प्रयोग के आधार पर शब्दों को तीन वर्गों में बांटा गया है, जाने

पिछली पोस्ट में हमने जाना शब्द के परिवार का विभाजन इस पोस्ट में हम जानेंगे प्रयोग के आधार पर शब्दों को कितने वर्गों में बांटा जाता है :- 

प्रयोग के आधार पर शब्दों को तीन वर्गों में बांटा गया है :

प्रयोग के आधार पर शब्दों का वर्गीकरण


1. सामान्य शब्द : 

आम बोलचाल के शब्द, जो पारिभाषिक अर्थ में प्रयुक्त नहीं होते, सामान्य शब्द कहलाते हैं | जैसे, मकान, पानी, कहानी, पाठशाला, सड़क, नदी, झरना आदि |

इन शब्दों का अभिधेयार्थ प्रयोग होता है |

2. अर्द्धपारिभाषिक शब्द : 

वैसे शब्द, जो कभी तो सामान्य अर्थ में प्रयुक्त और कभी पारिभाषिक रूप में प्रयुक्त होते हैं |

उदाहरणस्वरूप : आप तो काफी माल मार रहे हैं |

      वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण बाजार में पड़े माल सड़ रहे हैं |

      वह आजकल तर माल उड़ा रहा है |

उपर्युक्त तीनों वाक्यों में माल-शब्द का तीन अर्थों में प्रयोग हुआ है | प्रथम और तृतीय वाक्यों में प्रयुक्त ‘माल शब्द सामान्य अर्थ : धन और स्वादिष्ट भोजन और द्वितीय वाक्य में प्रयुक्त माल अर्थशास्त्र का पारिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ है : विनिमय-मूल्य और उपयोग मूल्य से युक्त ऐसी वस्तु या सेवा जो बिक्री हेतु बाजार में सक्रिय हो |

      इसी तरह मन, माया, कर्म, क्रिया, धातु, रस, मिश्रण, द्रव्य, भार, गति, चाल, घर्षण, संज्ञा आदि अर्द्ध पारिभाषिक शब्द के उदाहरण हैं |

3. पारिभाषिक शब्द : 

वैसे शब्द, जो किसी पारिभाषिक शब्द के रूप में किसी विशिष्ट क्षेत्र या विषय में प्रयुक्त होते हैं | ऐसे शब्दों की एक सुनिश्चित परिभाषा होती है |

उदाहरणस्वरूप : शिक्षा, मुद्रा, मुद्रा-स्फीति, अवमूल्यन, मांग, लाभांश, नौकरशाही, सामंत, स्थानान्तरण, धर्मांतरण, प्राधिकार, उत्क्रमित, लेखा-परीक्षा, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि |

शब्दों की कहानी : स्वयं की जुबानी

      नई घटनाओं, नये विचारों, नई परम्पराओं, नई वस्तुओं, इतिहास की करवटों के कारण हमारा जन्म होता है | 1965 ई. में पाकिस्तानियों की घुसपैठ के कारण ‘घुसपैठिया का जन्म हुआ | इसी तरह विभिन्न प्रलोभनों के चलते हमारे विधायकों, सांसदों ने अपने पाले बदल लिए | इस घटना से ‘दलबदलू शब्द जन्मा |

हमारे जन्मों के कुछ आधार हैं, जैसे –

ध्वनि के कारण हमारा जन्म :

      कोयल की कूक या कोक के कारण ‘कोकिल तो मोटरसाइकिल के फट-फट के कारण ‘फटफटिया बना | इसी तरह भड़भड़ाना, खटखटाना, ठकठकाना, कड़कना, मिमियाना, भूँकना, हिनहिनाना – जैसे क्रियात्मक शब्दों का जन्म हुआ | लोमड़ी की आवाज ‘खै-खै’ होती है जिससे भोजपुरियों ने उसे ‘खैखर और अन्य ने ‘खिखिर कह डाला | ती-ती की आवाज सुन लोगों ने ‘तीतर का गठन किया तो ‘झर-झर की ध्वनि से निर्झर |

नामों के कारण हमारा जन्म :

