राष्ट्रपति, राष्ट्रपति पद की योग्यता, राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचन मंडल (अनु.54), राष्ट्रपति पर महाभियोग

राष्ट्रपति,  राष्ट्रपति पद की योग्यता, राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचन मंडल (अनु.54), राष्ट्रपति पर महाभियोग

राष्ट्रपति : (अनुच्छेद-52)
राष्ट्रपति देश का संवैधानिक प्रधान होता है |
राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक कहलाता है |
राष्ट्रपति पद की योग्यता : संविधान के अनुच्छेद-58 के अनुसार कोई व्यक्ति राष्ट्रपति होने योग्यतब होगा जब वह --
1. भारत का नागरिक हो |
2. 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो |
3. लोकसभा का सदस्य निर्वाचित किये जाने योग्य हो |
4. चुनाव के समय लाभ का पद धारण नहीं करता हो |
नोट: यदि व्यक्ति राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के पद पर हो या संघ अथवा किसी राज्य की मंत्रीपरिषद् का सदस्य हो,तो वह लाभ का पद नहीं माना जाएगा |
राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए निर्वाचन मंडल (अनु.54) : इसमें राज्यसभा,लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य रहते है | नवीनतम व्यवस्था के अनुसार पुदुचेरी विधानसभा तथा दिल्ली की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य को भी सम्मिलित किया गया है |
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए निर्वाचन मंडल के 50 सदस्य प्रस्तावक तथा 50 सदस्य अनुमोदक होते है |
एक ही व्यक्ति जितनी बार चाहे राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित हो सकता है |
राष्ट्रपति का निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमनिय मत पद्धति के द्वारा होता है (अनु. 55)
राष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बन्धित विवादों का निपटारा उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है | निर्वाचन अवैध घोषित होने पर उसके द्वारा किये गये कार्य अवैध नहीं होते है |
राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तिथि से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा | अपने पद की समाप्ति के बाद भी वह पद पर तब तक बना रहेगा जब तक उसका उतराधिकारी पद ग्रहण नहीं कर लेता है (अनु. 56) |
पद धारण करने से पूर्व राष्ट्रपति को एक निर्धारित प्रपत्र पर भारत के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के सम्मुख शपथ लेनी पड़ती है |
नोट: अनुच्छेद - 77(1) के अनुसार भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जायेगी और अनु.-77(3) के अनुसार राष्ट्रपति भारत सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किये जाने के लिए और मंत्रियों में उक्त कार्य के आबंटन के लिए नियम बनाएगा |

राष्ट्रपति निम्न दशाओं में पांच वर्ष से पहले भी पद त्याग सकता है :
1. उपराष्ट्रपति को सम्बोधित अपने त्यागपत्र द्वारा, यह त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सम्बोधित किया जायेगा जो इसकी सुचना लोक सभा के अध्यक्ष को देगा |
2. महाभियोग द्वारा हटाये जाने पर (अनु. 61) | महाभियोग के लिए केवल एक ही आधार है जो अनुच्छेद 61(1) में उल्लेखित है, वह है संविधान का अतिक्रमण |

राष्ट्रपति पर महाभियोग ( अनु.61) : 

राष्ट्रपति द्वारा संविधान के प्रावधानों के उल्लंघन पर संसद के किसी सदन द्वारा उस पर महाभियोग लगाया जा सकता है, परन्तु इसके लिए आवश्यक है कि राष्ट्रपति को 14 दिन पहले लिखित सुचना दी जाए, जिस पर उस सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हों | संसद के उस सदन, जिसमें महाभियोग का प्रस्ताव पेश है, के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित कर देने पर प्रस्ताव दुसरे सदन में जाएगा, तब दूसरा सदन राष्ट्रपति पर लगाये गये आरोपों की जाँच करेगा या कराएगा और ऐसी जाँच में राष्ट्रपति के ऊपर लगाए गये आरोपों को सिद्ध करने वाला प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित हो जाता है, तब राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया को पदत्याग करना होगा |
राष्ट्रपति की रिक्ति को छह महीने के अंदर भरना होता है |
जब राष्ट्रपति पद की रिक्ति पदावधि (पांच वर्ष) की समाप्ति से हुई है तो निर्वाचन पदावधि की समाप्ति के पहले ही कर लिया जाएगा (अनु. 62(1) | किन्तु यदि उसे पूरा करने में कोई विलम्ब हहो जाता है तो राज अंतराल न होने पाए इसीलिए यह उपबन्ध है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद पर बना रहेगा, जब तक उसका उतराधिकारी पद धारण नहीं कर लेता है {अनु. 56(1) ग} | ऐसी दशा में उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य नहीं कर सकेगा |

अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन (अनु.-70) : जब राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति दोनों का पद रिक्त हो तो ऐसी आकस्मिकताओं में अनु. 70 राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन का उपबन्ध करता है | इसके अनुसार संसद जैसा उचित समझे वैसा उपबन्ध करत इसके अनुसार दित करेगा |

राष्ट्रपति के वेतन एवं भत्ते :

राष्ट्रपति का मासिक वेतन 5 लाख रुपया है|

राष्ट्रपति का वेतन आयकर से मुक्त होता है |
राष्ट्रपति को नि:शुल्क निवास स्थान व संसद द्वारा स्वीकृत अन्य भते प्रात्त होते है |
राष्ट्रपति के कार्यकाल के दौरान उनके वेतन तथा भते में किसी प्रकार की कमी नहीं की जा सकती है |
राष्ट्रपति के लिए 9 लाख रूपये वार्षिक पेंशन निर्धारित किया गया है |

राष्ट्रपति के अधिकार एवं कर्तव्य :

1. नियुक्ति सम्बन्धी अधिकार : राष्ट्रपति निम्न की नियुक्ति करता है ____
1. भारत का प्रधानमंत्री
2. प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों
3. सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों
4. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
5. राज्यों के राज्यपाल
6. मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्त
7. भारत के महान्यायवादी
8. राज्यों के मध्य समन्वय के लिए अन्तर्राज्यीय परिषद के सदस्य
9. संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों
10. संघीय क्षेत्रों के मुख्य आयुक्तों
11. वित आयोग के सदस्यों
12. भाषा आयोग के सदस्यों
13. पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्यों
14.अल्पसंख्यक आयोग के सदस्यों
15. भारत के राजपूतों तथा अन्य राजनयिकों
16. अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के सम्बन्ध में रिपोर्ट देने वाले आयोग के सदस्यों आदि |2.

राष्ट्रपति की विधायी शक्तियाँ 

राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग होता है इसे निम्न विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं -
1. संसद के सत्र को आहूत करने सत्रावसान करने तथा लोकसभा भग करने सम्बन्धी अधिकार |
2. संसद के एक सदन में या एक साथ सम्मिलित रूप से दोनों सदनों में अभिभाषण करने की शक्ति |
3. लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात प्रथम सत्र के प्रारम्भ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरम्भ में सम्मिलित रूप से संसद में अभिभाष्ण करने की शक्ति |
4. संसद द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के अनुमोदन के बाद ही कानून बनता है |
5. संसद में निम्न विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सहमति आवश्यक है -
(a) नये राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्य के क्षेत्रों ,सीमाओं या नामों में परिवर्तन सम्बन्धी विधेयक |
(b) धन विधेयक [अनुच्छेद -110]
(c) संचित निधि में व्यय करने वाले विधेयक [अनुच्छेद -117(3)]
(d) ऐसे कराधान पर ,जिसमे राज्य हित जुड़े हैं प्रभाव डालने वाले विधयेक
(e) राज्यों के बीच व्यापार और समागन पर निर्बन्धन लगाने वाले विधेयक [अनुच्छेद -304]
6.यदि किसी साधारण विधयेक पर दोनों सदनों में कोई असहमति है तो उसे सुलझाने के लिए राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है (अनुच्छेद -108) |
नोट : किसी अनुदान की मांग राष्ट्रपति की सिफारिश पर ही की जाएगी अन्यथा नहीं [अनुच्छेद 113 (3)]|

