्य विषय बनाया गया है |

इस प्रकार वाच्य के तीन रूप हैं –

1. कर्तृवाच्य

      जिसमें कर्त्ता प्रधान हो, कर्म (यदि रहे तो) गौण और क्रिया कर्त्ता के लिंग से प्रभावित हो | इस वाच्य में अकर्मक एवं सकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग होता है | प्रथम छ: वाक्य कर्तृवाच्य (Active Voice) के हुए |

2. कर्मवाच्य

      इसमें कर्म प्रधान होता है, कर्त्ता गौण और क्रिया कर्म के लिंग-वचन और पुरुष से प्रभावित होती है | कर्मवाच्य (Passive Voice) में कर्म को ही विषय बनाया जाता है | उदाहरण नं. 7 में हम यही पाते हैं | कर्मवाच्य में केवल सकर्मक क्रियाओं का ही प्रयोग होता है |

3. भाववाच्य

      जिस वाक्य की क्रिया का संबंध कर्त्ता और कर्म से न होकर, भाव से होता है, ‘भाववाच्य (Impersonal Voice) कहलाता है | इस वाच्य में भाव की ही प्रधानता होती है | इस कारण से क्रिया सदैव स्वतंत्र रहती है | स्वतंत्र रहने के कारण क्रिया अन्य पुं., पुं. और एकवचन में रहती है |

भाववाच्य की क्रिया सामान्यतया अकर्मक होती है; किन्तु यदि कर्त्ता और कर्म दोनों अपने चिह्नों से युक्त रहें तो वैसी स्थिति में स्वभावत: सकर्मक क्रिया भी रहती है; लेकिन क्रिया उन दोनों (कर्त्ता और कर्म) से अप्रभावित रहती है | उदाहरण नं. (8) और (9) भाववाच्य के अंतर्गत आएंगें |

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