      विभिन्न नाम भी हमें जन्म लेने में सहायता करते हैं | कहीं-कहीं तो हम नाम से प्रभावित हो किसी ख़ास व्यक्ति या उसके चरित्र के लिए रूढ़ हो जाते हैं | ‘नारद इसी तरह का एक शब्द है जो इधर-उधर लगाने वाले (चुगलखोर) के लिए रूढ़ हो गया है | आज भी लोग कहते हैं – उस नारद से सावधान रहना | इसी तरह

      नादिरशाह से   -     नादिरशाही

      हिटलर से     -     हिटलरशाही/हिटलरी

गांधी से      -     गांधीवाद/गांधीवादी, गांधीगिरी

भगीरथ से     -     भगीरथ प्रयत्न, भागीरथी

राम से       -     रामबाण, रामराज्य

बनारस से     -     बनारसी, बनारसी साड़ी, बनारसी ठग, बनारसी जर्दा, बनारसी पान

 

हम भावात्मक रूप से विभिन्न परिस्थितियों, चरित्रों के बोधक बन जाते हैं –

सिकन्दर      -     सौभाग्यशालियों के लिए

रावण/कंस     -     अत्याचारियों के लिए

मन्थरा       -     कुमंत्रणा से घर फोड़ने वाली के लिए

भीम/रूस्तम   -     बलिष्ठ लोगों के लिए

सीता/सावित्री   -     पतिव्रताओं के लिए

एकलव्य      -     आदर्श शिष्य के लिए

भरत/लक्ष्मण   -     आदर्श अनुजों के लिए

कामदेव      -     सुंदर पुरुषों के लिए

मीरा         -     कुल की मर्यादा लांघने वालियों के लिए

जयचंद       -     देशद्रोहियों के लिए

भीष्म        -     प्रण पर अटल रहने वालों के लिए

कुबेर         -     धनी के लिए

युधिष्ठिर/हरिश्चन्द्र    -     अव्वल दर्जे के सत्यवादियों के लिए

भोलेनाथ      -     भोले-भालों के लिए

तिलोतमा/रति  -     सुंदर नारियों के लिए

सूरदास       -     अंधों के लिए

कैकेयी       -     स्वार्थी नारियों के लिए

रैदास        -     चर्मकारों के लिए

नोट : साहित्यकार उपर्युक्त शब्दों का बिम्बों के लिए (प्रतीकों के लिए) प्रयोग करते हैं |

स्थानों के नामों से भी हम बनते रहे हैं :

      सूरत से बने सुरती/सुर्ती (तम्बाकू के लिए)

      चीन से बने चीनी (शक्कर के लिए)

      मिश्र से बने मिश्री

      एकेदमी से बने अकादमी/एकेडेमी (विद्यालयों के लिए)

संक्षेप के आधार पर हम बनते हैं :

शब्दों के संक्षिप्त रूप प्रचलित होते-होते संक्षिप्त रूप में ही लोकप्रिय हो जाते हैं | इस प्रकार हम बड़े से छोटे रूपों में आ जाते हैं –

संविद  -     संयुक्त विधायक दल

यू.पी.  -     उत्तर प्रदेश

एम.पी. -     मध्य प्रदेश

नाटो   -     North Atlantic Treaty Organisation

जीप   -     Vehicle for General Purpose

रडार   -     Radio Detection and Ranging

नकेनवाद     -     नलिनविलोचन शर्मा, केसरी कुमार, नरेश द्वारा चलाया गया साहित्यिक वाद युग

भाजपा -     भारतीय जनता पार्टी

जद   -     जनता दल

लोजपा -     लोक जनशक्ति पार्टी

बसपा  -     बहुजन समाज पार्टी

आरसी प्र. सिंह -     रामचन्द्र प्र. सिंह

 

संख्या भी हमें बनाती हैं :

      420 धारा (धोखा देने वाले अपराधियों पर लगाई जाती है) इससे प्रभावित हो हम बने – चार सौ बीस, चार सौ बीसी | इसी तरह

10 नंबर से    -     दस नंबरी

60 से बने    -     सठियाना

9-2 से बने    -     नौ दो ग्यारह होना

3-13 से बने   -     तीन-तेरह होना

36 से बने    -     छत्तीस का संबंध होना

‘नंबर’ से तो हम कई रूपों में आ गए –

नंबरी चोर, सी नंबर, नंबरी बदमाश, नंबरीलाल आदि |

रंगों ने हमें कहाँ छोड़ा :