3. संसद सदस्यों के मनोनयन का अधिकार जब राष्ट्रपति को यह लगे की लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है ,तब वह उस समुदाय के दो व्यक्तियों को लोकसभा के सदस्य के रूप में नांमाकित कर सकता है (अनु .331) | इसी प्रकार वह कला ,साहित्य,पत्रकारिता,विज्ञान तथा सामजिक कार्यों में पर्याप्त अनुभव एवं दक्षता रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा में नामजद कर सकता है (अनु . 80 (3) )|
4. अध्यादेश जारी करने की शक्ति संसद के स्थगन के समय अनुच्छेद 123 के तहत अध्यादेश जारी कर सकता है, जिसका प्रभाव संसद के अधिनियम के समान होता है | इसका प्रभाव संसद सत्र के शुरू होने के छह सप्ताह तक रहता है परन्तु राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर अध्यादेश नहीं जारी कर सकता ,जब दोनों सूची के विषयों पर अध्यादेश नहीं जारी कर सकता जब दोनों सदन सत्र में होते हैं तब राष्ट्रपति को यह शक्ति नहीं होती है |
5. सैनिक शक्ति सैन्य बलों की सर्वोच्च शक्ति राष्ट्रपति में सन्निहित है किन्तु इसका प्रयोग विधि द्वारा नियमित होता है |
6. राजनैतिक शक्ति दुसरे देशों के साथ कोई भी समझौता या संधि राष्ट्रपति के नाम से की जाती है राष्ट्रपति विदेशों के लिए भारतीय राजदूतों की नियुक्ति करता है एवं भारत में विदेशों के राजदूतों की नियुक्ति का अनुमोदन करता हैं |
7. क्षमादान की शक्ति संविधान के अनुच्छेद -72 के अंतर्गत राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गये किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा करने उसका प्रविलम्बन,परिहार और लघुकरण की शक्ति प्राप्त है क्षमा में दंड और बंदीकरण दोनों हटा दिया है तथा दोषी को पूर्णत : मुक्त कर दिया जाता है | लघुकरण में दंड के स्वरूप को बदलकर कम कर दिया जाता है जैसे मृत्युदंड का लघुकरण कर कठोर या साधारण कारावास में परिवर्तित करना | परिहार में दंड की प्रकृति में परिवर्तन किये बिना उसकी अवधि कम कर दी जाती है जैसे 2 वर्ष के कठोर कारावास को 1 वर्ष के कठोर कारावास में परिहार करना | प्रविलम्बन में किसी दंड पर(विशेषकर मृत्युदंड) रोक लगाना है ताकि दोषी व्यक्ति क्षमा याचना कर सकते | विराम में किसी दोषी के सजा को विशेष स्थिति में कम कर दिया जाता है जैसे गर्भवती स्त्री की सजा को कम कर देना |
नोट जब क्षमादान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति ने रद्द कर दी हो, तो दूसरी याचिका नहीं दायर की जा सकती |

8. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ 

आपातकाल से सम्बन्धित उपबन्ध भारतीय संविधान के भाग -18 के अनुच्छेद -352 से 360 के अंतर्गत मिलता है | मंत्रिपरिषद के परामर्श से राष्ट्रपति तीन प्रकार के आपात लागु कर सकता है -
(a) युद्ध या ब्राह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण लगाया गया आपात (अनुच्छेद -352),
(b) राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपात (अनुच्छेद -356) (अर्थात राष्ट्रपति शासन ),
(c) वितीय आपात (अनुच्छेद -360) (न्यूनतम अवधि -दो माह) |

9.राष्ट्रपति किसी सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से अनुच्छेद 143 के अधीन परामर्श ले सकता है लेकिन वह यह परामर्श मानने के लिए बाध्य नहीं है |

10. राष्ट्रपति की कसी विधेयक पर अनुमति देने या n देने के निर्णय लेने की सीमा का आभाव होने के कारण राष्ट्रपति जेबी वीटो का प्रयोग कर सकता है क्यूंकि अनुच्छेद -111 केवल यह कहता है कि यदि राष्ट्रपति विधेयक लौटाना चाहता है तो विधेयक को उसे प्रस्तुत किये जाने के बाद यथाशीघ्र लौटा देगा | जेबी वीटो शक्ति का प्रयोग का उदहारण हैं, 1986 ई. में संसद द्वारा पारित भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक,जिस पर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कोई निर्णय नहीं लिया | तीन वर्ष प्रश्चात, 1989 ई. में अगले राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने इस विधेयक को नई राष्ट्रिय मोर्चा सरकार के पास पुनर्विचार हेतु भेजा परन्तु सरकार ने इसे रद्द करने का फैसला लिया |

भारत में राष्ट्रपति के द्वारा संघ वित् आयोग की सिफारिशों, नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन , राष्ट्रिय अनुसूचित जाति आयोग एवं राष्ट्रिय जनजाति आयोग के प्रतिवेदन को संसद के पटल पर रखवाया जाता है |
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे | वे लगातार दो बार राष्ट्रपति निर्वाचित हुए |
डॉ. एस. राधाकृष्णन लगातार दो बार उपराष्ट्रपती तथा एक बार राष्ट्रपति रहे |
केवल वी.पी. गिरी के निर्वाचन के समय दुसरे चक्र की मतगणना करनी पड़ी |
केवल नीलम संजीव रेड्डी ऐसे राष्ट्रपति हुए जो एक बार चुनाव में हार गये ,फिर बाद में निर्विरोध राष्ट्रपति निर्वाचित हुए |
भारत की प्रथम महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल है

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