      हम रंगों से प्रभावित हो अपना विस्तार करते गए | देखिए न, हम बन गए –

सफेद से      -     सफेदी, सफेदा (चादर के लिए)

सब्ज (हरा रंग) से     -     सब्जी, सब्जबाग़

काला से      -     कालीमाता, कालिका, काल कोठरी, काल भैरव

हरा से       -     हरी, हरियाली, हरीतिमा, हरा-भरा आदि |

नाग (सिंदूर रंग)      -     नारंगी, नागरंगक, नागरंगिका

पांडु से       -     पांडुलिपि

पीला से      -     पीलिया

लाल से       -     लाली, लालिमा

सिंदूर से      -     सिंदूरी, सिंदुरिया

      इस प्रकार हम अनेकानेक आधारों पर बनते रहे हैं; जनमते रहे हैं और बनते-जनमते रहेंगे |

हम बढ़ते रहे हैं और बढ़ते रहेंगे

      हम लोगों के शैक्षिक स्तरों, जलवायु, उच्चारणों के कारण बढ़ जाते हैं | हमारे कुछ उदाहरण देखें :

प्लातोन (यूनानी शब्द) : अफलातून

कृष्ण  -     किरिसुन, किसुन

डेढ़ा   -     डेवढ़ा, डयोढ़ा

सिकन्दर      -     इसकन्दर

उलास  -     उल्लास, हुलास

पसंद  -     परसन्द

स्तबल -     अस्तबल

नर्म   -     नरम

हुक्म   -     हुकुम

लाश   -     लहास

समुद्र  -     समुन्दर

गर्म   -     गरम

भ्रम   -     भरम

बर्फ   -     बरफ

हमेशा  -     हरमेशा

जेल   -     जेहल

दवा   -     दवाई

शर्म   -     शरम

भक्त  -     भगत

भौं    -     भौंह

क्रिया  -     किरिया

शाप   -     श्राप, सराप

पत्र    -     पत्तर, पत्तल, पतला

उमरा  -     उमराव

अक्षोट -     अखरोट

परवा  -     परवाह

बला   -     बलाय

कृपा   -     किरिपा

 

हम उलट-पुलटकर भी अर्थ नहीं छोड़ते

      आपको आश्चर्य होगा | हम कभी स्वयं उलट जाते हैं तो कभी क्षेत्रीय साहित्यकारों द्वारा उलटा दिए जाते हैं | चाहे जैसी परिस्थिति हो, हम उलट-पुलटकर भी मूलार्थ नहीं छोड़ते | देखिए न :

लखनऊ -     नखलऊ, नखलवी

ब्राह्मण -     ब्राम्हण

चत्वार -     चबूतरा/चौतरा

हिंस   -     हिंसा, सिंह

कनेक्शन      -     कनस्कन

आह्वान -     आवाहन

कराहना -     कहरना

जानवर -     जनावर

परिधान -     पहिरन

नुसखा -     नुख्सा

इलजाम -     इजलाम

मुजरिम -     मुलजिम

चक्र   -     चरखा

बिडाल -     बिलार

सिग्नल -     सिंगल

बिंदु   -     बूंदी

चाक़ू   -     काचू

उल्का  -     लूक

अमरूद -     अरमूद

रिक्षा   -     रिस्का

बीमार  -     बेराम

नग्न   -     नंगा

डेस्क  -     डेक्स

वारिद  -     बादल

 

कुछ साहित्यकारों की पंक्तियाँ देखें, कैसे-कैसे प्रयोग कर डाले हैं उनहोंने –

      आवत मुकुट देखि कपि भागे |

      दिन ही लूक परन बिधि लागे | (तुलसीदास)

      x     x     x     x

      श्रीपति सुकवि यों वियोगी कहरन लागे,

      मदन की आगि लहरन लागी तन में |  (श्रीपति)

      x     x     x     x

      कुम्भकरन कइ खोपड़ी वूड़त वांचा भीऊँ |

      (‘डूबना का ‘वूड़ना’) (जायसी)

 

हम बड़े मनोरंजक होते हैं :

      केवल कुछ व्यक्ति, वस्तु या दृश्य ही मनोरंजक नहीं होते, हम भी (शब्द भी) मनोरंजक हुआ करते हैं | यदि आप छेड़ेंगे तो हम आपको गुदगुदाने लगेंगे :

बम प्लेस (पाखाने के अर्थ में)  -     बम पुलिस

रेती पर (रेत पर)           -     रेतीपुर, रेवतीपुर

खुश रहु (मैथिलि)           -     खुशरु, खुसरुपुर

कूड़े भार (एक स्टेशन का नाम) -     कूचे बहार (बाहर की गली)

मथुरा                    -     मुत्रा (अंग्रेजों द्वारा प्रयोग)

मधुर                    -     माहुर

दानव देव ऊँच अरु नीचू/अमिय सजीवन माहुर मीचू |   (तुलसीदास)

अक्षर                    -     अक्खड़

भद्र                      -     भद्दा/भोंदू

लायब्रेरी                  -     रायवरेली

वर्ष                      -     वर्षा

 

हम देश और दुनिया का भ्रमण करते हैं और अपना रूप व नाम भी बदल लेते हैं :

      केवल पशु-पक्षी और मनुष्य ही नहीं चलते हम भी चलते हैं; देश-दुनिया का भ्रमण करते हैं और अपना नाम व रूप भी बदल लेते हैं | नीचे देखें हमारे रूप और नाम :

अफीम (यूनान में)

ओपिअम (लैटिन में)

अफयून (अरब में)

अहिफेन (भारत में)

अफीण (गुजरात प्रांत में)

अफीम (महाराष्ट्र में)

अ-फु युंग (चीन में)

x     x     x

शक्कर (भारत में)

शकर (फ़ारसी में)

सुक्कर (अरब में)

साखर (रूस में)

शेकर (कश्मीर में)

साकर (गुजरात में)

हकुरु (सिंध में)

 

हम मोटे होते-होते प्रतीकात्मक बन जाते हैं :

      हमारा अर्थ-विकास होते रहा है और विकास करते-करते हम उस जगह पहुँच गए हैं जहाँ लोग हमें प्रतीकात्मक मानने लगे | देखना चाहेंगे हमारी बानगी ? तो देख ही लें –

शब्द   -     प्रतीकार्थ

रण्डी   -     ऊपर से प्रेम करने वाली

काला नाग    -     गंभीर पर, छिपी चोट करने वाला

कौआ  -     काला, चालाक

बंदर   -     नटखट, नकलची

गीदड़  -     डरपोक

पत्थर  -     कठोर

सियार -     धूर्त और चालाक

कुत्ता   -     गंदा, जूठा चाटने वाला, चापलूस

भालू   -     अधिक बालवाला

गदहा  -     मूर्ख, भोला-भाला

बच्चा  -     कम अक्ल, नादान

औरत  -     डरपोक, धूर्त, नखरेबाज

काँटा  -     दर्द देने वाला

सूअर  -     गंदा, घृणित

शेर    -     शूरवीर, साहसी

गिरगिट -     अवसरवादी

मर्द    -     वीर, हिम्मती

चलनी  -     बहुत दुर्गुण वाला

बनिया -     लोभी

गाय   -     सीधा-सादा

पाजामा -     मूर्ख

उल्लू  -     मूर्ख

भैंस   -     सुस्त, मूर्ख

तवा   -     तप्त, काला

गिद्ध  -     दूर तक देखने वाला, गंदी चीज खाने वाला

 

हम भी उन्नति कर अपना हृदय परिवर्तित करते हैं

      हम बुरे शब्द भी अच्छे लोगों की संगती कर अपनी उन्नति कर लेते हैं | अच्छी परिस्थिति को पाकर हम भी सुंदर और गौरवपूर्ण बन जाते हैं |

      जैसे – ‘साहस के अंतर्गत हत्या, चोरी, बलात्कार, कठोरता और झूठ आते हैं | इसीलिए ‘चोर को ‘साहसिक’ भी कहा जाता है परन्तु वीरों के सम्पर्क में आकर हम ‘साहसी हो गए और आज हर कोई अपने को ‘साहसी कहलाने में गर्व का अनुभव करता है |

इसी तरह ‘गोस्वामी शब्द तुलसीदास के सम्पर्क में आकर ईश्व का पर्याय हो गया |

‘मूढ़ बन गया मुग्ध

क्वीन (Queen) शब्द ‘स्त्री से रानी के लिए प्रयुक्त हो गया

भोग (खाना) शब्द भगवान की संगती पाकर ‘प्रसाद बन बैठा

तीर्थ (तीर पर वसा) पवित्र स्थान के लिए रूढ़ हो गया

मुनि (मौन रहने वाला) मनन करने वाले के साथ रहकर तपस्वी या ऋषि बन बैठा |

 

हमारी भी अवनति व दुर्गति होती है :

      देश, काल और परिस्थिति के कारण हमारी भी बड़ी दुर्गति हो जाती है | नीचे देखें हमारे कुछ नमूने हम कहाँ थे और कहाँ चले गए –

शब्द   -     अवनत रूप

बाबू (रोब व ठाठवालों के लिए)       -     बाबू (दफ्तर के कर्मचारियों के लिए)

गुरु (शिक्षकों के लिए)              -     आज मक्कारों के लिए

दादा (बड़े भाई/पितामह के लिए)       -     आज गुंडों के लिए

भाई (भ्राता के लिए)               -     आज गुंडों-मवालियों के लिए

नट (नाट्यकला में प्रवीण के लिए)     -     आज एक जाति विशेष के लिए

पाखंड (साधुओं का एक सम्प्रदाय)     -     आज ढोंग आडंबर के लिए

महाजन (महापुरुष के लिए)          -     आज बनिया के लिए

मेहतर (बुजुर्ग या बेहतर के लिए)      -     आज भंगी के लिए

हलालखोर (वाजिब की कमाई खाने वाला)      -     हलखोर-एक जाति विशिष्ट

गँवार (ग्रामीण)                   -     आज मूर्ख

महापात्र (महती योग्यता वाले)        -     करटहा ब्राह्मण (कंटाह)

साहु (साधु)                      -     बनिया

बाथरूम (स्नान घर)               -     शौचालय

ट्वायलेट (श्रृंगारघर)                -     पाखाना

वज्रवटुक (पक्का ब्रह्मचारी)          -     बजरबट्टू (मूर्ख)

[भोलानाथ तिवारी शब्दों का जीवन से साभार]

 

5. विशेष अर्थवाले संख्यावाचक :

      कुछ संख्यावाचक शब्द ऐसे हैं जो विशेषार्थ के लिए प्राचीन कवियों द्वारा प्रयोग में लाए गए हैं | उनके अर्थ ध्यान में रखने चाहिए | कहीं उनका प्रयोग हो तो अर्थ एवं भाव-ग्रहण में आसानी होती है | जैसे : “आठहुं सिधि नवौ निधि ..................... |” (रसखान)

एक         -     ईश्वर, चंद्र, सूर्य, पृथ्वी, गणेश का दांत, शुक्राचार्य का नेत्र

दो          -     दो (उभय), पक्ष-कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष

दो मार्ग      -     प्रवृत्ति मार्ग, निवृत्ति मार्ग

दो अयन      -     दक्षिणायन, उत्तरायण

दो उपासना    -     निर्गुण, सगुण

दो विद्या     -     परा विद्या, अपरा विद्या

तीन लोक     -     मृत्युलोक, आकाश, पाताल

तीन देव      -     ब्रह्मा, विष्णु, महेश

तीन गुण     -     सत्त्वगुण, रजोगुण, तमोगुण

तीन ऋण     -     पितृऋण, ऋषिऋण, देवऋण

तीन काल     -     भूत, वर्तमान, भविष्यत

तीन आग     -     जठरानल, वड़वानल, दावानल

तीन दोष     -     वात, पित्त, कफ

तीन ताप     -     दैहिक, दैविक, भौतिक

तीन अवस्थाएं -     बाल्यावस्था, युवावस्था, वृद्धावस्था

तीन कर्म     -     संचित, प्रालब्ध, क्रियमाण

तीन दिव्य पदार्थ     -     ब्रह्म, जीव, प्रकृति

तीन वायु     -     शीतल, मंद, सुगंध

तीन जीव     -     थलचर, जलचर, नमचर

तीन वेदकाण्ड  -     कर्मकाण्ड, ज्ञानकाण्ड, उपासनाकाण्ड

तीन राम     -     परशुराम, राम, बलराम

चार वेद      -     ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद

चार ब्राह्मण ग्रन्थ     -     ऐतरेय, कौशीतकी, तैत्तिरीय, शतपथ

चार आश्रम    -     ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास

चार वर्ण      -     ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र

चार अवस्थाएं  -     जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीयावस्था

चार देवता     -     मातृ, पितृ, आचार्य, अतिथि

चार अंग (राजनीति)   -     साम, दाम, दंड, भेद

चार युग      -     सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग

चार फल      -     धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष

चार दिशाएं    -     पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण

चतु: सृष्टि    -     जरायुज, अंडज, स्वेदज, उद्भिज्ज

चार धाम     -     रामेश्वर, द्वारका, बद्रीनाथ, जगन्नाथ

चतुरंगिणी सेना -     ग्जसेना, अश्वसेना, रथी, पदाति

पंचगव्य      -     दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र

पंच तत्व      -     पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

पांच ज्ञानेन्द्रियाँ -     आँख, कान, नाक, जिह्वा, त्वचा

पांच कर्मेन्द्रियाँ -     मुख, हस्त, पाद, गुदा, लिंग

पंचामृत      -     दुग्ध, दधि, घृत, मघु, शर्करा

पंच कन्या     -     अहल्या, द्रौपदी, तारा, कुंती, मन्दोदरी

पंच रत्न      -     स्वर्ण, मुक्त, हीरक, लाल, नीलम

पंच यम      -     अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, इन्द्रियनिग्रह

पांच नियम    -     शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर, प्रणिधान

पांच यज्ञ      -     ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, अतिथियज्ञ

पांच कोष     -     अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, आनंदमय, विज्ञानमय

पांच बाण (कामदेव)   -     मोहित, मस्त, तपन, शुष्क, शिघित

पंचवटी       -     पीपल, बेल, बड़, हरड़, अशोक

पांच लक्षण    -     काकचेष्टा, बकध्यान, श्वाननिद्रा, अल्पाहार, गृहत्याग

पांच शत्रु      -     काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार

पंच माता     -     अम्बा, आचार्य-पत्नी, सास, राजपत्नी, मातृभूमि

पंच प्राण      -     प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान

षट वेदान्त    -     शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष

षड्दर्शन      -     न्याय, वैशेषिक, योग, संख्या, मीमांसा, वेदान्त

षट रस       -     मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तिक्त, कषाय

षड् ऋतु      -     हेमंत, शिशिर, बसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद

षट जीव गुण  -     ईर्ष्या, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख, ज्ञान

षट, घोर दुःख  -     गर्भ-दुःख, जन्म-दुःख, रोग-दुःख, जरा-दुःख, बुभुक्षा, मरण-दुःख

सप्तवासर     -     सोम, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि, रवि

सप्तस्वर     -     षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद

सप्तद्वीप     -     जम्मू, प्लक्ष, कुश, शाल्मली, कौंच, शाक, पुष्कर

सप्तसागर     -     क्षीर, दधि, घृत, इक्षु, मधु, मदिरा, लवण

सप्तर्षि       -     गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि

अष्टसिद्धि    -     अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व

आठ लक्षण    -     साहस, अनृत, चपलता, माया, भय, अविवेक, अशौच, निर्दयता

(मूर्ख स्त्रियों के)

अष्टांग योग   -     यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि

अष्टधातु     -     स्वर्ण, रजत, ताम्र, सीसक (सीसा), कांस्य, रांगा

अष्टछाप कवि  -     सूरदास, कृष्णदास, नन्ददास, परमानन्ददास, कुंभनदास, चतुर्भुजस्वामी, छीतस्वामी, गोविन्ददास

अष्टविवाह    -     ब्राह्म, देव, आर्ष, प्रजापत्य, आसुर, पिशाच, गान्धर्व, स्वयंवर

आठ वसु      -     आदित्य, चंद्र, नक्षत्र, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश

नवघाभक्ति    -     श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद-सेवन, अर्चन, वन्दन, सख्य, दास्य, आत्म निवेदन

नवरत्न       -     हीरक, माणिक्य, पुखराज, पन्ना, मोती, गोमेद, मूंगा, लहसुनिया, नीलम

नवग्रह       -     सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु

नवरस       -     शृंगार, करूं, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत, शांत

नवनिधि      -     पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील, खर्व

दस लक्षण (धर्म)      -     धैर्य, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, अक्रोध

दस दिग्पाल   -     गरुड़ध्वज, गोविन्द, अग्नि, पवन ईश, राक्षस, यक्ष, सुरपति, धनद, वारण

(दिशाओं के पालक हाथी)

दस दिशाएं    -     पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ईशान, नैर्ऋत्य, वायव्य, आग्नेय, उपरि, अध:

दस अवतार    -     मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि

ग्यारह रूद्र    -     प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय, आत्मा

बारह राशियाँ   -     मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन

बारह आदित्य  -     दिव, बृहद्भानु, रवि, चक्षु, ऋचीक, भानु, विभावसु, अर्क, आज्ञा, वह, सविता, आत्मा, सद्य:

बारह भूषण    -     नूपुर, किंकिणी, हार, नथ, चूड़ी, मुद्रिका, शीशफूल, विंदी, कंकन, कंठश्री, वाजूबन्द, टीका

तेरह उपनिषद  -     ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, छान्दोग्य, वृहदारणयक, कौशीतकी, मैत्रायणी, श्वेताश्वतर

चौदह लोक    -     तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रमातल, पाताल, भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपलोक, सत्यलोक

चौदह विद्या   -     ब्रह्म ज्ञान, रसायन, श्रुति, वैदिक, ज्योतिष, व्याकरण, धनुर्विद्या, जल तरंग, संगीत, नाटक, घुड़सवारी, कोकशास्त्र, चौर्य, चातुर्य

चौदह रत्न    -     श्री, रम्भा, विष, वारुणी, अमृत, शंख, ऐरावत, धनुष, धन्वन्तरि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, चन्द्रमा, उच्चै:श्रवा, कौस्तुभमणि

पन्द्रह तिथियाँ -     प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावस्या या पूर्णिमा

सोलह संस्कार  -     गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्कमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, उपनयन, वेदारम्भ, विवाह, समावर्त्तन, वानप्रस्थ, संन्यास, अंत्येष्टि |

सोलह शृंगार   -     अंगशौच, मज्जन (स्नान), दिव्यवस्त्र, महावर, केश, मांग, ठोड़ी, मस्तक, मेंहदी, उबटन, भूषण, सुगंध, मुखराग, दंतराग, अधरराग, काजल |

सोलह उपचार  -     आवाहन, स्थापन, पाद्य, सिंहासन, अर्घ्य, आचमन, स्नान, चन्दन

(पूजा विधि)         पुष्प, दीपक, धूप, नैवेद्य, ताम्बूल, प्रदक्षिणा, नमस्कार, आरती

अठारह पुराण  -     ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, भागवत, नारदीय, मार्कंडेय, अग्नि, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, लिंग, वराह, स्कन्द, वामन, कूर्म, मत्स्य, गरुड़, ब्रह्माण्ड

चौबीस अवतार -     सनत्कुमार, वाराह, नारद, नरनारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञपुरुष, ऋषभ, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, व्यास, हंस, कृष्ण, हयग्रीव, हरि, बुद्ध, कल्कि

सत्ताईस नक्षत्र  -     अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, घनिष्ठा, शतविषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती

अक्षौहिणी सेना -     ऐसी सेना, जिसमें – 109, 350 पदाति, 65,610 अश्वारोही, 31,870 रथी और 11,870 गजारोही हो

चौरासी लाख योनियाँ   -     4 लाख मनुष्य योनियाँ

                        9 लाख जलचर योनियाँ और नभचर

                        11 लाख कृमियोनियाँ

                        23 लाख पशुयोनियाँ

                        37 लाख स्थावर योनियाँ

कुल               -     84 लाख योनियाँ

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